जलवायु परिवर्तन और मौसम -
कुछ लोगों को लगता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण प्रकृति परिवर्तन हो रहा है इसलिए सर्दी गर्मी वर्षात आदि का समय चक्र बदल रहा है वर्षा के वितरण में असमानता होते देखी जा रही समय से आगे पीछे देखने को मिल रहा है !ऋतुओं के प्रभाव में विषमता दिखाई पड़ रही है कभी वर्षा और बाढ़ अधिक तो कभी सूखा जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जा रही हैं ऐसी विषमता अन्य ऋतुओं के प्रभाव में भी देखने को मिल रही है ! माकिसी नसून अपने निश्चित समय से आगे पीछे आता है !किसी किसी वर्ष आँधी तूफानों की संख्या में बहुत बढ़ोत्तरी हो जाती है और किसी वर्ष कुछ कम रह जाता है !ऐसा सबकुछ दिनों दिन बढ़ता जा रहा है जिसका कारण जलवायु परिवर्तन को बताया जा रहा है !
इसपर तर्क पूर्ण ढंग से बिचार करने के लिए जलवायु परिवर्तन के कारण होते दिखने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों का अतीत में घटित हुए किसी सौ दो सौ वर्ष के कालखंड का वर्तमान सौ दो सौ वर्ष के कालखंड का तुलनात्मक परीक्षण किया जाना चाहिए !उसके आधार पर निर्णय किया जाना चाहिए कि प्राकृतिक घटनाओं का क्रम स्वभाव स्वरूप आकार प्रकार प्रभाव आदि पहले के कालखंड में कैसा होता था और अब कैसा हो रहा है !यदि वास्तव में पहले के कालखंड में वर्षा आदि प्राकृतिक घटनाओं की प्रकृति कुछ ऐसी थी जिससे वर्तमान कालखंड में कोई बड़ा बदलाव आया है तब तो "जलवायुपरिवर्तन" जैसी कोई कल्पनाकरना तर्क संगत हो सकता है ऐसे ही निराधार अकारण अपने ज्ञान एवं अनुभव के अभाव में "जलवायुपरिवर्तन" जैसा कोई भ्रम पालकर बैठ जाना ये अनुसंधान भावना के लिए हितकर नहीं हैं !जिसे प्रमाणपूर्वक तर्कपूर्ण ढंग से सिद्ध न किया जा सके पारदर्शिता पूर्वक प्रस्तुत न किया जा सके !
प्रकृति से संबंधित घटनाओं के विषय में सबसे महत्वपूर्ण बिचार करने योग्य बात ये है कि मौसम का स्वभाव समझने में हम कितना सफल हुए हैं कही ऐसा तो नहीं है कि हमें मौसम के स्वभाव की समझ ही न हो हम केवल अपनी कल्पनाओं के आधार पर ही मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में निराधार बातें किए जा रहे हैं !
मानसून समय से नहीं आया या सर्दी गर्मी आदि ऋतुओं का ढंग बदल रहा है या वर्षा का वितरण ठीक नहीं हो रहा है या ग्लेशियर पिघलने लगे हैं या कहीं वर्षा और कहीं सूखा पड़ रहा है आदि और भी जिन घटनाओं के लिए हम "जलवायुपरिवर्तन" को जिम्मेदार मानते हैं !संभव है कि ऐसा हमेंशा से होता आ रहा हो किंतु सौ दो सौ वर्ष पहले मौसम संबंधी घटनाओं में कब क्या किस ढंग से किस मात्रा में घटित होता रहा है ऐसी कोई प्रमाणित जानकारी का संचय खोजने पर भी मुझे कहीं मिला नहीं है !वैसे भी सर्दी गर्मी वर्षा आदि मौसमसंबंधी घटनाएँ हमेंशा से घटित होती रही हैं किंतु आधुनिकवैज्ञानिक दृष्टि से मौसम संबंधी घटनाओं पर विचार अभी सौ दो सौ वर्ष पहले होना प्रारंभ हुआ है !इसलिए प्राकृतिकघटनाओं के संबंध में पहले ऐसा होता था अब नहीं होता है ऐसा कहने के पीछे आधारभूत प्रमाण क्या हैं |
व्यवहार में भी कई बार ऐसा देखा जाता है कि कोई ताला (लॉक) खोलने का के लिए हम बार बार प्रयास करते हैं किंतु ताला नहीं खुल रहा होता है तो हम ताले को ही बिगड़ा हुआ मानने लगते हैं और ताले में ही अज्ञानवश अनेकों प्रकार के दोष दुर्गुण निकालने लगते हैं हमें बार बार भ्रम होता है कि ताला नहीं खुल रहा है किंतु कई बार ऐसा भी हो जाता है कि उस ताले को खोलने के लिए हम जो ताली लगा रहे होते हैं वो उस ताले की होती ही नहीं है हम कोई दूसरी ताली लगाकर उस ताले को खोलने का प्रयास कर रहे होते हैं!इसलिए टाला नहीं खुला !जिसमें गलती हमारी होती है किंतु हम काफी समय इस भ्रम में निकाल देते हैं कि कहीं इस ताले में कुछ घुसा न दिया गया हो या इसमें जंग न लग गई हो या किसी अन्य प्रकार की खराबी ताले में ही आ गई हो आदि आदि !ये भ्रम हमारा तब टूटता है जब हमारे पास दो चार और भी तालियाँ होती हैं जिनमें से एक एक ताले में लगाकर देखा जाता है कई बार उनमें से ताला का गुच्छा होता है जिन तालियों को उस ताले में लगा लगाकर कर देखा जाता है!कई बार उन्हीं में किसी एक ताली से वही ताला खुल भी जाता है !इसके बाद इस बात का निश्चय हो जाता है कि वो ताला खराब नहीं था बल्कि उसमें जो चाभी लगाई जा रही थी वो उस ताले की थी ही नहीं !इसीलिए ताला नहीं खुल पा रहा था !
यही स्थिति मौसमसंबंधी अध्ययनों की है मौसम मानसून आँधीतूफानों या भूकंप जैसी घटनाओं के घटित होने न होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण क्या है इस पर अभी तक विश्वास पूर्वक कुछ भी नहीं कहा जा सका है जिसका कोई मजबूत आधार हो !ऐसे विषयों में कुछ मनगढंत काल्पनिक अत्यंत कमजोर तर्कों के अलावा हमारे पास ऐसा और है क्या जिसके आधार पर हम मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान पता लगा लेना चाहते हैं !
