मौसमविज्ञान -
आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ सूखा आदि घटनाओं का ज्ञान यदि कुछ सप्ताह महीने वर्ष आदि पहले हो जाता है तो इसे ही मौसम संबंधी पूर्वानुमान कहते हैं मौसम संबंधी पूर्वानुमानों का कृषि क्षेत्र में बहुत बड़ा उपयोग है | ये जितने आगे से आगे पता हों कृषि क्षेत्र में एवं आपदा प्रबंधन में उतने अधिक सहयोगी होते हैं | क्योंकि कृषि कार्य से संबंधित फसल योजना बनाने के लिए या आपदा प्रबंधन के लिए कुछ महीने पहले से यदि पूर्वानुमान पता हों तो उनका अधिक से अधिक उपयोग किया जा सकता है !
मौसम संबंधी पूर्वानुमान दो प्रकार से लगाया जाता है इनमें से एक है आधुनिक विज्ञान और दूसरा है प्राचीन विज्ञान ! इस विषय में आधुनिक मौसमविज्ञान की पहली प्रेरणा बाइबल से मिलती है और प्राचीनमौसमविज्ञान की प्रेरणा का आधार वैदिकविज्ञान है !
बाइबल के ज़माने में आँखों को जो नज़र आता था, उसी से मौसम का अनुमान लगाया जाता था। (मत्ती 16:2,3) आधुनिक मौसमविज्ञान आज भी वही लीक पीटते चला आ रहा है !अंतर केवल इतना हुआ है पहले केवल आँखों से आकाश को देख लिया जाता था अब उपग्रह रडारों आदि से मदद मिल जाती है !दृश्यता जैसे जैसे बढ़ते जाती है वैसे वैसे पूर्वानुमानों का विस्तार होता जाता है !
प्राचीनमौसम विज्ञान वैदिकविज्ञान पर आधारित है जहाँ प्रकृति से संबंधित अधिकाँश घटनाओं के विषय में गणित के द्वारा जानकारी जुटाई जाती है | इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे प्रकृति से संबंधित किसी भी घटना के विषय में कितने भी पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | यह कृषि योजना बनाने में या फिर आपदा प्रबंधन में विशेष सहयोगी होता है |
आधुनिक मौसमविज्ञान की दृष्टि से वर्तमान समय में भी दृश्यता ही मौसम पूर्वानुमान का आधार माना जाता है बादल दिखाई पड़े तो वर्षा होने की भविष्यवाणी कर दी गई आँधी तूफ़ान आते दिखाई पड़ा तो आँधी तूफ़ान होने की भविष्यवाणी कर दी गई !यह एक प्रकार से मौसम संबंधी घटनाओं की जासूसी होती है !प्रकृति से संबंधित जहाँ जब जैसा होते दिखाई पड़ता है उसी से मिलती जुलती भविष्यवाणी कर दी जाती है !इसी में उपग्रह रडार आदि का सहयोग ले लिया जाता है !ऐसी भविष्यवाणियाँ करने और उनके घटित होने में समय बहुत कम मिल पाता है | जिससे कृषि योजना बनाने में या आपदा प्रबंधन में उतना अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है जितना आवश्यक होता है !इसी प्रकार से समुद्री जहाजों को गंतव्य तक पहुँचने में कई बार कई कई दिन या कुछ सप्ताह लग जाते हैं ऐसी परिस्थिति में तूफानों आदि से संबंधित पूर्वानुमान जितने पहले से पहा ही अच्छा होता है अन्यथा नुक्सान उठाना पड़ता है |
बताया जाता है कि सन् 1854 में एक फ्राँसीसी जंगी
जहाज़ और 38 व्यापारिक जहाज़ बालाक्लावा के क्रिमिएन बंदरगाह से दूर एक
भयंकर समुद्री तूफान में डूब गए थे ! फ्राँसीसी अधिकारियों ने पैरिस के निरीक्षण
केंद्र के निर्देशक उरबैन-शौन-जोसफ लवॆर्या से इस दुर्घटना की
तहकीकात करने के लिए कहा । मौसम के रिकॉर्ड की जाँच करने पर उन्होंने पता
लगाया कि दरअसल दुर्घटना के कुछ दिन पहले ही इस तूफान की शुरूआत हो चुकी थी
और इस तूफान ने पूरे यूरोप में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व क्षेत्र को
पार किया था।ऐसी परिस्थिति में तूफ़ान का पूर्वानुमान लगाने की कोई सही सटीक व्यवस्था होती तो इन जहाज़ों को पहले ही चेतावनी दी जा सकती थी किंतु ऐसा न हो पाने के कारण इतना बड़ा नुक्सान हो गया !
