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राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान(रजि.)
भूमिका -
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान(रजि.)
भूमिका -
भूकंपों के विषय में अध्ययन करते समय अब हमें अपने अंदर भी कुछ सुधार कर लेने चाहिए इससे समाज को बहुत सुविधा होगी और भूकंप संबंधी अध्ययनों पर विश्वास बरकरार बना रहेगा !इस आस्था को सुरक्षित बनाए रखना बहुत आवश्यक है !
भूकंपों से संबंधित अध्ययनों पर विश्व में बहुत सारे शोधकार्य चल रहे हैं और सबका मत लगभग एक ही है क़ि पृथ्वी के अंदर गैसों का भारी भंडारण है उन्हीं गैसों के दबाओं से धरती के अंदर की प्लैटें आपस में रगड़ती हैं उस रगड़ से ही कम्पन प्रकट होता है जिसे हम भूकंप कहते हैं किंतु इस बात को तब तक सच कैसे मान लिया जाए जब तक इस तथ्य पर अध्ययन करते हुए आगे बढ़ने पर कुछ नए तथ्य सामने न आवें !क्योंकि भूकंपों के संबंध में हमारा अध्ययन अनुमान अभिव्यक्ति आदि तब तक प्रमाणित नहीं माने जा सकते जब तक तर्क युक्त कुछ मजबूत बातें समाज के सम्मुख न रखी जा सकें |
भूकंपों के लिए जिस विश्वास के साथ पृथ्वी के अंदर की गैसों के दबाव एवं उससे होने वाले धरती की आतंरिक प्लैटों के घर्षण को जिम्मेदार मान लिया जाता है जैसे सच हो जबकि दूसरे ही क्षण ये कह दिया जाता है कि भूकम्पों के आने के कारणों के विषय में अभी तक कुछ भी कह पाना संभव नहीं है इसका मतलब क्या यह निकाला जाए कि भूकंपों के विषय में आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा जो गैसों प्लेटों के घर्षण आदि की थ्यौरी दी जा रही है वो आधुनिक वैज्ञानिकों की भूकम्पों के विषय में की गई केवल कल्पना मात्र है इसमें कोई सच्चाई नहीं है!
यदि ये सब कुछ वास्तव में केवल कल्पना प्रसूत ही है है तो फिर ऐसी बातें क्यों बोली जाती हैं कि हिमालय की पर्वत श्रंखला में जमीन के अंदर गैसों का बहुत बड़ा भंडारण है उसके कारण कभी भी कोई बहुत बड़ा भूकंप आ सकता है जिससे बहुत भारी जन धन की हानि हो सकती है किंतु ये सब बातें सुनकर एक प्रश्न उठता है कि जब भूंकपों के विषय में अध्ययन करने वालों को अभी तक कुछ हाथ ही नहीं लगा है तो फिर भ्रम फैलाने एवं समाज के मन में भय उत्पन्न करने वाली बातें कही क्यों जाती हैं |यदि ये झूठ है तो बोला क्यों जाता है और यदि ये सच है तो छिपाया क्यों जाता है इसे सत्य मानकर तर्क पूर्वक स्थापित क्यों नहीं किया जाता है ?कछुए की तरह मुख निकालना और फिर अंदर कर लेने का खेल आखिर चलेगा कब तक !
भूंकपों के आने का कारण समझने की दिशा में चल रही आधुनिक विज्ञान की रिसर्च यात्रा को कितने प्रतिशत सच माना जाए !साथ ही पृथ्वी के अंदर की गैसों के दबाओं के कारण रगड़ने वाली धरती के अंदर की प्लैटों को कितना जिम्मेदार माना जाए ?साथ ही भूकंप संबंधी सच से समाज को भी अवगत करा देने में बुराई भी क्या है ?
कुल मिलाकर भूकंपों के रहस्यों को समझने के लिए केवल धरती के अंदर की गैसों प्लेटों में ही अपने को उलझाए रहना ठीक होगा या इसके अलावा कुछ अन्य विषयों का भी अध्ययन किया जाना चाहिए !
भूकंप के विषय में दो शब्द -
भूकंप जब जहाँ कहीं भी आते हैं वहाँ सब कुछ अव्यवस्थित हो जाता है चारों ओर हाहाकार मच जाता है अक्सर जब भूकंप आते हैं छोटे से लेकर बड़े तक बहुत नुक्सान होते देखे जाते हैं टीवी चैनलों पर गिरते हुए मकान फटी धरती टूटे पेड़ आदि के दृश्य वीडियो आदि दिखाए जा रहे होते हैं !आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा बार बार बताया जा रहा होता है कि भूकंप का केंद्र कहाँ था , कितना तीव्र था कितनी गहराई पर था कितने बजे आया था इसके अलावा फिर वही घिसी पिटी बातें कि जमीन के अंदर गैसें भरी हैं गैसों के दबाव से जमीन के अंदर की प्लेटें रगड़ती हैं उसी से आता है भूकंप ! वो लोग दूसरी बात बताते हैं डेंजर जोन वाली हर बार जरूर बताते हैं !चौथी बात ये कहना कभी नहीं भूलते कि निकट भविष्य में बहुत बड़ा भूकंप आएगा क्योंकि हिमालय के नीचे गैसों का भारी भंडार है |
वैज्ञानिकों के द्वारा अत्यंत विश्वास पूर्वक कही जाने वाली ऐसी बातें सुन पढ़ कर बड़ा आश्चर्य तब होता है जब एक बार तो विश्वसनीय सी लगने वाली ऐसी बातें बड़े आत्मविश्वास पूर्वक कही जाती हैं वहीँ दूसरी ओर जब अचानक ये कहा जाने लगता है कि भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता | तब सबसे बड़ा संशय इस बात का होता है कि इन दोनों बातों में सच्चाई आखिर है क्या है ?भूकंपों के विषय में कुछ पता है भी या नहीं या फिर धरती के अंदर की गैसों और प्लेटों वाली बातें भी केवल कल्पनामात्र हैं यदि ऐसा तो भूकंपों के विषय का सच क्या है |
भूकंपों के आने कारण धरती के अंदर संचित गैसों और उसके दबाव से रगड़ने वाली प्लेटों को तब तक नहीं माना जाना चाहिए जब तक उनके द्वारा दिए जा रहे तर्कों का पीछा काल्पनिकता नहीं छोड़ती है |अर्थात भूकंपों के विषय में उनके द्वारा दी जा रही गैसों और प्लेटों की थ्यौरी ही भूकंपों के आने का वास्तविक कारण है या कुछ और ये भी वास्तविक तर्कों से सिद्ध किया जाना चाहिए ! आधुनिक विज्ञान यदि इन्हीं गैसों और प्लेटों को भूकंपों के घटित होने का वास्तविक कारण मानता है तो इस थ्योरी को भी तर्कों के द्वारा और अधिक विश्वसनीय बनाया जाना चाहिए !
