मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

पाक को पराजित किए बिना कैसी विजयादशमी !

  सर्जिकल स्ट्राइक पर अटके हैं हम और लंका पर  विजय पाई थी श्रीराम ने !
  अब तो कश्मीर घाटी में मनाया जाए दशहरा और दहन हो प्रत्यक्ष आतंकवाद का !दुनियाँ देखे कि श्री राम के अनुयायी हैं हम ! रावण का बध  करके लंका फतह करने वाले  भक्तों में आज भी श्रीराम का शौर्य  !श्रीराम ने अपने युग का आतंक समाप्त किया था हमें चाहिए कि हम अपने युग का समाप्त करें ! त्रेता युग की लड़ाई का ढिंढोरा पीटने वाले हम आखिर कब तक आतंकवाद से मुख छिपाते रहेंगे !अभी अपनी जिम्मेदारी निभाने का समय है फिर मनाएँगे विजय पर्व !
    अरे सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो माँगने वाले कायरो !जहाँ एक एक क्षण प्राणों  पर बीतती है उस संकटघड़ी का वीडियो माँग रहे हैं मक्कार बेशर्म लोग !अरे गद्दारो  !असली पिता की संतान होने का यदि थोड़ा भी गौरव है और अपनी  माँ के दूध की यदि थोड़ी भी लज्जा है तो खुद क्यों नहीं उठाते हो हथियार !वीडियो पर क्यों प्रत्यक्ष क्यों नहीं लेते हो जंग का आनंद !
     रावण के पुतले पर बहादुरी दिखाने वाले हम लोगों को चाहिए कि श्री राम के व्यवहार से कुछ सीखें भी उस समय लंका के आतंक से लोग परेशान थे आज पकिस्तान के आतंक से परेशान हैं श्री राम ने अपने युग का आतंक समाप्त करने के लिए लंका पर चढ़ाई की थी हम पाक पर क्यों न करें चढ़ाई ! हम लोगों में श्री राम जैसे संस्कार क्यों नहीं हैं !
    रावणों के द्वारा रावण का पुतला जलाने से अच्छा है श्री राम और सीता जी के कुछ संस्कार भी अपनाएँ जाएँ !रावण जैसे कुसंस्कारों से राम जैसा महत्त्व पाने की आशा हमें नहीं रखनी चाहिए और सूर्पणखाओं को नहीं मिल सकता है भगवती सीता जैसा सम्मान यह सोचकर हमें केवल रावण फूँकने की बजाए संस्कार सृजन के लिए भी कुछ सोचना चाहिए !
    भावी पीढ़ियाँ क्या प्रेरणा लेंगी इस पर्व से यही न कि रावण का पुतला जलाने के लिए मनाना होता हैदशहरा !
    हममें अपने को कोसने का साहस नहीं है तो चलो रावण का ही पुतला जलाकर वीर बन जाते हैं । हम रामभक्त बन नहीं पाए केवल ढिंढोरा पीटते रहे और रावण बनने की हिम्मत नहीं है इसलिए  मजबूरी में चलो रावण का पुतला ही जलाकर मना लेते हैं दशहरा !रावण के किस पाप के कारण उसे जलाया जाता है क्या कभी चिंतन किया इसका !वह सीता जी को प्रणाम करके अपने यहाँ ले गया था ।
               " मन महुँ चरन बंदि सुखु माना "  
     संबंधों का निर्वाह करना जानते थे राक्षस हम तो संबंध और संस्कार भूलते जा  रहे हैं !फिल्म वाले जो सिखावें वो संस्कार और केवल ससुराल वालों के संबंध ही सम्बन्ध कहीं ये तो नहीं है कि हम इतने अधिक कामी होते जा रहे हैं कि जहाँ सेक्स वहाँ संबंध बाक़ी सब बेकार !बहनों से हमारा वो लगाव नहीं है जो प्रेमिकाओं से होता है क्यों ?ससुराल सौ चक्कर जाते हैं बहनें तरसा करती हैं राखी बाँधने को उन्हें हम व्यस्तता की मजबूरियाँ बताया करते हैं और पार्कों पर्किंगों झाड़ी जंगलों में प्रेमिकाओं के पैर चाट रहे होते हैं उनकी गालियाँ खा रहे होते हैं !
हमारा लिखा हुआ काव्य है ये !
उधर रावण को  देखिए अपने बहन के अपमान का बदला  लेने के लिए के सारे खान दान के सहित मर मिटा !
 माता पिता के प्रति पूज्य भावना होती तो क्यों बनते वृद्धाश्रम !
