मंगलवार, 7 जून 2016

महिलाएँ हों या पुरुष अपने जीवनसाथी से संतुष्ट हों तो शरीरों का विज्ञापन क्यों करें ?

    जिसके जीवन में वैकेंसी खाली ही न हो वो भी शरीर विज्ञापन करे तो भरोसा ही नहीं करना चाहिए कि ये जिंदगी साथ निबाहने के मूड में है ?
   यदि विज्ञापन है तो उसका उद्देश्य दूसरों को आकर्षित करना नहीं तो क्या है और दूसरों में यदि कोई तलाश नहीं है तो उन्हें आकर्षित करने की भावना क्यों ?
   जो आकर्षित होंगे वो कितना हो जाएँगे इसका रिमोट कंट्रोल किसी के हाथ में नहीं होता यहाँ तक कि जो आकर्षित हो रहा होता है उसके हाथ में भी नहीं होता है अपने को आकर्षित होने से रोकना !तभी तो ऐसे आकर्षित लोग मरने या मार देने पर उतारू हो जाते हैं ऐसे लोगों को सरकारों के द्वारा निश्चित की गई फाँसी जैसी कठोर सजा भी झुनझुना बजाने जैसी लगती है क्योंकि जिस पर आकृष्ट हुए हैं वो मिले या मरें तीसरा तो उनके पास आप्सन ही नहीं होता !ऐसी  परिस्थिति में शारीरिक विज्ञापनों का अर्थ महिलाओं से संबंधित अपराधों को प्रोत्साहित करना नहीं तो क्या है !
     इसी आकर्षण पर श्री राम रावण का और महाभारत का युद्ध हुआ और भी कई बड़े युद्ध इसी आकर्षण के कारण हुए जबकि तब अंगप्रदर्शन केवल वेश्याएँ करती थीं आम लोगों में ऐसी ललक नहीं थी लोग अपने अपने गृहस्थ जीवन से संतुष्ट होते थे आपस में ही एक दूसरे पर  भरोसा करके प्रेम  पूर्वक जिंदगी बिता लिया करते थे । वो अपनी सुंदरता से केवल एक दूसरे को ही आकर्षित करना चाहते थे!इस विषय में महिलाएँ अधिक सतर्क रहती थीं इसीलिए वो पर्दा करती थीं परदे का अर्थ ही था क्लोजिंग अर्थात नो वैकेंसी !
    वे महिलाएं बड़ी बुद्धिमती होती थीं उन्हें अपने शरीरों की सुरक्षा अपने बल पर करना आता था इसीलिए वे सुरक्षित थीं वे लुच्चे लखेरे लोगों को मुख ही नहीं लगाती थीं किंतु फैशनेवल जगत में भले लोग होते कहाँ हैं फैशनपरस्ती का मतलब ही है अपने को वैसे लोगों के लिए तैयार करना !
    पर्दा जैसी पृथाओं का अर्थ और इफेक्ट समझती थीं पुरानी समझदार महिलाएँ इसलिए ख़ुशी ख़ुशी किया करती थीं ऐसा !इसीलिए  शरीर प्रदर्शन की तब किसी को आवश्यकता ही नहीं थी !अब तो किसका कौन सा अंग कहाँ कितना कैसे प्रदर्शित करना है इसका निर्णय दरजी ले रहे हैं पहनने वाला ये सोच के पहन रहा है कि फैशन है किंतु वो कुंद बुद्धि ये क्यों नहीं समझता फैशन का अर्थ डॉक्टर की दवाई नहीं होता !
    फैशन के नाम पर पहने जाने वाले आधे चौथाई कपड़े पहनने का उद्देश्य हो या ब्यूटीपार्लरों में  विज्ञापन योग्य बनाए जा रहे शरीर मालिकों का उद्देश्य आखिर क्या होता होगा यही न कि हमें बुरे लोग बुरी निगाह से देखें !या अच्छे लोग भी बुरी नजर से देखें !पोशाकों में दरजी जो जगहें काटता या उभरता है उसका मतलब क्या ये नहीं होता कि इसे यहाँ यहाँ पर देखो !