विज्ञान में तो किसी भी अनुसंधान को सभी प्रकार की तर्कप्रच्छालित कसौटियों से गुजरना होता है ! मौसम या भूकंप आदि घटनाओं से संबंधित अनुसंधानों को परखने के लिए हमारे पास क्या ऐसी कोई जानकारी है जिसके आधार पर हम अपनी जानकारी को तर्क की कसौटी पर कस सकते हैं इस विषय में हम जो जानते हैं क्या वह पर्याप्त है या ऐसे अनुसंधानों को करने के लिए हम जो प्रक्रिया अपना रहे हैं क्या वह ठीक है !इसका परीक्षण करने के लिए हमारे पास वैकल्पिक साधन और क्या हैं !जिसके बिना इस बात को परखने का हमारे पास कोई और दूसरा साधन नहीं होता है कि मानसून सही समय से नहीं आता है या अथवा हमलोग मानसून और मौसम की चाल को जिस प्रक्रिया से समझने का दावा कर रहे हैं वो प्रक्रिया ही गलत है !जिस प्रकार से टाला न खुलने के लिए जितना ताला दोषपूर्ण हो सकता है उतनी ही सारी संभावनाएँ चाभी में भी होती हैं !इसलिए मौसम से संबंधित अनुसंधानों की प्रक्रिया पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि इस विषय में हम जिन प्रक्रियाओं को लेकर आगे बढ़ाते हैं वे परीक्षित या तर्कों की कसौटी पर कसी हुई नहीं अपितु काल्पनिक हैं जिनके गलत होने की संभावना हमेंशा बनी रहती है ! हमें यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि "वैज्ञानिक आज तक प्रकृति की उन शक्तियों को समझ ही नहीं पाए हैं जो हमारे मौसम को ढालती हैं !" अन्यथा ऐसी दुविधा पैदा ही न होती !इसीलिए इन विषयों में पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया में हम अक्सर असफल ही होते रहे हैं !प्राकृतिक घटनाएँ जब तक अपने निर्धारित समय के अनुशार घटित होती रहती हैं तब हम उसी में कुछ जोड़ घटा कर भविष्यवाणियाँ करते रहते हैं जैसे ही वे थोड़ी इधर उधर होती हैं वैसे ही हमारे मौसम पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया की पोलखुलने लग जाती है !ऐसी परिस्थिति में अपनी तथाकथित वैज्ञानिकी साख बचने के लिए मजबूरीबश हमें जलवायुपरिवर्तन जैसी निराधार कल्पनाओं का सहारा लेना पड़ता है !जलवायुपरिवर्तन के प्रभाव के विषय में हमारे पास अभीतक ऐसी कोई सुपुष्ट जानकारी नहीं है जिसके आधार पर हम या सिद्ध करने की स्थिति में हों कि ऐसा ऐसा जो पहले नहीं होता रहा है वो सब कुछ होने लगा है और दोनों समय में घटित हुई प्राकृतिक घटनाओं की तुलनात्मिका समीक्षा की जा सके !
कुलमिलाकर हमारा ध्यान मौसम और मानसून में दोष निकालने की बजाए इस विषय से संबंधित हमारी अपनी कमजोरी की ओर क्यों नहीं जाता है !ऐसे अनुसंधानों के नाम पर हमने आज तक समाज को प्रकृति के विषय में कुछ मनगढंत काल्पनिक बातों के अलावा और दिया क्या है !अलनीनो ला-नीना वायुदाब तापमान जलवायुपरिवर्तन आदि को मौसम से हम जितना जोड़ घटाकर देखते हैं ये सब हमारी अपनी कल्पनाएँ ही तो हैं ! सकता है कि इनमें कुछ सच्चाई भी हो किंतु ये सच ही हैं ऐसा मानने के लिए मेरे पास कोई मजबूत आधार नहीं है ! ऐसी कल्पनाओं का मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से कोई संबंध हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है ! यह मानने में मुझे कोई संकोच नहीं होता है |
जिस वैज्ञानिक प्रक्रिया के आधार पर मौसमसंबंधी घटनाओं के पूर्वानुमान लगाए जाते हैं उन्हीं के आधार पर प्रकृति से संबंधित कुछ नियम सिद्धांत बनाए और बताए जाते हैं किंतु कुछ ही समय में उन नियमों सिद्धांतों को लाँघती हुई दूसरे प्रकार की घटनाएँ घटित होने लगती हैं कई बार तो विपरीत भी घटित होते देखी जाती हैं ऐसी पारिस्थिति में निनके द्वारा निर्धारित किए जाने वाले नियम और सिद्धांत ही टूट जाते हों उन्हीं के द्वारा उन्हीं नियमों के आधार पर की जाने वाली मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ कितनी विश्वसनीय हो सकती हैं !
किसी पात्र में पानी भरा होगा तो वो पात्र हिलते ही पानी भी हिलने लगता है और पानी हिलता है तो उसमें लहरें पड़ती ही हैं ये बात आम आदमी की भी समझ में भी आती है इसी बात को विज्ञानवेत्ताओं के द्वारा एक सिंद्धांत के रूप में प्रतिपादित किया गया कि भूकंप आने के कारण सुनामी आती है किंतु कई बार ऐसा होते देखा जाता है उसका कारण क्या है ये भी बताया जाना चाहिए !
कुछ समय पहले ही 22 दिसंबर 2018 की रात्रि में इंडोनेशिया में अचानक सुनामी आई जिसका कारण भूकंप नहीं था क्योंकि भूकंप तो आया ही नहीं था जबकि उस सुनामी से भारी जनधन की हानि हुई ! इसीप्रकार से 18 जून 2018 को जापान के उत्तर पश्चिमी हिस्से में 6.7 तीव्रता वाले शक्तिशाली भूकंप के बाद अधिकारियों ने सुनामी की चेतावनी जारी की लेकिन सुनामी आने के कारण ढाई घंटे के बाद उस चेतावनी को वापस ले लिया गया। ऐसा न होने के कारणों की खोज की जानी चाहिए थी किंतु ऐसा तो हुआ नहीं बल्कि सुनने को ये मिला कि ऐसा देखकर वैज्ञानिकों को बहुत आश्चर्य हुआ है !इसके लिए भी यदि जलवायुपरिवर्तन ,अलनीनों लानीना जैसी घटनाओं को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होता क्योंकि अन्य प्रकरणों में भी तो ऐसी ही परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन शब्द का उपयोग किया जाता है !
वर्तमान वैज्ञानिक युग में इस सच्चाई को कितने लोग स्वीकार कर पाएँगे कि समुद्र का जल पृथ्वी पर आश्रित होता तब न पृथ्वी के हिलने पर समुद्र जल भी हिलता और सुनामी आ जाती किंतु यदि पृथ्वी की तरह ही समुद्र का भी पृथ्वी से अलग हटकर अपना स्वतंत्र आस्तित्व है तो ये आवश्यक तो नहीं कि पृथ्वी के हिलने से समुद्र जल को भी हिलना ही चाहिए !कई बार ऐसा होते देखा जाता है किंतु इस विषय में यह कोई निश्चित सिद्धांत नहीं है !विज्ञान के नाम पर ऐसे ही तर्क हम मौसम और भूकंपों के विषय में दे रहे हैं किंतु उन्हें कसौटी पर कसने में कठिनाई हो रही है |
भूकंपों के आने का कारण पृथ्वी के गर्भ में तैर रही उन टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराने को बताया जा रहा है जो अत्यंत गर्म लावे रही हैं !इसी प्रकार से पृथ्वी के गर्भ में संचित गैसों के दबाव के कारण भूकंपों का घटित होना बताया जा रहा है |
1962 में कोयना क्षेत्र में जलाशय बनाया गया 1967 में उसमें जल संग्रह किया गया उसी वर्ष 1967 में ही कोयना क्षेत्र में 6.3 तीव्रता का भूकंप आया था. तब से अब तक इस क्षेत्र में हजारों भूकंप आ चुके हैं. सभी भूकंप 30 गुना 20 किलोमीटर के दायरे में सीमित रहे हैं !बताया जाता है कि पहले क्षेत्र भूकंप नहीं आते थे जलाशय बनने के बाद ही भूकंपों का आना प्रारंभ हुआ !इसलिए यह बात तो सबकी समझ में आ जाती है कि इन भूकंपों के आने का संबंध किसी न किसी प्रकार से उस जलाशय के निर्माण से है किंतु जलाशयनिर्मित होने से क्यों भूकंप आने लगे उसके वास्तविक कारण क्या हो सकते हैं जिस पर कोई खोज होनी चाहिए थी किंतु ऐसा नहीं किया जा सका !बताया गया कि जल संग्रह होने से अतिरिक्त वजन के कारण भूमिगत प्लेटों पर दबाव पड़ा इसलिए भूकंप आने लगे !किंतु इस तर्क को कसौटी पर कसने पर अन्य जलाशयों की ओर भी ध्यान जाना स्वाभाविक ही है जब वहाँ जलाशयों के निर्माण हुए यहाँ तक कि टिहरी में जलसंग्रह किया गया तब वहाँ तो ऐसा नहीं हुआ ऐसी परिस्थिति में कोयना में ऐसा होने के लिए वहाँ के जलभार को कारण मानना कितना उचित होगा ! यदि ऐसी परिस्थिति पैदा होने के लिए भी जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बता दिया गया होता तो भी मुझे आश्चर्य नहीं होता ! कुल मिलाकर वर्तमान वैज्ञानिक युग में भूकंपों को खोजने के लिए पृथ्वी के अंदर गहरे गड्ढे खोदने वाले वैज्ञानिकों में से इस सच्चाई को कितने लोग स्वीकार कर पाएँगे कि भूकंप आने के कारण पृथ्वी के अंदर कम और बाहर अधिक होते हैं !
