शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

महिषासुर ब्राह्मण था इसका दलितों से जातिगत कोई संबंध नहीं था !जानिए कैसे ?

 जानिए महिषासुर के जीवन से जुड़े अनेकों रहस्य !   असुर कौन थे?महिषासुर की उत्पत्ति कैसे हुई ?महिषासुर ब्राह्मण था जानिए कैसे?
महिषासुर की भी पूजा का शास्त्रीय विधान है किंतु दुर्गा जी की पूजा करते समय उसी दुर्गा पूजा के अंग स्वरूप में !स्वतंत्र रूप से महिषासुरकी पूजा का कहीं कोई प्रमाण नहीं मिलता ! 
     विशेष बात ये कि दलितलोग  यदि महिषासुर के बंशज होते तो आरक्षण कभी नहीं माँगते !महिषासुर असुर तो था किंतु कायर नहीं था !इन्द्रलोक पर उसने आक्रमण किया। इस युद्ध में भगवान विष्णु और शिव भी देवराज इन्द्र की सहायता के लिये आये फिर भी बलपूर्वक बरदान प्रभाव से  महाबली महिषासुर के सामने सबको पराजय का मुख देखना पड़ा और देवलोक पर भी महिषासुर का अधिकार हो गया था उसकी संतानें अपना एवं अपने परिवारों के भरण पोषण की जिम्मेदारी सरकार के भरोसे छोड़ना चाहें और ऊपर से कहें कि हम तो महिषासुर के बंशज हैं तो ये तो महिषासुर की भी बेइज्जती करानेवाली बात है !इसलिए इसे सच नहीं माना जा सकता और न ही ये प्रमाणित ही है !

अब जानिए महिषासुर ब्राह्मण कैसे है ?

     ब्रह्मा के छः मानस पुत्रों में से एक थे 'मरीचि' !जिन्होंने अपनी इच्छा से कश्यप नामक प्रजापति पुत्र उत्पन्न किया।महर्षि कश्यप की दो पत्नियाँ थीं दिति और अदिति। अदिति की संतानों को देवता माना गया ।     दिति की संतानें दैत्य कहलाईं इन्हीं के पुत्र हिरण्यकश्यप एवं हिरण्याक्ष नाम से प्रसिद्ध हुए। हिरण्यकश्यप की संतान ही भगवद्भक्त प्रह्लाद जी थे। यहाँ  विशेष बात यह है कि महर्षि कश्यप की संतान होते हुए भी हिरण्यकश्यप आदि ने आसुरी संस्कृति अपनायी अर्थात भगवान की जगह अपने को स्थापित करते रहे जबकि पुत्र प्रह्लाद ने भक्ति पंथ को अपनाया और भगवान के श्रेष्ठ भक्त हुए। इसलिए एक ही वंश में यह दोनों प्रकार की संस्कृतियाँ  देखी जा सकती हैं।अतएव देवता हों या दैत्य(असुर) ये विचारधारा है न कि जाति । इसे किसी वंश की परंपरा से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।
   अब जानिए महिषासुर की उत्पत्ति कैसे हुई ?
    कश्यप की बारह पत्नियाँ थीं।अदिति, दनु, विनता, अरष्ठा, कद्रु, सुरसा , खशा, सुरभी, ताम्रा, क्रोधवशा, इरा और मुनि इन से सब सृष्टि हुई।दक्ष की पुत्री ‘दनु’ जो कश्यप ऋ़षि को ब्याही थी, इनसे रम्भ और करम्भ नामक कश्यप ऋषि के दो अत्यंत वीर पुत्र हुए पिता ब्राह्मण थे तो ये भी ब्राह्मण ही थे । 
     रम्भ और करम्भ दोनों को संतान नहीं हुई। इसलिए पुत्र की प्राप्ति का लालषा  में ये दोनों पंचनद नामक पावन तीर्थ के पास तपस्या करने चले गये। बहुत वर्षों तक तपस्या करते रहे, जहाँ ग्राह के द्वारा करम्भ मारा गया। भाई के वध से दुःखी होकर रम्भ अपने हाथ में तलवार लेकर अपना सिर काटकर अग्नि में आहुति देना चाहता था, इसी बीच अग्निदेव प्रकट हुए और उसका हाथ पकड़ लिया और रम्भ से कहा कि तुम्हें जो चाहिए वर माँग  लो। रम्भ ने कहा देव! मैं त्रैलोक्य विजयी पुत्र चाहता हूँ । वह पुत्र अपनी इच्छा अनुसार स्वरूप धारण कर सके।अग्निदेव ने रम्भ को वरदान दे दिया और कहा कि जिस सुन्दरी को देखकर तुम्हारा मन डिग जाए, उससे महान पराक्रमी पुत्र पैदा होगा और अग्नि देव चले गये। 
    एक दिन कामभाव से एक भैंस पर रम्भ की दृष्टि पड़ी। वह उससे अनुरक्त हो गया और उसी के संसर्ग से भैंस गर्भवती हो गयी। इस संसर्ग को किसी दूसरे भैंसे ने देख लिया था। इर्ष्यावश वह रम्भ पर झपट पड़ा। रम्भ और उस भैंसे में घोर संघर्ष हुआ और रम्भ मारा गया। यह देखकर गर्भिणी भैंस रम्भ के साथ सती होने के लिए चिता में बैठ गयी, उसी समय चिता के मध्य से महिषासुर और रक्तबीज नामक दो महा वीर प्रकट हुए।रम्भके अंश से उत्पन्न होने के कारण ये दोनों भी ब्राह्मण ही कहे जाएँगे !
   ये दोनों महाबली रम्भ की संतान के रूप में विश्व प्रसिद्ध हुए। महिषासुर ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करके उनसे वरदान माँगा  कि देवता, दैत्य और मानव इनमें से कोई भी मुझे न मार सके तथा मेरा वध किसी स्त्री के हाथों से हो। ब्रह्मा जी ने एवमस्तु कर दिया। इसीलिए भगवती दुर्गा ने स्त्री स्वरूप में आकर उसका वध किया।
    भगवती दुर्गा के साथ-साथ महिषासुर की पूजा का भी विधान मिलता है। आखिर वह कितना पुण्यवान होगा जब भगवती के दर्शन प्राप्त हुए और उनके हाथों से अत्यंत दिव्य मृत्यु को प्राप्त किया।

