ऐसे तो सभी लोगों का अपना अपना धर्म और सभी लोगों का अपना अपना कानून होगा !कितनी अज्ञानता पूर्ण सोच है ये !
अपने गलत कामों को सही सिद्ध करने के लिए लोग कितना भी गिर जाते हैं क्या उन्हें सही मान लिया जाएगा !आखिर उनकी स्वतंत्रता का सम्मान क्यों न किया जाए ! फिर अपराधियों को अपराधी कैसे कहा जा सकता है वो उन्हें ठीक लगता है इसलिए उनके अपराध को ठीक ही क्यों न मान लिया जाए !
मैं शास्त्रीय धर्म का पक्ष रखने
के लिए उतना ही स्वतन्त्र हूँ जितना कोई और स्वेच्छाचार के लिए ! यदि ऐसा नहीं किया गया तो शराबी शराब पीने को ,बलात्कारी या अपराधी आदि सब अपने
अपने गलत कामों को सही ठहराने लगेंगे वो भी गिनाने लगेंगे अपनी मजबूरियाँ !
तो इस हिसाब से वो भी सही हैं उन्हें जो पसंद है वो करें !ये शत प्रतिशत गलत लोगों के द्वारा स्थापित धारणा है !स्वेच्छार का समर्थन नहीं किया जा सकता !
जय ललिता जी सनातन धर्मी हैं तो उनके ऊपर भी सनातन धर्म के नियम ही लागू
होंगे यदि ऐसा नहीं हुआ है तो धार्मिक दृष्टि से गलत ही माना जाएगा !किंतु
जो लोग सभी धर्मों को अपना मानते हों सभी देशों को अपना मानते हों सभी के
भाइयों बहनों बच्चों को अपना मानते हों सभी के पतियों पत्नियों को अपना
मानते हों !यदि किसी के मन में इतनी बड़ी उदारता आ जाए कि संसार की सभी
वस्तुएँ व्यक्ति आदि अपने उपभोग के लिए हों और अपना सब कुछ सबके लिए हो
सारे भेद भाव इस प्रकार से मिटा दिए जाएँ अपनों परायों में कोई भेद ही न रह
जाए ऐसे स्वच्छन्द विचार धारा वाले लोगों के लिए कोई फर्क नहीं पड़ता वो
जलाए जाएँ या दफनाए जाएँ !किंतु केवल धर्म के क्षेत्र में ही इतनी
स्वच्छंदता ठीक नहीं है ऐसा करे तो फिर सब जगह करे !उसे धर्म कर्म की चर्चा
ही नहीं करनी चाहिए क्योंकि वो या तो सभी धर्मों से ऊपर होता है या फिर
सभी धर्मों से नीचे अर्थात पातित होता है !क्योंकि वो अपने को धर्म
निर्माता समझने लगता है जिनका धर्म क्षेत्र में कोई स्थान ही नहीं है !
ऐसे कुतर्क अज्ञानी लोग गढ़ तो सकते हैं किंतु उन्हें शास्त्रों से प्रमाणित नहीं कर सकते उन्हें अपने अज्ञान का एहसास होता है प्रायः मूर्ख लोग मूर्ख मानते ही औरों को हैं जिसे अपनी मूर्खता का ज्ञान जिस दिन हो जाता है वो औरों को मूर्ख समझना बंद कर देता है !ये मूर्खता नहीं वस्तुतः ये एक प्रकार की बीमारी है कई लोग पढ़ते कुछ हैं बहस किसी विषय पर करते हैं जिस विषय को जानते नहीं उसे पढ़ा नहीं डिग्री नहीं उसके कोई प्रमाण नहीं फिर भी धर्म के क्षेत्र में टाँग फँसा लेते हैं केवल साथी बकवास के लिए !जबकि वो धर्म के विषय में क्या जानते हैं ये उन्हें भी पता होता है फिर भी खैर ... !!!!!!!!
ऐसे कुतर्क अज्ञानी लोग गढ़ तो सकते हैं किंतु उन्हें शास्त्रों से प्रमाणित नहीं कर सकते उन्हें अपने अज्ञान का एहसास होता है प्रायः मूर्ख लोग मूर्ख मानते ही औरों को हैं जिसे अपनी मूर्खता का ज्ञान जिस दिन हो जाता है वो औरों को मूर्ख समझना बंद कर देता है !ये मूर्खता नहीं वस्तुतः ये एक प्रकार की बीमारी है कई लोग पढ़ते कुछ हैं बहस किसी विषय पर करते हैं जिस विषय को जानते नहीं उसे पढ़ा नहीं डिग्री नहीं उसके कोई प्रमाण नहीं फिर भी धर्म के क्षेत्र में टाँग फँसा लेते हैं केवल साथी बकवास के लिए !जबकि वो धर्म के विषय में क्या जानते हैं ये उन्हें भी पता होता है फिर भी खैर ... !!!!!!!!
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