7 अगस्त 2018 से केरल में भीषण बारिश प्रारंभ हुई और एक सप्ताह तक चली जिस कारण केरल बाढ़ से डूबने उतराने लगा !भारी जनधन की हानि हुई !इसमें विशेष बात यह है कि 7 अगस्त 2018 को अगस्त सितंबर के लिए सामान्य वर्षा होने के पूर्वानुमान संबंधित सरकारी विभाग के द्वारा घोषित किए गए थे ,किंतु जब वर्षा इतनी अधिक हो गई तब प्रश्न उठने स्वाभाविक थे ही तो संबंधितवैज्ञानिकों से पूछा जाने लगा कि आपकी भविष्यवाणी गलत क्यों हुई तो उन्होंने जलवायु परिवर्तन को कारण बताकर अपना पल्ला झार लिया !
कई अन्य प्रकरणों में भी तो ऐसी ही दुविधा पूर्ण स्थिति में वैज्ञानिक लोग जलवायुपरिवर्तन शब्द का सहारा लेते देखे जाते हैं क्योंकि प्रकृति से संबंधित किसी भी घटना के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बता देने के बाद कोई तर्क वितर्क आदि नहीं किए जा सकते हैं जलवायुपरिवर्तन का दायरा इतना असीमित गढ़ लिया गया है कि आकाश से पाताल तक सजीव से निर्जीव तक जहाँ कहीं भी जिस किसी भी प्रकार का कोई नया बदलाव होता लगे उसका कारण जलवायुपरिवर्तन को बताया जा सकता है उसे मानना समाज की मजबूरी है क्योंकि समाज के पास इस विषय में कोई और विकल्प ही कहाँ बचता है |
इस विषय में वैज्ञानिक भावना से यह बात सोचने की आवश्यकता है कि आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ भूकंप आदि के लिए जिम्मेदार कारणों के विषय में हमारे पास जो जानकारी है क्या वह पर्याप्त है या ऐसे अनुसंधानों को करने के लिए हम जो प्रक्रिया अपना रहे हैं क्या वह ठीक है या उसके अतिरिक्त भी ऐसी घटनाओं से संबंधित अनुसंधान करने के लिए हमारे पास और भी कोई विकल्प हैं !यदि ऐसा नहीं है तो संभव यह भी है कि मौसमसंबंधी अध्ययनों के लिए हम जिस प्रक्रिया को अपना रहे हैं वो प्रक्रिया ही ठीक न हो या उसका मौसम से कोई संबंध ही न हो !कहीं ऐसा तो नहीं कि हम केवल अपने मन से ही मौसम के विषय में निराधार कल्पनाएँ किए जा रहे हैं कि इस तारीख को मानसून आताहै ! अलनीनों लानीना का मौसम पर असर पड़ता है या ग्लोबल वार्मिंग के कारण आँधी तूफ़ान आ रहे हैं जलवायु परिवर्तन के कारण कहीं कम कहीं अधिक वर्षा हो रही है और कहीं सूखा पड़ रहा है | कभी कहा जाता है कि धरती बहुत अधिक गर्म हो रही है इसलिए वर्षा अधिक हो रही है !
इसीप्रकार से वायुप्रदूषण के विषय में हमारे वैज्ञानिक अनुसंधान कम और कल्पनाएँ अधिक काम कर रही हैं!वायुप्रदूषण बढ़ने के समय हम जब जो कुछ देख लेते हैं उसे ही वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार ठहरा देते हैं |
सच्चाई तो ये है कि वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण प्राकृतिक है या ये मनुष्यकृत है !यदि मनुष्यकृत है तो कैसे ?किसी वैज्ञानिक अनुसंधान के द्वारा अभी तक इस बात का ही निर्णय किया जाना चाहिए कि वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण किसे माना जाए और क्यों माना जाए !किसी प्रक्रिया को कारण मानने के पीछे कुछ विश्वसनीय तर्क भी तो दिए जाएँ ताकि समाज का उन तर्कों पर विश्वास बढ़े और समाज स्वयं उन कामों को छोड़ने या कम करने का प्रयास करे जिनसे वायु प्रदूषण बढ़ता हो | ऐसे तो जहाँ धुआँ धूल आदि उड़ती दिखाई देती है हम उसे ही प्रदूषण बढ़ने का कारण मानकर उसे ही जिम्मेदार ठहरा देते हैं !
वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर इतनी हल्की बातें करना ठीक नहीं है कि दशहरा आवे तो दशहरे में रावण जलने को , दिवाली आवे तो पटाके जलने को और होली आवे तो होली जलने को वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है !सर्दी में हवा के धीमे चलने को ,गर्मी में हवा के तेज चलने को,धान काटने के समय पराली जलाने से उत्पन्न धुएँ को वायु प्रदूषण बढ़ने को कारण बता दिया जाता है !जब इनमें से कोई कारण दिखाई न दे फिर भी वायु प्रदूषण बढ़ता दिखे तो गाड़ियों के धुएँ से ,घर बनने से,ईंट भट्ठे चलने से,हुक्का पीने से,महिलाओं के स्प्रे करने से,भौगोलिक कारणों से ऐसे तमाम वे कारण बता दिए जाते हैं जो बारहो महीने तीसो दिन चौबीसों घंटे विद्यमान रहते हैं !
इसी प्रकार से बताया जाता है कि ज्वालामुखी फटने से वायु प्रदूषण बढ़ता है ! फ्रिज, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों की सीएफसी गैसों के ऊत्सर्जन के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है !ऐसे और भी बहुत सारे कारण वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए गिनाए जाते रहते हैं !
इस विषय में विचारणीय बात यह है कि एक ही समय में बहुत सारे देशों शहरों में एक साथ ही वायु प्रदूषण बढ़ता है जबकि सभी जगह कारण एक जैसे नहीं होते हैं !दूसरा जो कारण बताए जाते हैं उनके समाप्त होने के बाद तो वायु प्रदूषण कम होना चाहिए किंतु ऐसा नहीं होता है तब तक दूसरे कारण गिना दिए जाते हैं ऐसे ही समय बीतता जाता है जब जब वायुप्रदूषण बढ़ता है तब तब कोई न कोई कारण बता दिए जाते हैं !
कुलमिलाकर जहाँ कहीं से धुआँ धूल आदि उठते देखा जाता है उसे ही वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है !यह स्थिति पर्यावरण और मौसम पर किए जा रहे हमारे अनुसंधानों की है !किसी विषय पर इतनी ढुलमुल बातों में विज्ञान कहाँ है और यदि इन्हें विज्ञान मानना प्रारंभ कर दिया जाएगा तो ऐसी आधारविहीन कल्पनाएँ तो कोई भी कर सकता है !इनके लिए विज्ञान की आवश्यकता क्या है ?
इसलिए जो वायुप्रदूषण प्रकृति एवं स्वास्थ्य के लिए इतना अधिक हानिकर है प्राकृतिक आपदाएँ घटित होने के लिए तथा तरह तरह के रोग फैलने के लिए जिस वायुप्रदूषण को जिम्मेदार माना जा रहा है !उस वायुप्रदूषण के विषय में ये तो पता होना ही चाहिए कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए वास्तविक जिम्मेदार है कौन ?प्रकृतिजिम्मेदार है तो उसमें मनुष्य का दोष क्या है और यदि यह मनुष्यकृत है तो मनुष्य के द्वारा किए जाने वाले कौन कौन से कार्य इसके लिए किस किस प्रकार से जिम्मेदार हैं तथा उन उन कार्यों में कमी लाने से वायु प्रदूषण नियंत्रित हो जाएगा क्या ?