     ये वृद्धाश्रम हमारे संस्कार भ्रष्ट होने के प्रतीक हैं श्री राम ऐसे थे क्या ?पिता के बचन पर वे बन गए थे बहू सीता ने भी उनका पूरा साथ दिया था !इतने नीच तो राक्षस भी नहीं थे माता पिता की भक्ति के संस्कार तो उनमें भी थे रावण ने बुढ़ापे में सीता हरण किया था उसके कारण युद्ध हुआ था पूरा परिवार युद्ध में जूझ गया किंतु किसी ने नहीं कहा कि पिता जी सीता जी को वापस लौटा दो ये राक्षसों की पिता भक्ति थी !
       पुरुषों एवं महिलाओं की चोटी को हमेंशा पति और पत्नी प्रेम से जोड़कर देखा जाता था अर्थात शिखाबंधन सिद्धांत निष्ठा इसी प्रकार से महिलाओं में एक चोटी एक पतिनिष्ठा जितनी चोटी उतने के प्रति निष्ठा और खुले बाल पतिबंधन मुक्त जीवन जो जिससे चाहे जुड़े !उस समय लंका में केवल त्रिजटा की तीन चोटियाँ थीं इसलिए औरों की अपेक्षा वो कुछ ठीक लगती थी वैसे तो बाल खोलकर रहने की वहाँ परंपरा थी।अपने यहाँ भी महिलाओं के बाल खोलने का मतलब होता था पति संबंध को चुनौती जबकि सीता जी की एक चोटी थी किंतु आज तो लंका जैसा ही अपने देश का भी वातावरण है हम उस समय के राक्षसों से केवल साहस में कम हैं बाकी तो सब वही हैं । 
      ब्यूटीपार्लर लंका की संस्कृति थी बूढ़ी सूपर्णखा वहीँ से तो अचानक जवान बनकर आ गई थी । आधे चौथाई कपडे पहनने का प्रचलन भी लंका का है अपने यहाँ तो घूँघट की परंपरा थी अपने यहाँ पहले ब्लाउजों में भी पीठ पर विज्ञापन के लिए जगह नहीं छोड़ी जाती थी कुलमिलाकर जब हमने लंका जैसा आचार व्यवहार जीना शुरू कर दिया तो हमारे यहाँ भी राक्षसों जैसे बलात्कार होने लगे । 
       आज तो माँग भी माथे पर भरी जाने लगी है !फिल्मों में ऐसा होता था  तब  आता था कि माँग की जगह असली पतियों के लिए खाली रखी गई है किंतु विवाहिताओं की माँग
          रावण के यहाँ ब्रह्मा वेद पढने आते थे हमारे यहाँ तो नहीं आते हैं रावण के यहाँ शंकर जी पूजा करवाने आते थे हमारे यहाँ तो नहीं आते हैं रावण सारी विद्याओं का विद्वान था हम तो नहीं हैं ये माता सरस्वती की कृपा के बिना संभव हुआ क्या ? वायु देवता बुहारू करते थे हमारे यहाँ तो ऐसा नहीं हैं हम ठहरते कहाँ हैं रावण के सामने जो चले पुतला जलाने !हमारे देवी देवता रावण के यहाँ जाते थे हमारे यहाँ नहीं आते क्या वो डर कर उसके यहाँ जाते थे या वो इतना बड़ा भक्त था !हम फल फूल चढ़ाते हैं उधर रावण अपने शिर चढ़ाता जैसी पूजा वैसा फल ! 
   रावण वोटों की भीख माँगकर नहीं अपितु अपने पराक्रम से राजा बना था !
      पाखंडी लोग बुराई पर अच्छाई की और असत्य पर सत्य की विजय के बड़े बड़े भाषण देते हैं किंतु रावण हम लोगों के जितना तो झूठ नहीं था और न ही इतना बुरा था और न ही इतना बेईमान था न ही इतना भ्रष्ट था और नहीं ही इतना गरीबों का शोषण करता था और न ही इतना बलात्कारी था न ही इतना नास्तिक था न ही इतना मूर्ख था और न ही इतना कायर था न ही और न ही इतना भिखारी था !
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रावण के जनम का रहस्य !
रावण का पुतला ही क्यों उसकी मॉं का क्यों नहीं ?
एक बार शाम के समय रावण के पिता जी पूजापाठ संध्यादि नित्य कर्म कर रहे थे।उसी समय रावण की मॉं के मन में पति से संसर्ग की ईच्छा हुई वह रावणsee more....http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/ravan-ki-maan-kyon-nhin.html

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