सरकारों में भूकंपों से संबंधित मंत्रालय होते हैं अधिकारियों कर्मचारियों की बड़ी संख्या होती है कितना धन खर्च होता होगा इस व्यवस्था पर !इन्हीं भूकंपों के विषय में रिसर्च करने के लिए विश्व के बहुत संस्थान बड़ी बड़ी धनराशि खर्च करके बड़े बड़े शोध कार्य चला रहे होते हैं बहुत धन राशि खर्च होती होगी !इसी प्रकार से विश्व के बड़े बड़े विश्व विद्यालयों में भूकंप अध्ययन अध्यापन के विभाग होते हैं शिक्षक होते हैं छात्र होते हैं शिक्षक गण भूकंपों को पढ़ा भी रहे होते हैं और विद्यार्थीगण पढ़ भी रहे होते हैं किंतु भूकंपों के विषय में जब विश्वास पूर्वक कुछ कहने की बारी आती है तब वही बात कि भूकंपों के पूर्वानुमान के विषय में कुछ कहना संभव नहीं है !फिर वही प्रश्न कि ऐसी परिस्थिति में गैसों और प्लेटों की थ्यौरी को ही को ही किस आधार पर सच मान लिया जाए !काल्पनिक सच पर शोध कैसा और पठन पाठन कैसा और क्या है इसका औचित्य ?ऐसे चिंतन में मैं निरंतर डूबा रहने लगा !चूँकि आधुनिक विज्ञान की समझ न होने के कारण आधुनिक विज्ञान की बारीकियाँ समझ पाने में सक्षम नहीं था !चूँकि मैंने आधुनिक विज्ञान पढ़ा नहीं है इसलिए आधुनिक शिक्षा से शिक्षित लोगों को मेरे मुख से भूकंप जैसी चर्चाएँ अच्छी नहीं लगती थीं |
इसके बाद मैंने पढ़ा कि भूकंप आने से पहले कुछ जीवों के स्वभावों में परिवर्तन आने लगता है !उधर जगदीश चंद वसु के वृक्ष विज्ञान पर भरोसा करते हुए मैंने वैदिक विज्ञान का स्वाध्याय प्रारंभ किया जिसमें वेद आयुर्वेद वनस्पतिविज्ञान स्वभावविज्ञान ज्योतिषविज्ञान योगविज्ञान आदि का गहन अध्ययन और मंथन करते हुए ऐसे सभी प्रकार से वैदिक ज्ञान और विज्ञान का अध्ययन करते हुए मैंने ब्रह्मांड को सविधि समझने का प्रयास किया !
मैंने पढ़ा था कि 'यत्पिंडे तत्ब्रह्मांडे' अर्थात जैसा ब्रह्मांड है वैसा ही शरीर है इसलिए ब्रह्मांड को सही सही समझने के लिए सर्व प्रथम अपने शरीर को समझना होगा इसके बाद शरीर को आधार बनाकर उसी के अनुशार ही ब्रह्मांड का अध्ययन किया जा सकता है और ब्रह्मांड के रहस्य में प्रवेश पाते ही भूकंप वर्षा एवं रोग और मनोरोग जैसे गंभीर विषयों की गुत्थियाँ सुलझाने में सफलता सकती है इसीविचार से मैं भूकंप से संबंधित रिसर्च विषयक अपने प्रयासों को आगे बढ़ाते चला गया !
कंपन- संसार में कोई भी वस्तु चलती है हिलती है या काँपती है उसका कारण केवल वायु है जहाँ वायु नहीं वहाँ गति नहीं होती है ! शरीर से जब प्राणवायु निकल जाती है तो शरीर गति विहीन हो जाता है इसी प्रकार से संसार की जिस भी वस्तु में गति है वो वायु प्रेरित ही होती है किंतु ये वायु उसके अंदर की है या बाहर की इसका निर्णय करना कठिन होता है कुछ वस्तुएँ बाहरी हवा से काँपती हैं कुछ आतंरिक हवा से काँपती हैं !
ब्रह्मांड का अध्ययन यदि मनुष्य शरीर के आधार पर करना है तो मनुष्य शरीर में चार प्रकार से कंपन होता है दो कारण ज्ञात होते हैं जबकि दो कारण अज्ञात होते हैं सर्व प्रथम ज्ञात कारणों में पहला 'कंपवात' नामक रोग हो या 'शीतज्वर' हो ये शरीर में होने वाली बीमारियाँ हैं इनके कारण शरीर के अंदर होते हैं उन आतंरिक कारणों से शरीर काँपने लगता है ये हुआ आतंरिक कंपन इसी प्रकार से बाह्य कंपन भी होता है ये 'शीतऋतु' में शरीर से स्पर्श करके जब शीतल हवाएँ निकलती हैं तो उनका स्पर्श पाकर भी शरीर में कंपन होने लगता है |उन हवाओं का शरीर के आतंरिक जगत से कोई संबंध नहीं होता है वो तो शरीर के बाह्य भाग अर्थात केवल त्वचा में स्पर्श करके निकलती हैं |
इसी प्रकार से कंपन के दो और कारण होते हैं एक आतंरिक और एक बाह्य !आतंरिक कारण वो हैं जिनमें हम अपने मन में छिपे किसी तनाव से होने वाली घबड़ाहट में काँपने लगते हैं इसी प्रकार से कई बार हम अपने शरीर से कोई भय बाहर देखते और काँपने लगते हैं सामने अचानक शेर आ जाए या कोई भयानक सर्प घेर ले डाकू या कोई हत्यारा घेर कर खड़ा हो जाए तो इनमें से एक भी कारण हो तो उससे भी शरीर काँपने लगते हैं !जबकि इनसे शरीर का कोई संबंध ही नहीं जुड़ा होता है फिर भी शेर आदि को केवल देख कर ही शरीर काँपने लगता है |
मनुष्य शरीर और ब्रह्मांड दोनों की ही गति एक जैसी है और दोनों का ही अध्ययन करते समय लगभग एक ही दृष्टि अपनानी होगी !हमें ध्यान इस बात का रखना ही होगा कि कंपन के लिए जैसे मनुष्य शरीर का केवल आतंरिक जगत ही जिम्मेदार नहीं होता है अपितु बाह्य परिस्थितियाँ भी जिम्मेदार हैं इसलिए किसी भी व्यक्ति या वस्तु के कंपन का कारण जानने समझने संबंधी शोधकार्य में केवल आतंरिक कारणों के भरोसे नहीं बैठे रहना चाहिए अपितु बाह्य कारणों पर भी पैनी नजर रखी चाहिए ! केवल आतंरिक जगत के प्रति पूर्वाग्रह रखने से कंपन संबंधी शोध कार्य को न केवल अनेकों बाधाओं का सामना करना होगा अपितु कंपन संबंधी सच्चाई खोजने में बाह्य कारण विशेष सहायक सिद्ध हो सकते हैं |
समुद्र में ज्वार भाटा आता है वो किस तिथि में आता है क्यों आता है आज इसकी सच्चाई समाज समाज को पता है किंतु जो सच्चाई है उसका समुद्र के अंदर से कोई संबंध नहीं है ये बात सबको पता है इसके लिए मेरी जानकारी के अनुशार ज्वार भाटा के कारणों का पता लगाने समुद्र जल की ऐसी कभी कोई जाँच नहीं हुई समुद्र की तलहटी का कोई अध्ययन नहीं हुआ यदि हुआ भी हो तो भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि समुद्र में ज्वार भाटा होने का कारण समुद्र के जल में नहीं है वो तो सूर्य और चंद्र का समुद्र पर पड़ने वाला प्रभाव है उस प्रभाव का अध्ययन करने के लिए तिथियों का सहारा लिया गया सिद्धांत ज्योतिष के अनुशार तिथियाँ स्पष्ट सूर्य और चंद्र के अंतर से निर्मित होती हैं सूर्य और चंद्र आकाश में स्थित हैं समुद्र से सीधा कोई सम्बन्ध नहीं है फिर भी उनसे निर्मित तिथियों के आधार पर ये निश्चय कर लिया गया कि ज्वार भाटा किस किस तिथि को किस समय आता है !मेरे कहने का आशय है कि समुद्र के जल में होने वाली हलचल का सारा हिसाब किताब जिस प्रकार से समुद्र और समुद्र जल का स्पर्श किए बिना उस क्षेत्र में जाए बिना पता लगा लिया जा सकता है वैसे प्रयास भूकंपों से संबंधित रिसर्च में क्यों नहीं किए जाने चाहिए |
सूर्य या चंद्र ग्रहण पड़ता है उसका पता लगाने के लिए सूर्य और चंद्र पर जाना तो नहीं पड़ता यहीं बैठे बैठे पहले अनुमान लगा लिया जाता है कि कौन ग्रहण किस सन के किस महीने की किस तिथि को कितने बजे पड़ेगा और कितने बजे तक पड़ेगा !उस तकनीक या पद्धति का उपयोग भूकंपों के पूर्वानुमान संबंधी रिसर्च के लिए क्यों नहीं किया जाना चाहिए !