समाज को इस प्रकार से उनकी शंकाओं का विश्वसनीय उत्तर देकर यदि संतुष्ट किया जा सकता है तो मुझे विश्वास है कि मनुष्य वायु प्रदूषण को घटाने के लिए यथा संभव प्रयास स्वयं करेगा !
ऐसे ही भूकंपों के विषय में है भूकंपों के घटित होने से जनधन की भारी हानि होती है इसलिए समाज एवं सरकारों का इसके लिए चिंतित होना स्वाभाविक है !इसीलिए इससे संबंधित अध्ययनों अनुसंधान कार्यों में सरकारें सभी प्रकार से रूचि लेती हैं इससे संबंधित अनुसंधानों के लिए बहुत सारे वे लोग लगाए गए हैं जो अपने को इन विषयों का वैज्ञानिक मानते हैं ये क्रम दशकों से चलाया जा रहा है किंतु दुर्भाग्य से आजतक यह नहीं बताया जा सका है कि भूकंपों के घटित होने का वास्तविक कारण क्या है ?पृथ्वी के अंदर संचित गैसों के दबाव के कारण भूमिगत प्लेटों के टकराने से भूकंप घटित होता है ! ऐसा बताया जा रहा है किंतु ये बात तब तक विश्वास करने योग्य नहीं लगती है जब तक कि इसके आधार पर अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाए जाएँ और वो सही एवं सटीक घटित न हो जाएँ !
वस्तुतः जमीन के अंदर घटित होने वाली ऐसी किसी भी घटना को यदि देखा सुना या जिस किसी भी प्रकार से अनुभव किया गया होगा जिसके आधार पर यह कहा जा रहा है कि पृथ्वी के अंतर स्थित गैसों के दबाव के कारण प्लेटों के आपस में टकराने से भूकंप घटित होता है! प्रकृति के जिन लक्षणों का अध्ययन या अनुसंधान आदि करके प्रकृति की जिस अवस्था के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है यदि यह सही है तो इसी के आधार पर भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान भी तो लगाया जा सकता है !
भूकंपों का निर्माण प्रकृति की जिस किसी भी अवस्था में होता होगा उस प्राकृतिक अवस्था का निर्माण होने में भी तो कुछ समय लगता होगा उसके आधार पर पहले उस विषय से संबंधित पूर्वानुमान लगा लिए जाएँ क्योंकि किसी भी विषय से संबंधित पूर्वानुमान सही एवं सटीक घटित हुए बिना भूकंप जैसी इतनी बड़ी घटना के विषय में यह कह देना कि भूकंप घटित होने का यह कारण हो सकता है !इस बात को विश्वास करने योग्य कैसे माना जा सकता है !
विशेष बात एक और भी है कि एक ओर तो भूकंपों के घटित होने का कारण हो या पूर्वानुमान इसके विषय में पता लगा पाना अभी असंभव माना जा रहा है भूकंपों के विषय में अभीतक हुए अनुसंधानों की यही उपलब्धि मानी जा सकती है !ऐसी परिस्थिति में भूकंपों के विषय में किसी वैज्ञानिक निष्कर्ष पर पहुँचे बिना ये कैसे कहा जा रहा है कि निकट भविष्य में हिमालय में एक बड़ा भूकंप आएगा जिसकी तीव्रता साढ़े आठ से अधिक होगी !ऐसी बातें किस आधार पर कही जा रही होती हैं !एक तरफ तो हम कहते हैं कि भूकंपों के विषय में हम पूर्वानुमान नहीं लगा सकते तो दूसरी तरफ इतनी बड़ी बड़ी बातें फेंकने लगते हैं !भविष्य में साढ़े आठ तीव्रता की बात कहना भी तो पूर्वानुमान ही है इसका आधार क्या है !बताया जा रहा है कि हिमालय में गैसों का संचय है इसलिए ऐसा कहा जा रहा है किंतु भूकंप पृथ्वी की गहराई में संचित गैसों के कारण ही आते हैं ऐसा कहने के पीछे मजबूत आधार क्या है !
कुलमिलाकर एक ओर तो हम आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ सूखा आदि घटित होने के पीछे इतने बड़े बड़े कारण इतने आत्मविश्वास के साथ गिना जाते हैं कि जैसे किसी वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर इन्हें खोजा गया हो तो दूसरी ओर आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ सूखा भूकंप वायु प्रदूषण आदि किसी भी विषय में कोई पूर्वानुमान प्रमाणिकता पूर्वक नहीं दे पा रहे हैं इसका कारण क्या है !
कुछ लोगों को लगता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण प्रकृति परिवर्तन हो रहा है इसलिए सर्दी गर्मी वर्षात आदि का समय चक्र बदल रहा है वर्षा के वितरण में असमानता होते देखी जा रही समय से आगे पीछे देखने को मिल रहा है !ऋतुओं के प्रभाव में विषमता दिखाई पड़ रही है कभी वर्षा और बाढ़ अधिक तो कभी सूखा जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जा रही हैं ऐसी विषमता अन्य ऋतुओं के प्रभाव में भी देखने को मिल रही है ! माकिसी नसून अपने निश्चित समय से आगे पीछे आता है !किसी किसी वर्ष आँधी तूफानों की संख्या में बहुत बढ़ोत्तरी हो जाती है और किसी वर्ष कुछ कम रह जाता है !ऐसा सबकुछ दिनों दिन बढ़ता जा रहा है जिसका कारण जलवायु परिवर्तन को बताया जा रहा है !
इसपर तर्क पूर्ण ढंग से बिचार करने के लिए जलवायु परिवर्तन के कारण होते दिखने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों का अतीत में घटित हुए किसी सौ दो सौ वर्ष के कालखंड का वर्तमान सौ दो सौ वर्ष के कालखंड का तुलनात्मक परीक्षण किया जाना चाहिए !उसके आधार पर निर्णय किया जाना चाहिए कि प्राकृतिक घटनाओं का क्रम स्वभाव स्वरूप आकार प्रकार प्रभाव आदि पहले के कालखंड में कैसा होता था और अब कैसा हो रहा है !यदि वास्तव में पहले के कालखंड में वर्षा आदि प्राकृतिक घटनाओं की प्रकृति कुछ ऐसी थी जिससे वर्तमान कालखंड में कोई बड़ा बदलाव आया है तब तो "जलवायुपरिवर्तन" जैसी कोई कल्पनाकरना तर्क संगत हो सकता है ऐसे ही निराधार अकारण अपने ज्ञान एवं अनुभव के अभाव में "जलवायुपरिवर्तन" जैसा कोई भ्रम पालकर बैठ जाना ये अनुसंधान भावना के लिए हितकर नहीं हैं !जिसे प्रमाणपूर्वक तर्कपूर्ण ढंग से सिद्ध न किया जा सके पारदर्शिता पूर्वक प्रस्तुत न किया जा सके !
प्रकृति से संबंधित घटनाओं के विषय में सबसे महत्वपूर्ण बिचार करने योग्य बात ये है कि मौसम का स्वभाव समझने में हम कितना सफल हुए हैं कही ऐसा तो नहीं है कि हमें मौसम के स्वभाव की समझ ही न हो हम केवल अपनी कल्पनाओं के आधार पर ही मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में निराधार बातें किए जा रहे हैं !