     श्रृंगार और विज्ञापन के अंतर को समझा जाए !श्रृंगार तो शरीरों की शोभा है किंतु फैशनों ब्यूटीपार्लरों में की जाने वाली पेंट पोताई को श्रृंगार नहीं कहा जा सकता है ऐसे शरीरविज्ञापनों की आवश्यकता तो शरीर व्यापारियों को होती है जो बिकाऊ नहीं है उसे इसकी क्या जरूरत !
    विज्ञापन सच नहीं होते !यही कारण है विज्ञापन के बल पर किए गए विवाह विज्ञापन धुलते ही धूल जाते हैं अर्थात तलाक तक पहुँच जाते हैं अन्यथा आधे चौथाई कपड़े पहन पहन कर अपना अपना मार्केटवैल्यू लगवाने का औचित्य क्या है जिसका जब जहाँ जैसे सौदा पटा सो चलता बना ! यही तो हो रहा है आजकल !अन्यथा
जो विवाहित हैं वैकेंसी खाली ही नहीं है उनके शरीरों का विज्ञापन क्यों ?

               पर्दा होने और न होने का अंतर !  
  हमें यह भी याद रखना चाहिए कि रसगुल्लों से भरा थाल लेकर हम कितनी भी देर चौराहे पर बैठे रहें  किंतु यदि उन पर पर्दा पड़ा है तो उन्हें खाने के लिए न कोई ललचाता है न  उनका भाव पूछता है और न ही उनकी कीमत लगाने की ही हिम्मत करता है किंतु यदि उन पर से पर्दा हटा लिया जाए तो देखने वालों की लार भी  बहने लगती है लोग भाव भी पूछने लगते हैं और कीमत भी लगाने लगते हैं ! 
    पर्दा पृथा के पीछे का भाव महिलाओं से शत्रुता न होकर अपितु महिलाओं की सुरक्षा था !पर्दापृथा हटी सुरक्षा संकट में आखिर कोई तो जिम्मेदारी ले महिलाओं की सुरक्षा की !पुलिस के बश की नहीं है महिला सुरक्षा और न ही सरकार से उम्मींद की जानी  चाहिए इन्हें कुछ करना होता तो अब तक कर चुके होते और जो करना था वो कर चुके !अब तो खुद ही करना है जो करना है । सुरक्षा कम स्वरक्षा का अभ्यास करना चाहिए !
     हमारे शारीरिक भूगोल का सबसे बड़ा अनुभव हमें होता है कि हमारे शरीर के दर्शनीय स्थल कौन कौन से हैं और पर्यटकों के लिए किन्हें खुला छोड़ना है किन्हें बंद रखना है !नदी नाले पहाड़ उपवन सरोवर रूपी तीर्थों के कपाट कब खोलने हैं कब बंद रखने हैं किसके सामने खोलने हैं किसके सामने बंद रखने हैं कौन दिखाने हैं कौन छिपाने हैं ये सारा निर्णय उस शरीर के मालिक का अपना होना चाहिए जो उस शरीर को धारण करता है किंतु उसका निर्णय फैशन बनाने वाले लोगों और कपड़े बनाने वाले दर्जियों पर नहीं छोड़ देना चाहिए !अन्यथा वो ऐसी ऐसी जगह कपडे काट देंगे कि कपड़े पहनने की प्रासंगिकता ही समाप्त हो जाएगी !इसलिए हमारी वेषभूषा का निर्णय हमारा अपना होना चाहिए !
     यदि हम अपने को मूल्यवान समझते हैं तो हमें अपने को उनसे बचाकर चलना चाहिए जिनसे हमारी सुरक्षा को खतरा है हमें वैसे नहीं रहना चाहिए जैसे  रहने से हमारी सुरक्षा पर संशय हो !
