" श्रीकृष्णं वंदे जगद्गुरुम् "
दो. जगदगुरु श्रीकृष्ण हैं सकल ज्ञान भंडार ।
सबके अंदर बैठि के बाँटत बुद्धि अपार ॥
दो. जहाँ सहारा कोई नहिं मिलत न कैसेहु थाह ।
अँगुरी पकरे कृष्ण जी तबहुँ दिखावत राह ॥
दो. कृपाचार्य गुरुद्रोण ने भी जब छोड़ा साथ ।
तब निराश लखि द्रोपदिहिं वस्त्र बने यदुनाथ ॥
दो. गीता को उपदेश उत रथ हाँकत यदुनाथ ।
कहौ गुरू अस कौन जग जो रण में जूझत साथ ॥
दो.ग्वाल बाल अरु गोपियाँ कहहु कवन विद्वान ।
ते ऊधौ ते आस भिड़े कि फिरत बचावत प्रान ॥
दो. जगदगुरु श्रीकृष्ण हैं सकल ज्ञान भंडार ।
सबके अंदर बैठि के बाँटत बुद्धि अपार ॥
दो. जहाँ सहारा कोई नहिं मिलत न कैसेहु थाह ।
अँगुरी पकरे कृष्ण जी तबहुँ दिखावत राह ॥
दो. कृपाचार्य गुरुद्रोण ने भी जब छोड़ा साथ ।
तब निराश लखि द्रोपदिहिं वस्त्र बने यदुनाथ ॥
दो. गीता को उपदेश उत रथ हाँकत यदुनाथ ।
कहौ गुरू अस कौन जग जो रण में जूझत साथ ॥
दो.ग्वाल बाल अरु गोपियाँ कहहु कवन विद्वान ।
ते ऊधौ ते आस भिड़े कि फिरत बचावत प्रान ॥
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