अंगस्फुरण - मानव शरीर की तरह ही ब्रह्मांड का अध्ययन भी किया जाना चाहिए ऐसा सोचने पर हमें ध्यान देना होगा कि मनुष्यों के शरीर में अक्सर कोई न कोई अंग फड़कते देखे जाते हैं आँखें भौंह हाथ जांघ आदि और हर हर अंग के फड़कने का अलग अलग फल होता है या यूँ कह लें शरीर में फड़कने वाले अंग अपने जीवन में निकट भविष्य में घटित होने वाली अच्छी बुरी घटनाओं की पूर्व सूचना दे रहे होते हैं इससे यह पूर्वानुमान लगाने में सहयोग मिलता है कि निकट भविष्य में क्या होने वाला है !इस विधा का उपयोग आदिकाल से ही भारतीय समाज अपने रीति रिवाजों तिथि त्योहारों हानि लाभ मिलन वियोग ,सुख और दुःख जैसी परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगाने के लिए करता रहा है | इतना ही नहीं भारतीय शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान में इसकी सम्पूर्ण नियमावली है कि किस अंग के कब फड़कने का क्या फल होगा ?भारतीय साहित्य शास्त्र में कथा कहानियों काव्यों में अनेकों प्रसंगों में अंगस्फुरण की चर्चा मिलती है और उसका फल भी घटित होते दिखाया जाता है !ये विधा अनादि काल से ही न केवल प्रयोग में रही है अपितु इस पर पूर्ण भरोसा भारतीय समाज अभी भी करता है !इसमें विशेष बात ये भी है कि अंगों का स्फुरण किस समय में होता है उस समय का बहुत महत्त्व होता है अर्थात शरीर का कौन सा अंग किस समय फड़कता है इसका भी ध्यान दिया जाना चाहिए !क्योंकि ये भूकंप भी पृथ्वी का अंग स्फुरण ही तो नहीं है !और इसका भी कुछ फल होता हो या यूँ कह लें कि शरीर के अंगों के स्फुरण की तरह ही पृथ्वी के अलग अलग अंगों को भी अलग अलग समयों में स्फुरित होते देखा जाता है जिसे हम भूकंप कहते हैं और भूकंप भी निकट भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं की सूचना दे रहे होते हैं हमें भी भूकंपों के संकेत समझ कर देश और समाज के भविष्य का पूर्वानुमान लगाने का प्रयास करना चाहिए |
भूकंपों में समय विज्ञान का उपयोग -
प्रकृति से लेकर मानव जीवन तक की बहुत सारी घटनाओं के घटित होने में समय की बहुत बही भूमिका होती है समय की गति के साथ उन घटनाओं का सीधा संबंध होता है और जब जैसा समय आता जाता है तब तैसी घटनाएँ घटित होते चली जाती हैं !
भूकंपों से संबंधित अध्ययनों पर विश्व में बहुत सारे शोधकार्य चल रहे हैं और सबका मत लगभग एक ही है क़ि पृथ्वी के अंदर गैसों का भारी भंडारण है उन्हीं गैसों के दबाओं से धरती के अंदर की प्लैटें आपस में रगड़ती हैं उस रगड़ से ही कम्पन प्रकट होता है जिसे हम भूकंप कहते हैं किंतु इस बात को तब तक सच कैसे मान लिया जाए जब तक इस तथ्य पर अध्ययन करते हुए आगे बढ़ने पर कुछ नए तथ्य सामने न आवें !क्योंकि भूकंपों के संबंध में हमारा अध्ययन अनुमान अभिव्यक्ति आदि तब तक प्रमाणित नहीं माने जा सकते जब तक तर्क युक्त कुछ मजबूत बातें समाज के सम्मुख न रखी जा सकें |
भूकंपों के लिए जिस विश्वास के साथ पृथ्वी के अंदर की गैसों के दबाव एवं उससे होने वाले धरती की आतंरिक प्लैटों के घर्षण को जिम्मेदार मान लिया जाता है जैसे सच हो जबकि दूसरे ही क्षण ये कह दिया जाता है कि भूकम्पों के आने के कारणों के विषय में अभी तक कुछ भी कह पाना संभव नहीं है इसका मतलब क्या यह निकाला जाए कि भूकंपों के विषय में आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा जो गैसों प्लेटों के घर्षण आदि की थ्यौरी दी जा रही है वो आधुनिक वैज्ञानिकों की भूकम्पों के विषय में की गई केवल कल्पना मात्र है इसमें कोई सच्चाई नहीं है!
यदि ये सब कुछ वास्तव में केवल कल्पना प्रसूत ही है है तो फिर ऐसी बातें क्यों बोली जाती हैं कि हिमालय की पर्वत श्रंखला में जमीन के अंदर गैसों का बहुत बड़ा भंडारण है उसके कारण कभी भी कोई बहुत बड़ा भूकंप आ सकता है जिससे बहुत भारी जन धन की हानि हो सकती है किंतु ये सब बातें सुनकर एक प्रश्न उठता है कि जब भूंकपों के विषय में अध्ययन करने वालों को अभी तक कुछ हाथ ही नहीं लगा है तो फिर भ्रम फैलाने एवं समाज के मन में भय उत्पन्न करने वाली बातें कही क्यों जाती हैं |यदि ये झूठ है तो बोला क्यों जाता है और यदि ये सच है तो छिपाया क्यों जाता है इसे सत्य मानकर तर्क पूर्वक स्थापित क्यों नहीं किया जाता है ?कछुए की तरह मुख निकालना और फिर अंदर कर लेने का खेल आखिर चलेगा कब तक !
भूंकपों के आने का कारण समझने की दिशा में चल रही आधुनिक विज्ञान की रिसर्च यात्रा को कितने प्रतिशत सच माना जाए !साथ ही पृथ्वी के अंदर की गैसों के दबाओं के कारण रगड़ने वाली धरती के अंदर की प्लैटों को कितना जिम्मेदार माना जाए ?साथ ही भूकंप संबंधी सच से समाज को भी अवगत करा देने में बुराई भी क्या है ?
कुल मिलाकर भूकंपों के रहस्यों को समझने के लिए केवल धरती के अंदर की गैसों प्लेटों में ही अपने को उलझाए रहना ठीक होगा या इसके अलावा कुछ अन्य विषयों का भी अध्ययन किया जाना चाहिए !
भूकंप के विषय में दो शब्द -
भूकंप जब जहाँ कहीं भी आते हैं वहाँ सब कुछ अव्यवस्थित हो जाता है चारों ओर हाहाकार मच जाता है अक्सर जब भूकंप आते हैं छोटे से लेकर बड़े तक बहुत नुक्सान होते देखे जाते हैं टीवी चैनलों पर गिरते हुए मकान फटी धरती टूटे पेड़ आदि के दृश्य वीडियो आदि दिखाए जा रहे होते हैं !आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा बार बार बताया जा रहा होता है कि भूकंप का केंद्र कहाँ था , कितना तीव्र था कितनी गहराई पर था कितने बजे आया था इसके अलावा फिर वही घिसी पिटी बातें कि जमीन के अंदर गैसें भरी हैं गैसों के दबाव से जमीन के अंदर की प्लेटें रगड़ती हैं उसी से आता है भूकंप ! वो लोग दूसरी बात बताते हैं डेंजर जोन वाली हर बार जरूर बताते हैं !चौथी बात ये कहना कभी नहीं भूलते कि निकट भविष्य में बहुत बड़ा भूकंप आएगा क्योंकि हिमालय के नीचे गैसों का भारी भंडार है |
वैज्ञानिकों के द्वारा अत्यंत विश्वास पूर्वक कही जाने वाली ऐसी बातें सुन पढ़ कर बड़ा आश्चर्य तब होता है जब एक बार तो विश्वसनीय सी लगने वाली ऐसी बातें बड़े आत्मविश्वास पूर्वक कही जाती हैं वहीँ दूसरी ओर जब अचानक ये कहा जाने लगता है कि भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता | तब सबसे बड़ा संशय इस बात का होता है कि इन दोनों बातों में सच्चाई आखिर है क्या है ?भूकंपों के विषय में कुछ पता है भी या नहीं या फिर धरती के अंदर की गैसों और प्लेटों वाली बातें भी केवल कल्पनामात्र हैं यदि ऐसा तो भूकंपों के विषय का सच क्या है |
भूकंपों के आने कारण धरती के अंदर संचित गैसों और उसके दबाव से रगड़ने वाली प्लेटों को तब तक नहीं माना जाना चाहिए जब तक उनके द्वारा दिए जा रहे तर्कों का पीछा काल्पनिकता नहीं छोड़ती है |अर्थात भूकंपों के विषय में उनके द्वारा दी जा रही गैसों और प्लेटों की थ्यौरी ही भूकंपों के आने का वास्तविक कारण है या कुछ और ये भी वास्तविक तर्कों से सिद्ध किया जाना चाहिए ! आधुनिक विज्ञान यदि इन्हीं गैसों और प्लेटों को भूकंपों के घटित होने का वास्तविक कारण मानता है तो इस थ्योरी को भी तर्कों के द्वारा और अधिक विश्वसनीय बनाया जाना चाहिए !
सरकारों में भूकंपों से संबंधित मंत्रालय होते हैं अधिकारियों कर्मचारियों की बड़ी संख्या होती है कितना धन खर्च होता होगा इस व्यवस्था पर !इन्हीं भूकंपों के विषय में रिसर्च करने के लिए विश्व के बहुत संस्थान बड़ी बड़ी धनराशि खर्च करके बड़े बड़े शोध कार्य चला रहे होते हैं बहुत धन राशि खर्च होती होगी !इसी प्रकार से विश्व के बड़े बड़े विश्व विद्यालयों में भूकंप अध्ययन अध्यापन के विभाग होते हैं शिक्षक होते हैं छात्र होते हैं शिक्षक गण भूकंपों को पढ़ा भी रहे होते हैं और विद्यार्थीगण पढ़ भी रहे होते हैं किंतु भूकंपों के विषय में जब विश्वास पूर्वक कुछ कहने की बारी आती है तब वही बात कि भूकंपों के पूर्वानुमान के विषय में कुछ कहना संभव नहीं है !फिर वही प्रश्न कि ऐसी परिस्थिति में गैसों और प्लेटों की थ्यौरी को ही को ही किस आधार पर सच मान लिया जाए !काल्पनिक सच पर शोध कैसा और पठन पाठन कैसा और क्या है इसका औचित्य ?ऐसे चिंतन में मैं निरंतर डूबा रहने लगा !चूँकि आधुनिक विज्ञान की समझ न होने के कारण आधुनिक विज्ञान की बारीकियाँ समझ पाने में सक्षम नहीं था !चूँकि मैंने आधुनिक विज्ञान पढ़ा नहीं है इसलिए आधुनिक शिक्षा से शिक्षित लोगों को मेरे मुख से भूकंप जैसी चर्चाएँ अच्छी नहीं लगती थीं |
इसके बाद मैंने पढ़ा कि भूकंप आने से पहले कुछ जीवों के स्वभावों में परिवर्तन आने लगता है !उधर जगदीश चंद वसु के वृक्ष विज्ञान पर भरोसा करते हुए मैंने वैदिक विज्ञान का स्वाध्याय प्रारंभ किया जिसमें वेद आयुर्वेद वनस्पतिविज्ञान स्वभावविज्ञान ज्योतिषविज्ञान योगविज्ञान आदि का गहन अध्ययन और मंथन करते हुए ऐसे सभी प्रकार से वैदिक ज्ञान और विज्ञान का अध्ययन करते हुए मैंने ब्रह्मांड को सविधि समझने का प्रयास किया !
मैंने पढ़ा था कि 'यत्पिंडे तत्ब्रह्मांडे' अर्थात जैसा ब्रह्मांड है वैसा ही शरीर है इसलिए ब्रह्मांड को सही सही समझने के लिए सर्व प्रथम अपने शरीर को समझना होगा इसके बाद शरीर को आधार बनाकर उसी के अनुशार ही ब्रह्मांड का अध्ययन किया जा सकता है और ब्रह्मांड के रहस्य में प्रवेश पाते ही भूकंप वर्षा एवं रोग और मनोरोग जैसे गंभीर विषयों की गुत्थियाँ सुलझाने में सफलता सकती है इसीविचार से मैं भूकंप से संबंधित रिसर्च विषयक अपने प्रयासों को आगे बढ़ाते चला गया !
कंपन- संसार में कोई भी वस्तु चलती है हिलती है या काँपती है उसका कारण केवल वायु है जहाँ वायु नहीं वहाँ गति नहीं होती है ! शरीर से जब प्राणवायु निकल जाती है तो शरीर गति विहीन हो जाता है इसी प्रकार से संसार की जिस भी वस्तु में गति है वो वायु प्रेरित ही होती है किंतु ये वायु उसके अंदर की है या बाहर की इसका निर्णय करना कठिन होता है कुछ वस्तुएँ बाहरी हवा से काँपती हैं कुछ आतंरिक हवा से काँपती हैं !
ब्रह्मांड का अध्ययन यदि मनुष्य शरीर के आधार पर करना है तो मनुष्य शरीर में चार प्रकार से कंपन होता है दो कारण ज्ञात होते हैं जबकि दो कारण अज्ञात होते हैं सर्व प्रथम ज्ञात कारणों में पहला 'कंपवात' नामक रोग हो या 'शीतज्वर' हो ये शरीर में होने वाली बीमारियाँ हैं इनके कारण शरीर के अंदर होते हैं उन आतंरिक कारणों से शरीर काँपने लगता है ये हुआ आतंरिक कंपन इसी प्रकार से बाह्य कंपन भी होता है ये 'शीतऋतु' में शरीर से स्पर्श करके जब शीतल हवाएँ निकलती हैं तो उनका स्पर्श पाकर भी शरीर में कंपन होने लगता है |उन हवाओं का शरीर के आतंरिक जगत से कोई संबंध नहीं होता है वो तो शरीर के बाह्य भाग अर्थात केवल त्वचा में स्पर्श करके निकलती हैं |
इसी प्रकार से कंपन के दो और कारण होते हैं एक आतंरिक और एक बाह्य !आतंरिक कारण वो हैं जिनमें हम अपने मन में छिपे किसी तनाव से होने वाली घबड़ाहट में काँपने लगते हैं इसी प्रकार से कई बार हम अपने शरीर से कोई भय बाहर देखते और काँपने लगते हैं सामने अचानक शेर आ जाए या कोई भयानक सर्प घेर ले डाकू या कोई हत्यारा घेर कर खड़ा हो जाए तो इनमें से एक भी कारण हो तो उससे भी शरीर काँपने लगते हैं !जबकि इनसे शरीर का कोई संबंध ही नहीं जुड़ा होता है फिर भी शेर आदि को केवल देख कर ही शरीर काँपने लगता है |
मनुष्य शरीर और ब्रह्मांड दोनों की ही गति एक जैसी है और दोनों का ही अध्ययन करते समय लगभग एक ही दृष्टि अपनानी होगी !हमें ध्यान इस बात का रखना ही होगा कि कंपन के लिए जैसे मनुष्य शरीर का केवल आतंरिक जगत ही जिम्मेदार नहीं होता है अपितु बाह्य परिस्थितियाँ भी जिम्मेदार हैं इसलिए किसी भी व्यक्ति या वस्तु के कंपन का कारण जानने समझने संबंधी शोधकार्य में केवल आतंरिक कारणों के भरोसे नहीं बैठे रहना चाहिए अपितु बाह्य कारणों पर भी पैनी नजर रखी चाहिए ! केवल आतंरिक जगत के प्रति पूर्वाग्रह रखने से कंपन संबंधी शोध कार्य को न केवल अनेकों बाधाओं का सामना करना होगा अपितु कंपन संबंधी सच्चाई खोजने में बाह्य कारण विशेष सहायक सिद्ध हो सकते हैं |
समुद्र में ज्वार भाटा आता है वो किस तिथि में आता है क्यों आता है आज इसकी सच्चाई समाज समाज को पता है किंतु जो सच्चाई है उसका समुद्र के अंदर से कोई संबंध नहीं है ये बात सबको पता है इसके लिए मेरी जानकारी के अनुशार ज्वार भाटा के कारणों का पता लगाने समुद्र जल की ऐसी कभी कोई जाँच नहीं हुई समुद्र की तलहटी का कोई अध्ययन नहीं हुआ यदि हुआ भी हो तो भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि समुद्र में ज्वार भाटा होने का कारण समुद्र के जल में नहीं है वो तो सूर्य और चंद्र का समुद्र पर पड़ने वाला प्रभाव है उस प्रभाव का अध्ययन करने के लिए तिथियों का सहारा लिया गया सिद्धांत ज्योतिष के अनुशार तिथियाँ स्पष्ट सूर्य और चंद्र के अंतर से निर्मित होती हैं सूर्य और चंद्र आकाश में स्थित हैं समुद्र से सीधा कोई सम्बन्ध नहीं है फिर भी उनसे निर्मित तिथियों के आधार पर ये निश्चय कर लिया गया कि ज्वार भाटा किस किस तिथि को किस समय आता है !मेरे कहने का आशय है कि समुद्र के जल में होने वाली हलचल का सारा हिसाब किताब जिस प्रकार से समुद्र और समुद्र जल का स्पर्श किए बिना उस क्षेत्र में जाए बिना पता लगा लिया जा सकता है वैसे प्रयास भूकंपों से संबंधित रिसर्च में क्यों नहीं किए जाने चाहिए |
सूर्य या चंद्र ग्रहण पड़ता है उसका पता लगाने के लिए सूर्य और चंद्र पर जाना तो नहीं पड़ता यहीं बैठे बैठे पहले अनुमान लगा लिया जाता है कि कौन ग्रहण किस सन के किस महीने की किस तिथि को कितने बजे पड़ेगा और कितने बजे तक पड़ेगा !उस तकनीक या पद्धति का उपयोग भूकंपों के पूर्वानुमान संबंधी रिसर्च के लिए क्यों नहीं किया जाना चाहिए !
अंगस्फुरण - मानव शरीर की तरह ही ब्रह्मांड का अध्ययन भी किया जाना चाहिए ऐसा सोचने पर हमें ध्यान देना होगा कि मनुष्यों के शरीर में अक्सर कोई न कोई अंग फड़कते देखे जाते हैं आँखें भौंह हाथ जांघ आदि और हर हर अंग के फड़कने का अलग अलग फल होता है या यूँ कह लें शरीर में फड़कने वाले अंग अपने जीवन में निकट भविष्य में घटित होने वाली अच्छी बुरी घटनाओं की पूर्व सूचना दे रहे होते हैं इससे यह पूर्वानुमान लगाने में सहयोग मिलता है कि निकट भविष्य में क्या होने वाला है !इस विधा का उपयोग आदिकाल से ही भारतीय समाज अपने रीति रिवाजों तिथि त्योहारों हानि लाभ मिलन वियोग ,सुख और दुःख जैसी परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगाने के लिए करता रहा है | इतना ही नहीं भारतीय शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान में इसकी सम्पूर्ण नियमावली है कि किस अंग के कब फड़कने का क्या फल होगा ?भारतीय साहित्य शास्त्र में कथा कहानियों काव्यों में अनेकों प्रसंगों में अंगस्फुरण की चर्चा मिलती है और उसका फल भी घटित होते दिखाया जाता है !ये विधा अनादि काल से ही न केवल प्रयोग में रही है अपितु इस पर पूर्ण भरोसा भारतीय समाज अभी भी करता है !इसमें विशेष बात ये भी है कि अंगों का स्फुरण किस समय में होता है उस समय का बहुत महत्त्व होता है अर्थात शरीर का कौन सा अंग किस समय फड़कता है इसका भी ध्यान दिया जाना चाहिए !क्योंकि ये भूकंप भी पृथ्वी का अंग स्फुरण ही तो नहीं है !और इसका भी कुछ फल होता हो या यूँ कह लें कि शरीर के अंगों के स्फुरण की तरह ही पृथ्वी के अलग अलग अंगों को भी अलग अलग समयों में स्फुरित होते देखा जाता है जिसे हम भूकंप कहते हैं और भूकंप भी निकट भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं की सूचना दे रहे होते हैं हमें भी भूकंपों के संकेत समझ कर देश और समाज के भविष्य का पूर्वानुमान लगाने का प्रयास करना चाहिए |
भूकंपों में समय विज्ञान का उपयोग -
प्रकृति से लेकर मानव जीवन तक की बहुत सारी घटनाओं के घटित होने में समय की बहुत बही भूमिका होती है समय की गति के साथ उन घटनाओं का सीधा संबंध होता है और जब जैसा समय आता जाता है तब तैसी घटनाएँ घटित होते चली जाती हैं !
सूर्यादि सभी ग्रह नक्षत्रादि समय चक्र से बँधे हुए हैं किस ग्रह का कब उदय होगा और कौन कब अस्त होगा कब कौन ग्रहण पड़ेगा आदि ये सबकुछ हजारों वर्ष पहले से समय चक्र में सुनिश्चित है वर्ष ऋतुएँ महीने पक्ष तिथियाँ सूर्योदय सूर्यास्त दिन रात आदि सबकुछ समय के सुदृढ़ सिद्धांत के अनुशार ही चलते जा रहे हैं न कोई आगे न कोई पीछे और न ही दूसरे के स्थान पर दूसरा आदि !जैसे कुछ वर्षों में सर्दी के समय गर्मी होने लगे और गर्मी के समय शीत ऋतु आ जाए !इसी प्रकार से और चीजें भी बदल बदल कर आने लगें !किंतु ऐसा तो कभी नहीं होता है सब कुछ नियमित चल रहा है !सब कुछ अपने आप से एक ही क्रम से ही होता चला जा रहा है सर्दी आती है फिर गर्मी फिर वर्षात एक निश्चित समय सूर्योदय होता है और सूर्यास्त !समय के साथ साथ सब कुछ घटित होता रहता है !सूर्य ग्रहण अमावस्या में और चंद्र ग्रहण पूर्णिमा में होना निश्चित होता है किंतु हर पूर्णिमा और अमावस्या में होते नहीं देखा जाता है किस अमावस्या पूर्णिमा में ग्रहण होगा किसमें नहीं होगा यह भी बहुत पहले से ही निश्चित है इसीलिए तो इसका पूर्वानुमान कर लिया जाता है और वो सब कुछ सही घटित होता है !
आकाश में स्थिति सूर्य और चंद्र जैसे ग्रहों का असर केवल आकाश में ही नहीं होता है उसका असर संपूर्ण पृथ्वी पर होता है समुद्र होने वाले ज्वार भाटा इसी सूर्य और चंद्र के पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभावों का ही तो परिणाम तो है |सूर्य और चंद्र का यह प्रभाव समुद्रजल में तो ज्वार-भाटा के रूप में दिखाई पड़ता पृथ्वी के अन्य भागों में प्रत्यक्ष तो नहीं दिखाई पड़ता है किंतु इसका ये मतलब तो नहीं निकाला जा सकता कि सूर्य और चंद्र का यह प्रभाव समुद्रजल के अलावा अन्य दूसरी जगहों पर नहीं पड़ता होगा अर्थात समुद्र के अलावा पृथ्वी के अन्य भागों में भी तो इसी गति से सूर्य और चंद्र का प्रभाव पड़ता होगा !किन्तु वहाँ इतने स्पष्टरूप से दिखाई जरूर नहीं पड़ता है |
वस्तुतः इससे प्रभावित तो पृथ्वी का संपूर्ण भाग होता है वो चर हो या अचर !स्त्री पुरुषों से लेकर समस्त जीव जगत इन प्रभावों से प्रभावित होता है पहाड़ों वृक्षों बनस्पतियों में भी पड़ने वाला यह प्रभाव यदि इतना स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ सकता है इससे ये स्पष्ट हो ही जाता है कि आकाशीय बदलावों का असर पृथ्वी पर भी पड़ते देखा जाता है ज्वार-भाटा की उत्पत्ति के प्रमुख कारण सूर्य और चन्द्रमा ही तो हैं आकाश में होने के बाद भी इनका पृथ्वी पर इतना बड़ा असर दिखाई देता है !
पृथ्वी अपनी धुरी पर पूर्व की ओर घूमती है। एक माह में अपनी धुरी पर वह 28 चक्कर लगाती है। इसी तरह चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर काटता है। पृथ्वी की गति मात्रा चंद्रमा से 81.5 गुना अधिक है। दोनों ही इस्पात की गेंदों जैसे हैं। चंद्रमा जब भी पृथ्वी के निकट आता है तो पृथ्वी में खिंचाव सा पैदा कर देता है। सूर्य भी ऐसा ही करता है। ये दोनों ही पृथ्वी को अपनी ओर खींचते हैं। सारी पृथ्वी पर ही इस खींचातानी का प्रभाव पड़ता है। ठोस जमीन तो ऊपर उठ नहीं पाती, पर जो तल ठोस नहीं होता न, अत: इस आकर्षण के कारण समुद्र का जल ऊपर उठने के लिए उमड़ने लगता है। क्योंकि सूर्य के मुकाबले चंद्रमा पृथ्वी के अधिक निकट है तो उसका खिंचाव पृथ्वी पर सूर्य के खिंचाव से अधिक प्रभावशाली होता है। यही कारण है कि अधिकतर ज्वार-भाटे चंद्रमा के कारण आते हैं। क्योंकि चंद्रमा अपने परिक्रमा पथ में भूमध्य रेखा के उत्तर-दक्षिण भी घूमता है। अत: पृथ्वी से उसकी दूरी घटती-बढ़ती रहती है। जब वह पृथ्वी के समीप आता है तो 'ज्वार' और दूरी बढ़ने पर 'भाटा' उत्पन्न होता है।
महीनें में दो बार पृथ्वी, चंद्रमा एवं सूर्य एक ही सीधी रेखा में स्थित होते हैं। यह घटना अमावस्या एवं पूर्णिमा के दिन घटती है और इन दिनों में ज्वार अधिकतम ऊँचाई प्राप्त करते हैं। इसे उच्च ज्वार कहते है। इसी प्रकार से चंद्र मास के दोनों पक्षों (कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष) की सप्तमी या अष्टमी को सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाते हैं। अत: इनके आकर्षण बल तथा अपकेंद्रीय बल संयुक्त नहीं हो पाते हैं। इससे ज्वार की ऊँचाई घटकर सबसे कम हो जाती है, जिसे लघु ज्वार कहते हैं। जिस प्रकृति में सब कुछ इतने नियमबद्ध ढंग से होते देखा जाता है तो उसी प्रकृति में आँधी तूफान वर्षा अतिवर्षा और भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने का भी कोई नियम या सिद्धांत तो होता ही होगा प्राकृतिक घटनाओं की भी कुछ निश्चित प्राकृतिक परिस्थितियाँ होती होंगी !उसकी खोज होते ही न केवल भूकंप अपितु समस्त प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का पूर्वानुमान लगा पाना बहुत आसान हो सकता है |
आकाश में स्थिति सूर्य और चंद्र जैसे ग्रहों का असर केवल आकाश में ही नहीं होता है उसका असर संपूर्ण पृथ्वी पर होता है समुद्र होने वाले ज्वार भाटा इसी सूर्य और चंद्र के पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभावों का ही तो परिणाम तो है |सूर्य और चंद्र का यह प्रभाव समुद्रजल में तो ज्वार-भाटा के रूप में दिखाई पड़ता पृथ्वी के अन्य भागों में प्रत्यक्ष तो नहीं दिखाई पड़ता है किंतु इसका ये मतलब तो नहीं निकाला जा सकता कि सूर्य और चंद्र का यह प्रभाव समुद्रजल के अलावा अन्य दूसरी जगहों पर नहीं पड़ता होगा अर्थात समुद्र के अलावा पृथ्वी के अन्य भागों में भी तो इसी गति से सूर्य और चंद्र का प्रभाव पड़ता होगा !किन्तु वहाँ इतने स्पष्टरूप से दिखाई जरूर नहीं पड़ता है |
वस्तुतः इससे प्रभावित तो पृथ्वी का संपूर्ण भाग होता है वो चर हो या अचर !स्त्री पुरुषों से लेकर समस्त जीव जगत इन प्रभावों से प्रभावित होता है पहाड़ों वृक्षों बनस्पतियों में भी पड़ने वाला यह प्रभाव यदि इतना स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ सकता है इससे ये स्पष्ट हो ही जाता है कि आकाशीय बदलावों का असर पृथ्वी पर भी पड़ते देखा जाता है ज्वार-भाटा की उत्पत्ति के प्रमुख कारण सूर्य और चन्द्रमा ही तो हैं आकाश में होने के बाद भी इनका पृथ्वी पर इतना बड़ा असर दिखाई देता है !
पृथ्वी अपनी धुरी पर पूर्व की ओर घूमती है। एक माह में अपनी धुरी पर वह 28 चक्कर लगाती है। इसी तरह चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर काटता है। पृथ्वी की गति मात्रा चंद्रमा से 81.5 गुना अधिक है। दोनों ही इस्पात की गेंदों जैसे हैं। चंद्रमा जब भी पृथ्वी के निकट आता है तो पृथ्वी में खिंचाव सा पैदा कर देता है। सूर्य भी ऐसा ही करता है। ये दोनों ही पृथ्वी को अपनी ओर खींचते हैं। सारी पृथ्वी पर ही इस खींचातानी का प्रभाव पड़ता है। ठोस जमीन तो ऊपर उठ नहीं पाती, पर जो तल ठोस नहीं होता न, अत: इस आकर्षण के कारण समुद्र का जल ऊपर उठने के लिए उमड़ने लगता है। क्योंकि सूर्य के मुकाबले चंद्रमा पृथ्वी के अधिक निकट है तो उसका खिंचाव पृथ्वी पर सूर्य के खिंचाव से अधिक प्रभावशाली होता है। यही कारण है कि अधिकतर ज्वार-भाटे चंद्रमा के कारण आते हैं। क्योंकि चंद्रमा अपने परिक्रमा पथ में भूमध्य रेखा के उत्तर-दक्षिण भी घूमता है। अत: पृथ्वी से उसकी दूरी घटती-बढ़ती रहती है। जब वह पृथ्वी के समीप आता है तो 'ज्वार' और दूरी बढ़ने पर 'भाटा' उत्पन्न होता है।
महीनें में दो बार पृथ्वी, चंद्रमा एवं सूर्य एक ही सीधी रेखा में स्थित होते हैं। यह घटना अमावस्या एवं पूर्णिमा के दिन घटती है और इन दिनों में ज्वार अधिकतम ऊँचाई प्राप्त करते हैं। इसे उच्च ज्वार कहते है। इसी प्रकार से चंद्र मास के दोनों पक्षों (कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष) की सप्तमी या अष्टमी को सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाते हैं। अत: इनके आकर्षण बल तथा अपकेंद्रीय बल संयुक्त नहीं हो पाते हैं। इससे ज्वार की ऊँचाई घटकर सबसे कम हो जाती है, जिसे लघु ज्वार कहते हैं। जिस प्रकृति में सब कुछ इतने नियमबद्ध ढंग से होते देखा जाता है तो उसी प्रकृति में आँधी तूफान वर्षा अतिवर्षा और भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने का भी कोई नियम या सिद्धांत तो होता ही होगा प्राकृतिक घटनाओं की भी कुछ निश्चित प्राकृतिक परिस्थितियाँ होती होंगी !उसकी खोज होते ही न केवल भूकंप अपितु समस्त प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का पूर्वानुमान लगा पाना बहुत आसान हो सकता है |
ऐसी समस्त समस्याओं पर मैं ज्योतिष आयुर्वेद योग आदि वैदिकविज्ञान के द्वारा प्रकृति से लेकर मानव जीवन के क्षेत्र में रिसर्च करता आ रहा हूँ | इस शोधकार्य से प्राप्त अनुभव कई बड़ी समस्याओं के समाधान खोजने में सहायक हो सकते हैं !प्रकृति में या जीवन में घटित होने वाली अच्छी बुरी सभी प्रकार की घटनाएँ समय से प्रेरित होती हैं इसलिए समय के अध्ययन से ही उनके घटित होने का न केवल पूर्वानुमान लगाया जा सकता है अपितु उनसे बचने के लिए प्रिवेंटिव प्रयास भी किए जा सकते हैं !
- मानव जीवन में और प्रकृति में अचानक घटित होने वाली घटनाओं से सुरक्षा और बचाव का समय ही नहीं मिल पाता है कई बार जब तक सुरक्षा की तैयारियाँ की जाती हैं तब तक ज्यादा देर हो चुकी होती है !
- भूकंप संबंधी पूर्वानुमानों के विषय में आधुनिक विज्ञान के निरंतर प्रयासरत रहने पर भी अभी तक कुछ विशेष हासिल नहीं हो पाया है |इसी प्रकार से वर्षा विज्ञान की बात करें तो मौसम बिगड़ने और अधिक वर्षा होने के कारण ही तो प्रधानमंत्री जी की बनारस की दो रैलियाँ रद्द करनी पड़ी थीं !
- चिकित्सा के क्षेत्र में भी रोग या मनोरोग प्रारंभ होने के बाद चिकित्सा प्रक्रिया प्रारंभ की जाती है तब तक रोग बढ़ चुका होता है !फिर उस पर नियंत्रण करना कठिन हो जाता है |
- किसी के मन में भविष्य में होने वाले मानसिक तनाव की संभावनाओं का पूर्वानुमान लगा पाना यदि संभव हो तो इसे बढ़ने से तुरंत रोका जा सकता है किंतु एक बार बढ़ चुका हो तो फिर घटा पाना काफी कठिन हो जाता है !
- संबंधों के तनाव को सहना हर किसी के लिए कठिन होता जा रहा है किंतु कोई भी संबंध जुड़ते समय ही यदि ऐसा पूर्वानुमान लगा पाना संभव हो सके कि कौन संबंध चलेगा !किससे सुख मिलेगा और किससे दुःख ! किस संबंध को बनाए रखने के लिए किस किस प्रकार की सावधानियाँ बरतनी आवश्यक हैं |
ऐसे सभी विषयों में वैदिक विज्ञान के सहयोग से पूर्वानुमान लगा पाने में एक सीमा तक सफल हुआ जा सकता है जिससे सतर्कता पूर्वक प्रिवेंटिव चिकित्सा या प्रयास करके प्राकृतिक दुर्घटनाओं से होने वाली जन धन हानि को घटाया जा सकता है रोग और मनोरोग प्रारंभ होते ही नियंत्रित किए जा सकते हैं !दुःख देने वाले संबंधों से दूर रहा जा सकता है और सुख देने वाले संबंधों को सहन शीलता पूर्वक चलाया जा सकता है !
अतएव विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि समय विज्ञान के द्वारा प्राप्त अनुभवों के आधार पर परिवारों एवं समाज में फैल रही समस्याओं को घटाया जा सकता है स्वास्थ्य सुविधाओं को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है !अपराध एवं अपराधियों की संख्या को कम किया जा सकता है तलाक जैसी दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है !
भूकंपों की समय वैज्ञानिक खोज - प्राकृतिक घटनाओं के पूर्वानुमान के लिए भी समय विज्ञान का सहयोग लिया जाना चाहिए हो सकता है कि ग्रहण और ज्वार भाटा की तरह ही भूकंपों को भी समय विज्ञान के किसी सूत्र के साथ जोड़ कर अध्ययन किया जा सके !जिस समय विज्ञान के सहयोग से सूर्य और चंद्र पर घटित होने वाले ग्रहणों के समय का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है उसी समय विज्ञान के द्वारा यदि अपनी धरती पर ही घटित होने वाले भूकंपों का पता किया जा सके तो इसमें किसी को आश्चर्य क्यों होना चाहिए
भूकंपों का संपूर्ण प्रकृति से संबंध - शरीर हो या ब्रह्मांड इनका निर्माण पाँच तत्वों से हुआ है पृथ्वी ,जल ,अग्नि,वायु और आकाश ये पाँच ही है जिनके द्वारा सारे चराचर जगत की उत्पत्ति हुई है !सभी के निर्माण में इनकी उपस्थिति का अनुपात निश्चित है उससे घट बढ़ नहीं सकता है इन पाँच में से किसी एक में विकार आने का मतलब होता है पाँचों का विकारवान हो जाना !जैसे किसी चार पाई का एक पैर यदि गड्ढे में हो बाकी तीन पैर बराबर पर रखे हों तो भी वो चार पाई को सँभाल नहीं सकते !इसी प्रकार से किसी कुर्सी का एक पावा यदि गड्ढे में पड़ जाए तो तीनों का संतुलन बिगड़ जाता है !इसी प्रकार से पञ्च तत्वों में से किसी एक में विकार आ जाएँ तो पाँचों विकारित हो जाते हैं !वैसे गतिशील तीन ही होते हैं अग्नि वायु और जल बाक़ी दो तो स्थिर देखे जाते हैं जल अपने आप से बहता है वायु अपने आप से बहती है अग्नि अपने आप से जलती है इस प्रकार की गति पृथ्वी और आकाश में नहीं दिखाई देती है इसीलिए आयुर्वेद ने तो मुख्य रूप से लिया ही तीन को है वात पित्त और कफ अर्थात हवा आग और पानी इन्हीं तीन का अनुपात बिगड़ने से शरीर रोगी होने लगते हैं शरीर की तरह ही ब्रह्मांड के विषय में बिचार करने पर पता लगता है कि यही वात पित्त और कफ अर्थात हवा आग और पानी का अनुपात बनने बिगड़ने से प्राकृतिक आपदाओं के समीकरण बनने लगते हैं !पृथ्वी पर घटित होने वाली अधिकाँश बीमारियाँ हों या प्राकृतिक आपदाएँ सब इन्हीं वात पित्त और कफ से प्रकट होती हैं !वात से आँधी तूफान आदि, पित्त से अधिक गरमी से लेकर भीषण अग्नि कांड तक और कफ से वर्षा से लेकर भीषण बाढ़ तक !कुल मिलाकर सारे रोग और सारी प्राकृतिक आपदाएँ वात पित्त और कफात्मिका ही होती हैं |इसलिए प्राकृतिक आपदाओं का अध्ययन इस दृष्टि से भी किया जाना चाहिए |
जल का गुण है शीतलता और आग का गुण है दहकता गर्मी इसलिए जल किसी को ठंडक दे सकता है और आग किसी को गरम कर सकती है किंतु चलना फिरना हिलना डुलना हो या कम्पन या फिर स्फुरण ही क्यों न हो ये सब कुछ वायु से ही संभव है क्योंकि गति गुण वायु का है इसलिए वायु प्रधान है वायु जल का गुण ग्रहण करके शीतल हो जाती है और आग का गुण ग्रहण करके गरम हो जाती है किंतु ये क्षमता वायु में ही होती है |
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