     फैशन के नाम  पर किसका कौन सा कपड़ा दरजी ने कहाँ कहाँ काट दिया हो पता नहीं किंतु इतना होश तो पहनने वाले को भी रखना चाहिए कि हमारे शरीर में ऐसा कौन सा दर्शनीय स्थल है जिसे दरजी ने जिसे पर्यटकों के लिए खुला छोड़ना इतना जरूरी समझा है । 
     महिलाओं के दिमाग में खुलेपन और फैशन की  हवा वो लोग भरा करते हैं जिनका महिलाओं की सुरक्षा से कोई लेना देना ही नहीं होता वे महिलाओं को केवल एक मशीन समझते हैं ऐसे भटके हुए विचारकों को खुले मंच पर चुनौती है कि वो उपाय भी तो सुझाएँ कि महिलाओं की सुरक्षा के बारे में वे क्या सोचते हैं !सभी महिलाओं को पुलिस कैसे और कहाँ तक रखावे !अगर पुलिस के बश का होता तो ठीक हो जाता अबतक किंतु सारे उपाय करने के बाद भी महिलाओं के प्रति हो रही हिंसात्मिका घटनाएँ चिंतनीय हैं !यदि पर्दा पृथा बंद हुई और महिलाओं के खुलेपन का समर्थन किया गया तो इसका लाभ क्या हुआ !
    कुछ दिमागी दिवालिया लोगों की सीख में आकर फैशन के नाम पर आए दिन हो रही हैं महिलाओं की हत्याएँ आखिर पर्दा पृथा बंद करवाने वाले महिला शरीरों के खुलेपन  के समर्थक लोग सरकारों को कोसने के अलावा महिलाओं की सुरक्षा के लिए खुद क्यों नहीं करते हैं कुछ !
    भाई-बहनों, पिता-पुत्रियों, मामा-भांजियों, चाचा -भतीजियों,  देवर- भाभियों , ससुर और बहुओं के संबंध पहले तो नहीं सुने जाते थे इतने किंतु आज कल तो अक्सर सुनने को मिल जाते हैं ये पर्दा पृथा को बंद कराने के साइड इफेक्ट हैं । मजे की बात ये है कि पर्दाविरोधियों के पास इस बात के जवाब भी नहीं हैं  और न ही महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई प्रभावी चिंतन केवल अपनी बासनात्मिका दृष्टि का चारा तैयार करने के लिए किया करते हैं पर्दा पृथा का विरोध !
     आज महिलाओं की सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती है समाज में राक्षसी वृत्तियाँ महिला शरीरों को देखकर जिस तरह से पागल होती देखी जा रही हैं उसमें फैशन जैसी चीजों की उपेक्षा करके सबसे पहली प्राथमिकता सुरक्षा को दी जानी चाहिए जिसके लिए पर्दा पृथा और सतर्कता दोनों आवश्यक हैं सरकारी सुरक्षा तो होनी ही चाहिए किंतु रोड पर निकलने वाली हर महिला को सिक्योरिटी नहीं दी जा सकती !ये आम लोगों की बात है रही बात बड़े लोगों की वे कोठी से निकले गाड़ी में बैठ गए कई के पास तो सिक्योरिटी भी होती है वे जैसे चाहें वैसे रहें किंतु उनकी नक़ल आम महिला नहीं कर सकती !इसलिए मुख ढकना पड़े तो ढकें किंतु अपने बहुमूल्य जीवन की सुरक्षा का लक्ष्य सर्वोपरि रखें !
      यदि पर्दा नहीं तो कोई और रास्ता भी नहीं है खुली समाज में खुलेपन में रहने वाली महिलाओं की सुरक्षा का ! जैसे बहुत बड़ा बहुमूल्य खजाना लेकर वो भी खुला कंगलों की बस्तियों से निकलना बुद्धिमानी नहीं होती उसी प्रकार से महिला शरीरों के भुक्खड खुले शरीरों को देखकर कब कहाँ आपा खो बैठें किसको पता !कोई दुर्घटना घटने से पहले कम्प्लेन कैसा और घटना घटने के बाद कम्प्लेन का लाभ क्या ? जो कुछ होना था वो हो गया अब अपराधी को फाँसी भी हो जाए तो पीड़ित को क्या लाभ !इसलिए समाज के कुछ नासमझ थोथे लोग महिला समाज में खुलेपन के नामपर हवा भरा करते हैं किंतु सुरक्षा की बात कर दो तो वो लोग दाँत चिआर देते हैं !

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