मानसून समय से नहीं आया या सर्दी गर्मी आदि ऋतुओं का ढंग बदल रहा है या वर्षा का वितरण ठीक नहीं हो रहा है या ग्लेशियर पिघलने लगे हैं या कहीं वर्षा और कहीं सूखा पड़ रहा है आदि और भी जिन घटनाओं के लिए हम "जलवायुपरिवर्तन" को जिम्मेदार मानते हैं !संभव है कि ऐसा हमेंशा से होता आ रहा हो किंतु सौ दो सौ वर्ष पहले मौसम संबंधी घटनाओं में कब क्या किस ढंग से किस मात्रा में घटित होता रहा है ऐसी कोई प्रमाणित जानकारी का संचय खोजने पर भी मुझे कहीं मिला नहीं है !वैसे भी सर्दी गर्मी वर्षा आदि मौसमसंबंधी घटनाएँ हमेंशा से घटित होती रही हैं किंतु आधुनिकवैज्ञानिक दृष्टि से मौसम संबंधी घटनाओं पर विचार अभी सौ दो सौ वर्ष पहले होना प्रारंभ हुआ है !इसलिए प्राकृतिकघटनाओं के संबंध में पहले ऐसा होता था अब नहीं होता है ऐसा कहने के पीछे आधारभूत प्रमाण क्या हैं |
व्यवहार में भी कई बार ऐसा देखा जाता है कि कोई ताला (लॉक) खोलने का के लिए हम बार बार प्रयास करते हैं किंतु ताला नहीं खुल रहा होता है तो हम ताले को ही बिगड़ा हुआ मानने लगते हैं और ताले में ही अज्ञानवश अनेकों प्रकार के दोष दुर्गुण निकालने लगते हैं हमें बार बार भ्रम होता है कि ताला नहीं खुल रहा है किंतु कई बार ऐसा भी हो जाता है कि उस ताले को खोलने के लिए हम जो ताली लगा रहे होते हैं वो उस ताले की होती ही नहीं है हम कोई दूसरी ताली लगाकर उस ताले को खोलने का प्रयास कर रहे होते हैं!इसलिए टाला नहीं खुला !जिसमें गलती हमारी होती है किंतु हम काफी समय इस भ्रम में निकाल देते हैं कि कहीं इस ताले में कुछ घुसा न दिया गया हो या इसमें जंग न लग गई हो या किसी अन्य प्रकार की खराबी ताले में ही आ गई हो आदि आदि !ये भ्रम हमारा तब टूटता है जब हमारे पास दो चार और भी तालियाँ होती हैं जिनमें से एक एक ताले में लगाकर देखा जाता है कई बार उनमें से ताला का गुच्छा होता है जिन तालियों को उस ताले में लगा लगाकर कर देखा जाता है!कई बार उन्हीं में किसी एक ताली से वही ताला खुल भी जाता है !इसके बाद इस बात का निश्चय हो जाता है कि वो ताला खराब नहीं था बल्कि उसमें जो चाभी लगाई जा रही थी वो उस ताले की थी ही नहीं !इसीलिए ताला नहीं खुल पा रहा था !
यही स्थिति मौसमसंबंधी अध्ययनों की है मौसम मानसून आँधीतूफानों या भूकंप जैसी घटनाओं के घटित होने न होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण क्या है इस पर अभी तक विश्वास पूर्वक कुछ भी नहीं कहा जा सका है जिसका कोई मजबूत आधार हो !ऐसे विषयों में कुछ मनगढंत काल्पनिक अत्यंत कमजोर तर्कों के अलावा हमारे पास ऐसा और है क्या जिसके आधार पर हम मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान पता लगा लेना चाहते हैं !
विज्ञान में तो किसी भी अनुसंधान को सभी प्रकार की तर्कप्रच्छालित कसौटियों से गुजरना होता है ! मौसम या भूकंप आदि घटनाओं से संबंधित अनुसंधानों को परखने के लिए हमारे पास क्या ऐसी कोई जानकारी है जिसके आधार पर हम अपनी जानकारी को तर्क की कसौटी पर कस सकते हैं इस विषय में हम जो जानते हैं क्या वह पर्याप्त है या ऐसे अनुसंधानों को करने के लिए हम जो प्रक्रिया अपना रहे हैं क्या वह ठीक है !इसका परीक्षण करने के लिए हमारे पास वैकल्पिक साधन और क्या हैं !जिसके बिना इस बात को परखने का हमारे पास कोई और दूसरा साधन नहीं होता है कि मानसून सही समय से नहीं आता है या अथवा हमलोग मानसून और मौसम की चाल को जिस प्रक्रिया से समझने का दावा कर रहे हैं वो प्रक्रिया ही गलत है !जिस प्रकार से टाला न खुलने के लिए जितना ताला दोषपूर्ण हो सकता है उतनी ही सारी संभावनाएँ चाभी में भी होती हैं !इसलिए मौसम से संबंधित अनुसंधानों की प्रक्रिया पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि इस विषय में हम जिन प्रक्रियाओं को लेकर आगे बढ़ाते हैं वे परीक्षित या तर्कों की कसौटी पर कसी हुई नहीं अपितु काल्पनिक हैं जिनके गलत होने की संभावना हमेंशा बनी रहती है ! हमें यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि "वैज्ञानिक आज तक प्रकृति की उन शक्तियों को समझ ही नहीं पाए हैं जो हमारे मौसम को ढालती हैं !" अन्यथा ऐसी दुविधा पैदा ही न होती !इसीलिए इन विषयों में पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया में हम अक्सर असफल ही होते रहे हैं !प्राकृतिक घटनाएँ जब तक अपने निर्धारित समय के अनुशार घटित होती रहती हैं तब हम उसी में कुछ जोड़ घटा कर भविष्यवाणियाँ करते रहते हैं जैसे ही वे थोड़ी इधर उधर होती हैं वैसे ही हमारे मौसम पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया की पोलखुलने लग जाती है !ऐसी परिस्थिति में अपनी तथाकथित वैज्ञानिकी साख बचने के लिए मजबूरीबश हमें जलवायुपरिवर्तन जैसी निराधार कल्पनाओं का सहारा लेना पड़ता है !जलवायुपरिवर्तन के प्रभाव के विषय में हमारे पास अभीतक ऐसी कोई सुपुष्ट जानकारी नहीं है जिसके आधार पर हम या सिद्ध करने की स्थिति में हों कि ऐसा ऐसा जो पहले नहीं होता रहा है वो सब कुछ होने लगा है और दोनों समय में घटित हुई प्राकृतिक घटनाओं की तुलनात्मिका समीक्षा की जा सके !
कुलमिलाकर हमारा ध्यान मौसम और मानसून में दोष निकालने की बजाए इस विषय से संबंधित हमारी अपनी कमजोरी की ओर क्यों नहीं जाता है !ऐसे अनुसंधानों के नाम पर हमने आज तक समाज को प्रकृति के विषय में कुछ मनगढंत काल्पनिक बातों के अलावा और दिया क्या है !अलनीनो ला-नीना वायुदाब तापमान जलवायुपरिवर्तन आदि को मौसम से हम जितना जोड़ घटाकर देखते हैं ये सब हमारी अपनी कल्पनाएँ ही तो हैं ! सकता है कि इनमें कुछ सच्चाई भी हो किंतु ये सच ही हैं ऐसा मानने के लिए मेरे पास कोई मजबूत आधार नहीं है ! ऐसी कल्पनाओं का मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से कोई संबंध हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है ! यह मानने में मुझे कोई संकोच नहीं होता है |
जिस वैज्ञानिक प्रक्रिया के आधार पर मौसमसंबंधी घटनाओं के पूर्वानुमान लगाए जाते हैं उन्हीं के आधार पर प्रकृति से संबंधित कुछ नियम सिद्धांत बनाए और बताए जाते हैं किंतु कुछ ही समय में उन नियमों सिद्धांतों को लाँघती हुई दूसरे प्रकार की घटनाएँ घटित होने लगती हैं कई बार तो विपरीत भी घटित होते देखी जाती हैं ऐसी पारिस्थिति में निनके द्वारा निर्धारित किए जाने वाले नियम और सिद्धांत ही टूट जाते हों उन्हीं के द्वारा उन्हीं नियमों के आधार पर की जाने वाली मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ कितनी विश्वसनीय हो सकती हैं !
किसी पात्र में पानी भरा होगा तो वो पात्र हिलते ही पानी भी हिलने लगता है और पानी हिलता है तो उसमें लहरें पड़ती ही हैं ये बात आम आदमी की भी समझ में भी आती है इसी बात को विज्ञानवेत्ताओं के द्वारा एक सिंद्धांत के रूप में प्रतिपादित किया गया कि भूकंप आने के कारण सुनामी आती है किंतु कई बार ऐसा होते देखा जाता है उसका कारण क्या है ये भी बताया जाना चाहिए !
कुछ समय पहले ही 22 दिसंबर 2018 की रात्रि में इंडोनेशिया में अचानक सुनामी आई जिसका कारण भूकंप नहीं था क्योंकि भूकंप तो आया ही नहीं था जबकि उस सुनामी से भारी जनधन की हानि हुई ! इसीप्रकार से 18 जून 2018 को जापान के उत्तर पश्चिमी हिस्से में 6.7 तीव्रता वाले शक्तिशाली भूकंप के बाद अधिकारियों ने सुनामी की चेतावनी जारी की लेकिन सुनामी आने के कारण ढाई घंटे के बाद उस चेतावनी को वापस ले लिया गया। ऐसा न होने के कारणों की खोज की जानी चाहिए थी किंतु ऐसा तो हुआ नहीं बल्कि सुनने को ये मिला कि ऐसा देखकर वैज्ञानिकों को बहुत आश्चर्य हुआ है !इसके लिए भी यदि जलवायुपरिवर्तन ,अलनीनों लानीना जैसी घटनाओं को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होता क्योंकि अन्य प्रकरणों में भी तो ऐसी ही परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन शब्द का उपयोग किया जाता है !
वर्तमान वैज्ञानिक युग में इस सच्चाई को कितने लोग स्वीकार कर पाएँगे कि समुद्र का जल पृथ्वी पर आश्रित होता तब न पृथ्वी के हिलने पर समुद्र जल भी हिलता और सुनामी आ जाती किंतु यदि पृथ्वी की तरह ही समुद्र का भी पृथ्वी से अलग हटकर अपना स्वतंत्र आस्तित्व है तो ये आवश्यक तो नहीं कि पृथ्वी के हिलने से समुद्र जल को भी हिलना ही चाहिए !कई बार ऐसा होते देखा जाता है किंतु इस विषय में यह कोई निश्चित सिद्धांत नहीं है !विज्ञान के नाम पर ऐसे ही तर्क हम मौसम और भूकंपों के विषय में दे रहे हैं किंतु उन्हें कसौटी पर कसने में कठिनाई हो रही है |
भूकंपों के आने का कारण पृथ्वी के गर्भ में तैर रही उन टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराने को बताया जा रहा है जो अत्यंत गर्म लावे रही हैं !इसी प्रकार से पृथ्वी के गर्भ में संचित गैसों के दबाव के कारण भूकंपों का घटित होना बताया जा रहा है |
1962 में कोयना क्षेत्र में जलाशय बनाया गया 1967 में उसमें जल संग्रह किया गया उसी वर्ष 1967 में ही कोयना क्षेत्र में 6.3 तीव्रता का भूकंप आया था. तब से अब तक इस क्षेत्र में हजारों भूकंप आ चुके हैं. सभी भूकंप 30 गुना 20 किलोमीटर के दायरे में सीमित रहे हैं !बताया जाता है कि पहले क्षेत्र भूकंप नहीं आते थे जलाशय बनने के बाद ही भूकंपों का आना प्रारंभ हुआ !इसलिए यह बात तो सबकी समझ में आ जाती है कि इन भूकंपों के आने का संबंध किसी न किसी प्रकार से उस जलाशय के निर्माण से है किंतु जलाशयनिर्मित होने से क्यों भूकंप आने लगे उसके वास्तविक कारण क्या हो सकते हैं जिस पर कोई खोज होनी चाहिए थी किंतु ऐसा नहीं किया जा सका !बताया गया कि जल संग्रह होने से अतिरिक्त वजन के कारण भूमिगत प्लेटों पर दबाव पड़ा इसलिए भूकंप आने लगे !किंतु इस तर्क को कसौटी पर कसने पर अन्य जलाशयों की ओर भी ध्यान जाना स्वाभाविक ही है जब वहाँ जलाशयों के निर्माण हुए यहाँ तक कि टिहरी में जलसंग्रह किया गया तब वहाँ तो ऐसा नहीं हुआ ऐसी परिस्थिति में कोयना में ऐसा होने के लिए वहाँ के जलभार को कारण मानना कितना उचित होगा ! यदि ऐसी परिस्थिति पैदा होने के लिए भी जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बता दिया गया होता तो भी मुझे आश्चर्य नहीं होता ! कुल मिलाकर वर्तमान वैज्ञानिक युग में भूकंपों को खोजने के लिए पृथ्वी के अंदर गहरे गड्ढे खोदने वाले वैज्ञानिकों में से इस सच्चाई को कितने लोग स्वीकार कर पाएँगे कि भूकंप आने के कारण पृथ्वी के अंदर कम और बाहर अधिक होते हैं !
7 अगस्त 2018 से केरल में भीषण बारिश प्रारंभ हुई और एक सप्ताह तक चली जिस कारण केरल बाढ़ से डूबने उतराने लगा !भारी जनधन की हानि हुई !इसमें विशेष बात यह है कि 7 अगस्त 2018 को अगस्त सितंबर के लिए सामान्य वर्षा होने के पूर्वानुमान संबंधित सरकारी विभाग के द्वारा घोषित किए गए थे ,किंतु जब वर्षा इतनी अधिक हो गई तब प्रश्न उठने स्वाभाविक थे ही तो संबंधितवैज्ञानिकों से पूछा जाने लगा कि आपकी भविष्यवाणी गलत क्यों हुई तो उन्होंने जलवायु परिवर्तन को कारण बताकर अपना पल्ला झार लिया !
कई अन्य प्रकरणों में भी तो ऐसी ही दुविधा पूर्ण स्थिति में वैज्ञानिक लोग जलवायुपरिवर्तन शब्द का सहारा लेते देखे जाते हैं क्योंकि प्रकृति से संबंधित किसी भी घटना के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बता देने के बाद कोई तर्क वितर्क आदि नहीं किए जा सकते हैं जलवायुपरिवर्तन का दायरा इतना असीमित गढ़ लिया गया है कि आकाश से पाताल तक सजीव से निर्जीव तक जहाँ कहीं भी जिस किसी भी प्रकार का कोई नया बदलाव होता लगे उसका कारण जलवायुपरिवर्तन को बताया जा सकता है उसे मानना समाज की मजबूरी है क्योंकि समाज के पास इस विषय में कोई और विकल्प ही कहाँ बचता है |
इस विषय में वैज्ञानिक भावना से यह बात सोचने की आवश्यकता है कि आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ भूकंप आदि के लिए जिम्मेदार कारणों के विषय में हमारे पास जो जानकारी है क्या वह पर्याप्त है या ऐसे अनुसंधानों को करने के लिए हम जो प्रक्रिया अपना रहे हैं क्या वह ठीक है या उसके अतिरिक्त भी ऐसी घटनाओं से संबंधित अनुसंधान करने के लिए हमारे पास और भी कोई विकल्प हैं !यदि ऐसा नहीं है तो संभव यह भी है कि मौसमसंबंधी अध्ययनों के लिए हम जिस प्रक्रिया को अपना रहे हैं वो प्रक्रिया ही ठीक न हो या उसका मौसम से कोई संबंध ही न हो !कहीं ऐसा तो नहीं कि हम केवल अपने मन से ही मौसम के विषय में निराधार कल्पनाएँ किए जा रहे हैं कि इस तारीख को मानसून आताहै ! अलनीनों लानीना का मौसम पर असर पड़ता है या ग्लोबल वार्मिंग के कारण आँधी तूफ़ान आ रहे हैं जलवायु परिवर्तन के कारण कहीं कम कहीं अधिक वर्षा हो रही है और कहीं सूखा पड़ रहा है | कभी कहा जाता है कि धरती बहुत अधिक गर्म हो रही है इसलिए वर्षा अधिक हो रही है !