दुर्गा जी की पूजा करते समय महिषासुर की पूजा का शास्त्रीय विधान है -   बाम भागेग्रतो देव्या छिन्नशीर्षं महासुरम् । 
 पूजयेत् महिषं येन प्राप्तं सायुज्यमीशया ॥  
    इसका अर्थ है कि दुर्गा जी की पूजा करते समय देवी के सामने बाएँ भाग में कटे मस्तक वाले महादैत्य महिषासुर का पूजन करना चाहिए  जिसने भगवती के हाथ से सायुज्य  मुक्ति पाई थी । 
    ये प्रमाणित कथा है जो पुराणों और शास्त्रों के प्रमाणों को नहीं मानते ऐसे लोग यदि महिषासुर के विषय में कोई भी जानकारी रखते हैं तो उसके आधारभूत प्रमाण क्या हैं आखिर वो किस आधार पर कल्पना प्रसूत बातें किया करते हैं जो अप्रमाणित होने के कारण मान्य नहीं हैं । इसलिए  इसके अतिरिक्त कोई कुछ भी लिखे, बिना प्रमाण दिये इन थोथी बातों के  कोई प्रमाण हैं तो उन्हें देने-दिखाने चाहिए ! मैं अपनी बात के समर्थन में संपूर्ण प्रमाण आवश्यकता पड़ने पर समाज के सामने रखने को तैयार हूँ ।
   दलितलोग  यदि महिषासुर के बंशज होते तो आरक्षण कभी नहीं माँगते !
     ब्रह्मा जी से वर प्राप्त करके लौटने के बाद समस्त दैत्यों ने प्रबल पराक्रमी महिषासुर को अपना राजा बनाया। उसने दैत्यों की विशाल वाहिनी लेकर पाताल और मृत्युलोक पर धावा बोल दिया। समस्त प्राणी उसके अधीन हो गये। फिर उसने इन्द्रलोक पर आक्रमण किया। इस युद्ध में भगवान विष्णु और शिव भी देवराज इन्द्र की सहायता के लिये आये, किन्तु महाबली महिषासुर के सामने सबको पराजय का मुख देखना पड़ा और देवलोक पर भी महिषासुर का अधिकार हो गया।
     ऐसे परं वीर महिषासुर की संतानें यदि ये कहें कि मेरा शोषण सवर्णों ने किया था इसलिए हम पिछड़ गए !या हम दबे कुचले लोग हैं इसलिए हम बिना आरक्षण के तरक्की नहीं कर सकते !हम शिक्षा में अच्छे नंबर नहीं ल सकते फिर भी हमें आरक्षण के द्वारा नौकरी चाहिए सरकारें कृपापूर्वक हमलोगों के जीवन का बोझ ढोती रहें क्योंकि हमारी संख्या अधिक है हमवोट उसी को देंगे जो सरकार हमें कमाकर खिलाने को तैयार हो और हमारी सारी  सुख सुविधाओं का ध्यान रख सके वो हमसे वोट ले !आदि आदि कायरता पूर्ण बातें वीर महिषासुर के बंशज कैसे कर सकते हैं ये तो महिषासुर की बेइज्जती कराने वाली बात है । इसलिए दलित महिषासुर के बंशज थे ये बात निराधार एवं अप्रमाणित होने के कारण विश्वास करने योग्य ही नहीं है ।

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