आदरणीय प्रधानमंत्री जी !
सादर प्रणाम ।
सादर प्रणाम ।
विषय - वैदिकविज्ञान द्वारा चिकित्सा पर की जाने वाली रिसर्च के विषय में सहयोग हेतु निवेदन !
महोदय !
सभी प्रकार के रोगों के होने में पाँच प्रमुख कारण होते हैं पहला अपना व्यक्तिगत समय दूसरा प्राकृतिक समय (मौसम) तीसरा खानपान और चौथा आगन्तुज (चोटचभेट) और पाँचवाँ मनोविकार से होने वाले रोग !
ऐसे सभी प्रकार के रोगों के होने में अपना समय प्रमुख कारण होता है
क्योंकि जिनका अपना समय अच्छा होता है उन्हें सभी परिस्थितियाँ अपने अनुकूल
मिलती जाती हैं उनके साथ सब कुछ अच्छा होता है यहाँ तक कि वो ऐसी परिस्थितियों से भी जीवित बचकर निकल आते
हैं जिन दुर्घटनाओं से जीवित बच पाना संभव ही न हो !विज्ञान इसे कुदरत का करिश्मा मान कर भुला देता है किंतु क्यों ?
दूसरी बात सभी संसाधनों से संपन्न
रोगी अच्छे से अच्छे चिकित्सकों के द्वारा महँगी से महँगी दवाएँ लेकर
सर्वोत्तम चिकित्सकीय निगरानी में रहने के बाद भी मरते देखे जाते हैं !विज्ञान
इसे कुदरत का करिश्मा बता देता है तो ऐसी परिस्थिति में जो रोगी स्वस्थ हो
जाते हैं उसे भी कुदरत का करिश्मा ही क्यों न माना जाए उसका श्रेय
चिकित्सकीय प्रक्रिया को क्यों दिया जाना चाहिए क्योंकि जहाँ चिकित्सा के
साधन नहीं हैं या जो लोग सक्षम नहीं हैं ऐसे ग्रामीण जंगली आदिवासी
गरीब लोग भी तो बड़ी बड़ी बीमारियाँ ,चोट या सर्प आदि काटने के बाद स्वस्थ
होते देखे जाते हैं । इसीप्रकार से जंगल में पशु आपस में लड़कर एक दूसरे के बड़े बड़े घाव कर
देते हैं बिना किसी चिकित्सा के वे भी स्वस्थ होते देखे जाते हैं ।
महोदय !बीमार होने पर शहरी -ग्रामीण - जंगली ,गरीब -अमीर आदि हर व्यक्ति बीमारी दूर करने की अपने अपने स्तर से
हर संभव कोशिश करता है जिसकी जितनी पहुँच वो वहाँ तक प्रयास करता है गाँवों
जंगलों में लोग तरह तरह की बनौषधियों जादू टोनों का सहारा लेते हैं
महानगरों में साधन संपन्न लोग बड़े बड़े हास्पिटलों में बड़े बड़े चिकित्सकों
से महँगी महँगी दवाएँ लेते हैं किंतु कौन स्वस्थ होगा कौन नहीं ये निर्णय
कुदरत का अपना होता है जो स्वतंत्र होता है जहाँ किसी का बश नहीं चलता है
कुदरत का फैसला जिसके पक्ष में आता है वो उसका श्रेय अपने अपने डॉक्टरों वैद्यों तांत्रिकों आदि को देने लगता है जबकि जिसके विरुद्ध फैसला गया वो अपने अपने डॉक्टरों वैद्यों तांत्रिकों आदि को उसका दोष देने लगता है किंतु इन सबके मूल में तो कुदरत ही है क्योंकि जो चिकित्सकीय प्रक्रिया एक समय में एक को लाभ करती है वही दूसरे को नुकसान पहुँचा रही होती है ऐसी परिस्थिति में चिकित्सा प्रक्रिया और कुदरती आदेशों की सामर्थ्य को अलग अलग कैसे समझा जाए कि इन दोनों में अधिक प्रभावी कौन है और चिकित्सा में उसकी भूमिका क्या है साथ ही उस कुदरत को भी अपने अनुकूल करने के लिए भी कोई प्रक्रिया हो सकती है क्या ?
चिकित्सा के लिए अत्यंत आवश्यक इन्हीं विंदुओं पर वैदिकविद्या के
द्वारा मेरा जो शोध कार्य चल रहा है उसमें काफी कुछ सकारात्मक परिणाम
मिलते दिख रहे हैं संसाधनों के अभाव में इस काम को उतनी गति नहीं दी जा पा
रही है जितनी दी जानी चाहिए ।
अतएव सरकार से निवेदन है कि इस महत्त्वपूर्ण शोध कार्य के लिए सरकार हमारी मदद करे !
निवेदक
डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
संस्थापक :राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें