व्यापार
में भरोसा ज़माने के लिए संन्यास !किंतु श्रद्धावान समाज के साथ यह धोखा
नहीं है क्या ! चरित्रवान संत लोग जूस बेचेंगे क्या ?
संन्यासी वेष भूषा पर असीम आस्था रखते हैं भारतीय !कुछ बड़े
बड़े व्यापारी लोग धार्मिक दिखने के लिए चंदन टीका लगाने लगते हैं कुछ चालाक
व्यापारी तो पूरी की पूरी वेष भूषा भी संन्यासियों जैसी बना लेते हैं और
फिर बोलते हैं सौ प्रतिशत झूठ । इससे व्यापार तो चल जाता है किंतु संन्यास
का हो जाता है सत्यानाश !आखिर व्यापार चलाने के लिए वैराग्य का पाखंड क्यों
?कहीं चैरिटी करने वाले व्यापारियों की संपत्तियाँ बढ़ाते देखी जाती हैं
क्या !
साधू
संतों को यदि सामाजिक कार्य या व्यापार ही करना हो तो संन्यासी होने का
ड्रामा क्यों करना !ऐसे लोगों के झूठ पर समाज भरोसा करने लगे केवल इसलिए दाँव
पर लगा दिया गया है संन्यास जैसा पवित्रतम व्रत ! ऐसे व्यापारियों के लिए
गृहस्थी क्या बुरी थी !जब जीना ही भोगों के लिए है वहाँ भी तो किए जा सकते
थे सामाजिक कार्य !
साधू संतों का सम्मान सनातन धर्म में सबसे ऊपर है भगवन श्री राम, श्री
कृष्ण आदि ने भी संतों की अमित महिमा बताई है अतएव साधू संतों के गौरव को
घटने का मतलब है धर्म का गौरव घटना इसलिए साधू संतों के समुदायों की ओर से
शास्त्र सम्मत समाज निर्माण की अगुआई होनी चाहिए और शास्त्र सम्मत आचार
व्यवहार पर हम सभी को चलने का प्रयास होना ही चाहिए इसमें हमारे साधू संत
भी क्यों न हों !
जहाँ
तक बात सामाजिक कार्यों की है तो कुछ क्षेत्रों में अपराधियों किडनैपरों
आदि की भी उनके अपने क्षेत्रों में सामाजिक कार्यों के माध्यम से गुडबिल
बहुत अच्छी बनी हुई है वो एक तरफ धोखाधड़ी करके धन संग्रह करते हैं फिर
उसी से अपनी बिलासिता की सभी वस्तुओं का संग्रह करते हैं फिर उसी में से
दशांश निकाल कर गरीबों की मदद करते हैं गरीब कन्याओं की शादी कराते हैं
पढ़ने पढ़ाने आदि की व्यवस्था करते हैं उनका शोषण नहीं होने देते इसी कारण से
वहाँ का समाज उनके साथ घुलमिल जाता है और उनकी मदद करने लगता है और लोग
अपने स्वार्थों के कारण उन्हें अपना अन्नदाता समझने लगते हैं जबकि शासन
प्रशासन उन्हें अपराधी मानता है नक्सली आदि इसी भावना के उदाहरण हैं
!बुन्देल खंड में एक ऐसे ही कुख्यात व्यक्ति का नाम भी इसका उदाहरण है!
इसलिए सधुअई का प्रमाण यदि केवल समाज सेवा है तो अपने अपने हिसाब से समाज सेवा तो सभी कर रहे हैं।चोर
छिनार लुटेरे हत्यारे भ्रष्टाचारी आतंकवादी घूसखोर कामचोर आदि सभी प्रकार
के अपराध करने वाले लोगों से बात करके देखो वो अपने अपने अपराध को सामाजिक
कार्य की तरह ही प्रस्तुत करते हैं जैसे आतंकवादियों ने अपने को जेहादी कह
दिया आदि आदि ! एक किडनैपर जब किसी आदमी को उठा
कर फिरौती माँगता है तो वो उसे अपना अधिकार और कर्तव्य समझता है वो सोचता
है कि हम लोगों का शोषण करके ही इसने इतना धन इकठ्ठा किया है इसलिए इसे
हमारे और हमारी समाज के काम में आना चाहिए !
एक
बलात्कारी जब किसी लड़की को सार्वजनिक जगह पर किसी लड़के के साथ अश्लील हरकत
करते या सहते देखता है तो उसके भी मन में विकार उत्पन्न होते हैं और वो उन
दोनों को सबक सिखाने की ठान लेता है और अपने हिसाब से समाज सुधार करते
करते अपराध कर बैठता है !