इसीप्रकार से वायुप्रदूषण के विषय में हमारे वैज्ञानिक अनुसंधान कम और कल्पनाएँ अधिक काम कर रही हैं!वायुप्रदूषण बढ़ने के समय हम जब जो कुछ देख लेते हैं उसे ही वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार ठहरा देते हैं |
सच्चाई तो ये है कि वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण प्राकृतिक है या ये मनुष्यकृत है !यदि मनुष्यकृत है तो कैसे ?किसी वैज्ञानिक अनुसंधान के द्वारा अभी तक इस बात का ही निर्णय किया जाना चाहिए कि वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण किसे माना जाए और क्यों माना जाए !किसी प्रक्रिया को कारण मानने के पीछे कुछ विश्वसनीय तर्क भी तो दिए जाएँ ताकि समाज का उन तर्कों पर विश्वास बढ़े और समाज स्वयं उन कामों को छोड़ने या कम करने का प्रयास करे जिनसे वायु प्रदूषण बढ़ता हो | ऐसे तो जहाँ धुआँ धूल आदि उड़ती दिखाई देती है हम उसे ही प्रदूषण बढ़ने का कारण मानकर उसे ही जिम्मेदार ठहरा देते हैं !
वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर इतनी हल्की बातें करना ठीक नहीं है कि दशहरा आवे तो दशहरे में रावण जलने को , दिवाली आवे तो पटाके जलने को और होली आवे तो होली जलने को वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है !सर्दी में हवा के धीमे चलने को ,गर्मी में हवा के तेज चलने को,धान काटने के समय पराली जलाने से उत्पन्न धुएँ को वायु प्रदूषण बढ़ने को कारण बता दिया जाता है !जब इनमें से कोई कारण दिखाई न दे फिर भी वायु प्रदूषण बढ़ता दिखे तो गाड़ियों के धुएँ से ,घर बनने से,ईंट भट्ठे चलने से,हुक्का पीने से,महिलाओं के स्प्रे करने से,भौगोलिक कारणों से ऐसे तमाम वे कारण बता दिए जाते हैं जो बारहो महीने तीसो दिन चौबीसों घंटे विद्यमान रहते हैं !
इसी प्रकार से बताया जाता है कि ज्वालामुखी फटने से वायु प्रदूषण बढ़ता है ! फ्रिज, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों की सीएफसी गैसों के ऊत्सर्जन के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है !ऐसे और भी बहुत सारे कारण वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए गिनाए जाते रहते हैं !
इस विषय में विचारणीय बात यह है कि एक ही समय में बहुत सारे देशों शहरों में एक साथ ही वायु प्रदूषण बढ़ता है जबकि सभी जगह कारण एक जैसे नहीं होते हैं !दूसरा जो कारण बताए जाते हैं उनके समाप्त होने के बाद तो वायु प्रदूषण कम होना चाहिए किंतु ऐसा नहीं होता है तब तक दूसरे कारण गिना दिए जाते हैं ऐसे ही समय बीतता जाता है जब जब वायुप्रदूषण बढ़ता है तब तब कोई न कोई कारण बता दिए जाते हैं !
कुलमिलाकर जहाँ कहीं से धुआँ धूल आदि उठते देखा जाता है उसे ही वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है !यह स्थिति पर्यावरण और मौसम पर किए जा रहे हमारे अनुसंधानों की है !किसी विषय पर इतनी ढुलमुल बातों में विज्ञान कहाँ है और यदि इन्हें विज्ञान मानना प्रारंभ कर दिया जाएगा तो ऐसी आधारविहीन कल्पनाएँ तो कोई भी कर सकता है !इनके लिए विज्ञान की आवश्यकता क्या है ?
इसलिए जो वायुप्रदूषण प्रकृति एवं स्वास्थ्य के लिए इतना अधिक हानिकर है प्राकृतिक आपदाएँ घटित होने के लिए तथा तरह तरह के रोग फैलने के लिए जिस वायुप्रदूषण को जिम्मेदार माना जा रहा है !उस वायुप्रदूषण के विषय में ये तो पता होना ही चाहिए कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए वास्तविक जिम्मेदार है कौन ?प्रकृतिजिम्मेदार है तो उसमें मनुष्य का दोष क्या है और यदि यह मनुष्यकृत है तो मनुष्य के द्वारा किए जाने वाले कौन कौन से कार्य इसके लिए किस किस प्रकार से जिम्मेदार हैं तथा उन उन कार्यों में कमी लाने से वायु प्रदूषण नियंत्रित हो जाएगा क्या ?
समाज को इस प्रकार से उनकी शंकाओं का विश्वसनीय उत्तर देकर यदि संतुष्ट किया जा सकता है तो मुझे विश्वास है कि मनुष्य वायु प्रदूषण को घटाने के लिए यथा संभव प्रयास स्वयं करेगा !
ऐसे ही भूकंपों के विषय में है भूकंपों के घटित होने से जनधन की भारी हानि होती है इसलिए समाज एवं सरकारों का इसके लिए चिंतित होना स्वाभाविक है !इसीलिए इससे संबंधित अध्ययनों अनुसंधान कार्यों में सरकारें सभी प्रकार से रूचि लेती हैं इससे संबंधित अनुसंधानों के लिए बहुत सारे वे लोग लगाए गए हैं जो अपने को इन विषयों का वैज्ञानिक मानते हैं ये क्रम दशकों से चलाया जा रहा है किंतु दुर्भाग्य से आजतक यह नहीं बताया जा सका है कि भूकंपों के घटित होने का वास्तविक कारण क्या है ?पृथ्वी के अंदर संचित गैसों के दबाव के कारण भूमिगत प्लेटों के टकराने से भूकंप घटित होता है ! ऐसा बताया जा रहा है किंतु ये बात तब तक विश्वास करने योग्य नहीं लगती है जब तक कि इसके आधार पर अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाए जाएँ और वो सही एवं सटीक घटित न हो जाएँ !
वस्तुतः जमीन के अंदर घटित होने वाली ऐसी किसी भी घटना को यदि देखा सुना या जिस किसी भी प्रकार से अनुभव किया गया होगा जिसके आधार पर यह कहा जा रहा है कि पृथ्वी के अंतर स्थित गैसों के दबाव के कारण प्लेटों के आपस में टकराने से भूकंप घटित होता है! प्रकृति के जिन लक्षणों का अध्ययन या अनुसंधान आदि करके प्रकृति की जिस अवस्था के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है यदि यह सही है तो इसी के आधार पर भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान भी तो लगाया जा सकता है !
भूकंपों का निर्माण प्रकृति की जिस किसी भी अवस्था में होता होगा उस प्राकृतिक अवस्था का निर्माण होने में भी तो कुछ समय लगता होगा उसके आधार पर पहले उस विषय से संबंधित पूर्वानुमान लगा लिए जाएँ क्योंकि किसी भी विषय से संबंधित पूर्वानुमान सही एवं सटीक घटित हुए बिना भूकंप जैसी इतनी बड़ी घटना के विषय में यह कह देना कि भूकंप घटित होने का यह कारण हो सकता है !इस बात को विश्वास करने योग्य कैसे माना जा सकता है !
विशेष बात एक और भी है कि एक ओर तो भूकंपों के घटित होने का कारण हो या पूर्वानुमान इसके विषय में पता लगा पाना अभी असंभव माना जा रहा है भूकंपों के विषय में अभीतक हुए अनुसंधानों की यही उपलब्धि मानी जा सकती है !ऐसी परिस्थिति में भूकंपों के विषय में किसी वैज्ञानिक निष्कर्ष पर पहुँचे बिना ये कैसे कहा जा रहा है कि निकट भविष्य में हिमालय में एक बड़ा भूकंप आएगा जिसकी तीव्रता साढ़े आठ से अधिक होगी !ऐसी बातें किस आधार पर कही जा रही होती हैं !एक तरफ तो हम कहते हैं कि भूकंपों के विषय में हम पूर्वानुमान नहीं लगा सकते तो दूसरी तरफ इतनी बड़ी बड़ी बातें फेंकने लगते हैं !भविष्य में साढ़े आठ तीव्रता की बात कहना भी तो पूर्वानुमान ही है इसका आधार क्या है !बताया जा रहा है कि हिमालय में गैसों का संचय है इसलिए ऐसा कहा जा रहा है किंतु भूकंप पृथ्वी की गहराई में संचित गैसों के कारण ही आते हैं ऐसा कहने के पीछे मजबूत आधार क्या है !
कुलमिलाकर एक ओर तो हम आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ सूखा आदि घटित होने के पीछे इतने बड़े बड़े कारण इतने आत्मविश्वास के साथ गिना जाते हैं कि जैसे किसी वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर इन्हें खोजा गया हो तो दूसरी ओर आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ सूखा भूकंप वायु प्रदूषण आदि किसी भी विषय में कोई पूर्वानुमान प्रमाणिकता पूर्वक नहीं दे पा रहे हैं इसका कारण क्या है !
प्रकृति में प्रायः छोटी मोटी घटनाएँ तो घटित होती ही रहती हैं अक्सर वे ऋतुओं से संबंधित ही होती हैं इसलिए उनसे संबंधित जो भविष्यवाणियाँ की जाती हैं वे सही निकलें या न निकलें उनसे समाज को बहुत बड़ा फर्क नहीं पड़ता है जैसे सर्दी की ऋतु में सर्दी कुछ कम पड़ सकती है या कुछ अधिक किंतु इतना तो निश्चित ही है कि गर्मी नहीं पड़ने लगेगी !ऐसी परिस्थिति में सर्दी की ऋतु में सर्दी होने से संबंधित भविष्यवाणियाँ किसी भी प्रकार से गलत नहीं मानी जा सकती हैं लोग मानते भी नहीं हैं और न ही उधर ध्यान ही देते हैं किंतु जब कुछ ऐसी विशेष घटनाएँ घटित होती हैं जो कुछ अलग हटकर होती हैं उनकी ओर समाज का ध्यान भी जाता है या फिर जिन घटनाओं में जन धन की हानि विशेष अधिक होते देखी जाती है उधर समाज का ध्यान जाता है ! मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ करने वाले लोगों के भविष्य विज्ञान की ऐसे समय ही परीक्षा हो पाती है कि वे जिसे भविष्य विज्ञान मान रहे हैं वो भविष्य का पूर्वानुमान लगाने में कितना सक्षम है |
इसी दृष्टि से सन 2010 से 2019 के बीच में घटित हुई कुछ बड़ी प्राकृतिक घटनाओं का उदाहरण लेकर यदि देखा जाए तो इस बात को समझने में सुविधा होगी कि हम जिसे मौसम संबंधी भविष्य को जानने वाला विज्ञान मानते हैं उसमें वास्तव में विज्ञान है क्या ?क्योंकि तालियों के बहुत बड़े गुच्छे में चाभियाँ तो सभी होती हैं और सभी चाभियाँ ताला खोलने की क्षमता रखती हैं ! किंतु जो ताला हम खोलना चाह रहे हैं वो जिस चाभी से खुल जाए वही उसकी चाभी मानी जानी चाहिए !यदि ऐसा न हो तो केवल चाभी होने के कारण उसे उस ताले की चाभी कैसे माना जा सकता है !ऐसे ही मौसमविज्ञान कहलाने की अधिकारी तो वही ज्ञानपद्धति है जो मौसम संबंधी घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान लगाने में सक्षम हो इस दृष्टि से मौसम संबंधी कुछ घटनाएँ आपके समक्ष प्रस्तुत की जा रही हैं !आप स्वयं अनुभव कीजिए
प्रस्तुत हैं सन 2010 से 2019 के बीच में घटित हुई कुछ प्राकृतिक घटनाएँ -
केदारनाथ जी में आया भीषण सैलाव - 16 जून 2013 में केदारनाथ जी में भीषण वर्षा का सैलाव आया हजारों लोग मारे गए किंतु इसका पूर्वानुमान पहले से बताया गया होता तो जनधन की हानि को घटाया जा सकता था किंतु ऐसा नहीं हो सका ! बाद में कारण बताते हुए कहा गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी घटनाएँ घटित हो रही हैं !
भारत में भीषण हिंसक तूफान-
21 अप्रैल 2015 को बिहार और नेपाल में में भीषण तूफ़ान आया था उससे जनधन की भारी हानि हुई थी किंतु इसका कहीं कोई पूर्वानुमान किसी भी रूप में घोषित नहीं किया जा सका था !
2 मई 2018 को भारत में भीषण आँधी तूफान आया जिसमें भारी जनधन की हानि हुई किंतु उसके विषय में कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी !
17 अप्रैल 2019 को अचानक भीषण बारिश आँधी तूफ़ान आदि आया बिजली गिरने की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी गेहूँ भीग गया और लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हो गई !इस घटना के विषय में भी पहले कभी कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया था !
इसी प्रकार से सन 2018 की ग्रीष्म ऋतु में भारत में हिंसक तूफानों की और भी बार बार घटनाएँ घटित हुईं जिनकी कभी कोई भविष्यवाणी तो नहीं ही की गई थी साथ ही ऐसा इसी वर्ष क्यों हुआ इसका कारण भी बताया नहीं जा सका इसके विषय में कह दिया गया कि इसके लिए रिसर्च की आवश्यकता है किंतु ऐसी कोई रिसर्च हुई भी है तो उसके क्या परिणाम निकले यह भी तो समाज को बताया जाना चाहिए था किंतु ऐसा नहीं हुआ !
इसी विषय में दूसरी बड़ी बात यह है कि आँधी तूफानों का पूर्वानुमान बता पाने में असमर्थ रहे ऐसे मौसम भविष्यवक्ताओं ने अंत में 7 और 8-मई -2018 को भीषण आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी कर दी थी उस पर सरकारों ने भरोसा करके दिल्ली के आसपास के सभी स्कूल कालेज बंद करवा दिए गए किंतु उस दिन हवा का झोंका भी नहीं आया !
अंत में उनके द्वारा की गई भविष्यवाणी भविष्यवाणी मौसम संबंधी भविष्यवाणी भविष्यवाणी गलत निकल जाने के बाद उन्हीं भविष्यवक्ताओं को स्वीकार करना पड़ा कि ग्लोबलवार्मिंग के कारण घटित होने वाले ऐसे आँधी तूफानों के बिषय में कोई पूर्वानुमान लगाना अत्यंत कठिन क्या असंभव सा ही है इस लाचारी को किसी समाचार पत्र में छापा गया था जिसकी हेडिंग थी "चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"चूँकि भविष्यवक्ताओं के तीर तुक्के इस पर नहीं चले इसका मतलब उनकी अयोग्यता नहीं अपितु "चक्रवात चुपके चुपके से आते हैं" ऐसा लिखा गया !
मद्रास में भीषण बाढ़ -
सन