इसी प्रकार से अक्टूबर 15,1987 को ब्रिटेन में एक
औरत ने एक टी.वी. स्टेशन को बताया कि उसने सुना है कि तूफान आ रहा है।
लेकिन मौसम का अनुमान लगानेवाले ने अपने दर्शकों को पूरा भरोसा दिलाया:
“चिंता मत कीजिए। कोई तूफान नहीं आनेवाला है।” मगर उसी रात को दक्षिणी
इंग्लैंड पर ऐसा भारी तूफान आया जिसमें 1.5 करोड़ पेड़ नष्ट हो गए, 19 लोग
मारे गए और जो नुकसान हुआ उसकी कीमत 1.4 खरब अमरीकी डॉलर से भी
ज़्यादा आँकी गयी।
उपग्रहों रडारों पर यदि तूफान दिखाई नहीं दिया तो उससे संबंधित भविष्यवाणी कैसे की जा सकती थी और भविष्यवाणी के अभाव में इतना बड़ा नुक्सान हो गया !वर्तमान समय में प्रकृति से संबंधित जिस भी घटना के विषय में लगाया गया पूर्वानुमान गलत निकल जाता है उसके लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है !उस हिसाब से देखा जाए तो प्रकृति से संबंधित ऊपर उद्धृत की गई दोनों घटनाओं को जलवायु परिवर्तन से प्रेरित बताया जा सकता था किंतु उस समय ऐसा हुआ नहीं किंतु भविष्यवाणियों के निरंतर गलत निकलते रहने के कारण आत्म रक्षा के लिए जलवायु परिवर्तन शब्द का प्रयोग कर दिया जाता है !
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात जलवायु परिवर्तन को लेकर वैश्विक स्तर पर चर्चाएँ प्रारंभ हुईं। 1972 मे स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में पहला सम्मेलन आयोजित किया गया। इस आशय की पु्ष्टि हेतु 1972 में ही संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का गठन किया गया तथा नैरोबी को इसका मुख्यालय बनाया गया।
वर्तमान में “जो फार्मूले कंप्यूटर इस्तेमाल करते हैं वे वायुमंडल की स्थिति के बारे में सिर्फ अंदाज़े हैं।”
उपग्रहों रडारों पर यदि तूफान दिखाई नहीं दिया तो उससे संबंधित भविष्यवाणी कैसे की जा सकती थी और भविष्यवाणी के अभाव में इतना बड़ा नुक्सान हो गया !वर्तमान समय में प्रकृति से संबंधित जिस भी घटना के विषय में लगाया गया पूर्वानुमान गलत निकल जाता है उसके लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है !उस हिसाब से देखा जाए तो प्रकृति से संबंधित ऊपर उद्धृत की गई दोनों घटनाओं को जलवायु परिवर्तन से प्रेरित बताया जा सकता था किंतु उस समय ऐसा हुआ नहीं किंतु भविष्यवाणियों के निरंतर गलत निकलते रहने के कारण आत्म रक्षा के लिए जलवायु परिवर्तन शब्द का प्रयोग कर दिया जाता है !
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात जलवायु परिवर्तन को लेकर वैश्विक स्तर पर चर्चाएँ प्रारंभ हुईं। 1972 मे स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में पहला सम्मेलन आयोजित किया गया। इस आशय की पु्ष्टि हेतु 1972 में ही संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का गठन किया गया तथा नैरोबी को इसका मुख्यालय बनाया गया।
वर्तमान में “जो फार्मूले कंप्यूटर इस्तेमाल करते हैं वे वायुमंडल की स्थिति के बारे में सिर्फ अंदाज़े हैं।”
मौसम भविष्यवक्ता लोग अभी-भी सही जानकारी देने में नाकाम हैं । आखिर मौसम की
जानकारी पर पूरी तरह से विश्वास क्यों नहीं किया जा सकता है?
इसकी वजह साफ है कि मौसम की व्यवस्था
बहुत ही पेचीदा है। और सही-सही अनुमान लगाने के लिए सारे माप लेना संभव
नहीं है। दुनिया के चारों तरफ फैले महासागरों के बड़े-बड़े भागों के तापमान
को मापने के लिए ऐसा कोई यंत्र नहीं है, जो उपग्रह के द्वारा ज़मीन पर पाए
जानेवाले जाँच केंद्रों को जानकारी भेज सके। कभी-कभार ऐसा होता है कि मौसम
के नक्शे में ग्रिड बिंदुएँ उस जगह के साथ सही मेल नहीं खाते जहाँ पर जाँच
केंद्र होते हैं।
ऐसी परिस्थिति में मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए गणितागत पद्धति अधिक सही एवं सटीक है क्योंकि इसमें गलत होने की संभावना काफी कम होती है !
ऐसी परिस्थिति में मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए गणितागत पद्धति अधिक सही एवं सटीक है क्योंकि इसमें गलत होने की संभावना काफी कम होती है !
सन 1889 में भयंकर सूखा पड़ा था !
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