इसी
प्रकार से समाज में लगभग सभी प्रकार के अपराधी अपने को समाज का हितैषी
सिद्ध करने की कोशिश करते रहते हैं किंतु समाज का एक कानून होता है जिसका
पालन मिलजुल कर हम सबको करना होता है जो नहीं करते हैं वे अपराधी !इसी
प्रकार से हर धर्म का कोई न कोई धर्मग्रन्थ होता है जिसके अनुशासन में उसके
अनुयायियों को रहना होता है । जहाँ तक बात हिंदू धर्म की है तो इसके भी
नियामक बड़े बड़े धर्मशास्त्रीय ग्रंथ हैं जिनका पालन धर्म पर विश्वास रखने
वाले हर किसी को अपने अपने स्वीकृत कर्तव्य की मर्यादा में रहकर करना होता
है इसके अलावा किसी भी प्रकार की दलील बेकार है !सौ की सीधी एक बात वो यह
कि जो व्यक्ति परिवार पत्नी और सभी प्रकार के प्रपंच छोड़कर विरक्त भावना
से संन्यास लेकर घर से निकल पड़ा फिर वहाँ यदि उन्हीं प्रपंचों में पड़ना था
तो वैराग्य लेना जरूरी क्यों था ?
एक सुंदरी महिला गृहस्थ धर्म का निर्वाह करती हुई किसी परपुरुष के संबंध
जन्य हादसे का शिकार हो गई जिससे उसके निजी जीवन में तनाव रहने लगा तो वो
एक बाबा जी के पास अपनी दुःख तकलीफ बताने पहुँची किंतु बाबा जी को वो पसंद आ
गई तो उन्होंने उसे समझाते हुए कहा कि ये पति तो तुम्हारा सात जन्मों का
शत्रु है ये कभी भी तुम्हारी हत्या कर सकता है तुम यहीं आश्रम में रहो यह
सुनकर गृहकलह से तंग उसे बड़ी राहत मिली और वो वहीँ रहने लगी धीरे धीरे बाबा
जी की नजदीकियाँ बढ़ीं और वो गर्भिणी हो गई प्रसव के लिए किसी ले के घर यह
कहकर भेज दी गई कि ये गर्भिणी ही अपने घर से आई थी बच्चा हो गया !वो भी
रहने लगा वहीँ ! एक दिन कोई समाज सुधारक उस महिला के पूर्व प्रेमी के पास
गया उससे पूछा कि तूने उस महिला की जिंदगी क्यों बर्बाद कर दी !तो उसने कहा
कि वो इतनी सुन्दर और अच्छी औरत थी ये सब उसकी कदर करनी ही नहीं जानते थे
तो मैंने उसे सहारा दिया ! तो इसमें गलत क्या हो गया ?
यह
सुन कर वो समाज सुधारक बाबाजी के पास पहुँचे उनसे पूछा कि आपने इसे अपने
आश्रम में इस रूप में उसे क्यों रखा तो उन्होंने कहा इस बेचारी के घर में
कलह था इसलिए रखना पड़ा ! चलो खैर ,फिर आपने संबंध क्यों बनाए बोले देखो
साधू मैं था ये तो नहीं थी ये युवा थी इसे संबंधों की आवश्यकता तो थी ही
तो इसकी जरूरतों को पूरा करना हमारा धर्म था अन्यथा आज नहीं कल आश्रम के
बाहर किसी से संबंध बनते अपयश होता तो मैंने सोचा हमारे साथ होने में कोई
अपयश नहीं होगा आश्रम की बात आश्रम में ही बनी रहेगी फिर उसको बच्चा हुआ
बोले उसमें किसी का कोई दोष नहीं है वो तो ईश्वर का प्रसाद है वो करना या
रोकना किसी के बश में कहाँ होता है !
बंधुओ !इस प्रकार से उदारता पूर्वक यदि देखा जाए तो बाबा जी के सामाजिक कार्यों की सराहना होनी चाहिए किंतु ऐसे ही उदार सामाजिक कार्यकर्ता एक बाबा जी की समाज सेवा शासन और प्रशासन से पच नहीं पा रही है और लंबे समय बाद भी जमानत मिलना कितना कठिन हो रहा है जबकि अब सरकार भी बदल गई है!ऐसी परिस्थिति में इसे सामाजिक कार्य कर्ताओं का अपमान मानना चाहिए या नहीं ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें