सोमवार, 14 जुलाई 2014

साईं समर्थकों की गालियों में इतनी रूचि क्यों है वो बहस के नाम पर क्यों देते हैं गालियाँ !

    कुछ लोगों को गालियाँ लिखने की आलोचना करने पर उन्होंने हमें सलाह दी है कि हम फेस बुक पर शास्त्रीय धार्मिक बातें न करें क्योंकि यहाँ लोग शास्त्र पढ़कर नहीं आते हैं !मित्रो !उनकी ये सलाह सही है क्या ?

     मुझे यहाँ भी अच्छे लोग मिलते हैं कुछ लोग बेशक शास्त्रों में सब कुछ न जानते हों किन्तु उत्तम लोग अपनी अपनी जरूरत भर का जरूर जानते हैं या जानने की इच्छा रखते हैं उनसे हमें कोई समस्या नहीं होती दिक्कत वहाँ होती है जो जानता भी नहीं जानना भी नहीं चाहता है और ऊट पटांग भाषा का प्रयोग करता है जो केवल हमारे  ही नहीं अपितु हमारे अधिकाँश मित्रों के स्तर से मेल नहीं खाती है !इस बात का मुझे एहसास है कि फेसबुक पर जुड़े हमारे अधिकाँश सखा अपने अपने क्षेत्रों के अडिग स्तम्भ हैं कोई किसी से काम नहीं है मुझे प्रसन्नता ही नहीं गर्व भी इस बात का है कि हमारे फेसबुकी मित्र हमारी किसी भी गलत बात का समर्थन नहीं करते हैं तुरंत उचित प्रतिक्रिया देते हैं और मैं उन्हें प्रणतिपूर्वक न केवल स्वीकार करता हूँ अपितु सुधार करने का पूर्ण प्रया स करता हूँ और आगे भी स्वागत करता रहूँगा यही तो हमारे धर्म की जीवंतता है कि यहाँ डिक्टेटरसिप नहीं चलती है यहाँ अंतिम निर्णय शास्त्र का माना जाता है!साईं अनुयायी भी हमारे अपने भटके हुए बंधु हैं साईं मुद्दे पर मैं उनसे भी बात करने को तैयार हूँ किन्तु न तो उनके पास साईं शास्त्र है और न ही सनातन धर्म शास्त्रों की वो जरूरत समझते हैं इसीलिए गाली गलौच पर उतर जाते हैं!सच्चाई भी यही है कि किसी के सामने खर्चे मुख बाए खड़े हों और पैसे पास न हों तो गुस्सा तो आएगा ही !वही स्थिति साईं अनुयायियों की है उन्हें क्या पता था कि ये मुशीबत गले पड़ जाएगी, बोलने को उनके पास कुछ होता नहीं है किन्तु लोग उनसे साईं के विषय में बार बार प्रश्न करते हैं अब वो बोलें तो आखिर क्या बोलें !कहाँ तक बतावें कि वो चिलम बहुत अच्छी पी लेते थे या चाकी बहुत अच्छी पीस लेते थे !प्रशंसा करने के लिए भी कुछ तो चाहिए आखिर किसी की प्रशंसा में झूठ कहाँ तक बोला जाए !इसलिए ये बेचारे जहाँ कहीं तर्कों में घिर जाते हैं वहाँ गालियाँ देकर अपना परिचय देते हैं मानों वो इशारा करते हैं कि बोलने को  कुछ है नहीं इसलिए ये गन्दगी फ़ेंक रहे हैं गालियाँ ही निकालते हैं जो उन्हें प्रसाद रूप में मिली हैं !

     देखिए शास्त्रीय विषयों में तर्क चाहे मैं दूँ या आप जो सच और स्वीकार्य होगा वही स्थापित होगा और एक बात हमें कभी नहीं भूलनी चाहिए कि शास्त्रीय विषयों की बहस में हारे जीते कोई किन्तु अंततः विजय शास्त्र की ही होती है क्योंकि सार्थक बहस से शास्त्रीय सच निकल कर सामने आता है प्रतिष्ठा उसी की होती है !



कोई टिप्पणी नहीं: