गुरुवार, 28 मई 2020

भ्रष्ट बाबाओं ज्योतिषियों कथाबाचकों ने दर्पण दिखाने का काम हमेंशा किया है !

    धर्म कर्म से जुड़े लोगों में जीवित लोगों की  संख्या जितनी अधिक होती है धार्मिक  क्षेत्र में उतनी प्रतिरोधक क्षमता बनी रहती है और इस प्रकार के वायरस हॉवी नहीं होने पाते हैं पूज्यपाद धर्म सम्राट स्वामी करपात्री  जी महाराज कहा करते थे कि जीवित लोग धारा के साथ नहीं बहते हैं अपितु अपनी सजीवता सिद्ध करते हैं | वर्तमान में तो अपने को अच्छा मानने वाले लोग भी उन्हीं पाखंडियों की तरह का आचरण करते देखे जा रहे हैं |जिससे जनता भ्रमित है क्योंकि चमक असली से ज्यादा नकली में होती है इसलिए अक्सर चमक दमक के शौकीन लोग नकली में फँस जाते हैं |इसमें जितना दोष उन पाखंडियों का नहीं है उससे अधिक दोषी वे लोग हैं जिनके जीवित रहते ऐसे पाखंडी लोग सनातन धर्म के नाम पर गंदगी फैलाते देखे जा रहे हैं |
 पहले धर्म कर्म खानपान रहन सहन अध्ययन अध्यापन आदि के जो शास्त्रीय नियम धर्म थे उन्हें ब्राह्मणों विद्वानों संस्कृत विद्यार्थियों कथावाचकों ने छोड़ने शुरू कर दिए इसलिए धर्मव्यापारी, कथाव्यापारी, नशेड़ी  अयोग्य विधर्मी एवं अपराधियों ने धर्मकर्म  के क्षेत्र में भड़ैतीमचा रखी है |भोगगुरु बाबाकामदेव को ही देखिए जिसने 'पतितांजलि' पीठ बना रखी है | योग के नाम पर कसरतों को बेच रहा है |
    वस्तुतः जब तक कुऍं में  गहराई पर जल होता है तब तक वही भर पाते हैं जिनके पास योग्यता धर्मकर्म सदाचरण रूपी रस्सी होती है किंतु जब सुविधाओं के नाम पर कुएँ की गहराई समाप्त कर दी जाती है तब हर व्यक्ति उसमें अपने शुद्ध अशुद्ध बर्तन डुबा लेना चाहता है उससे जल की पवित्रता तो नष्ट होती ही है | इसमें गलती अशुद्ध बर्तन डूबोने वाले की नहीं अपितु कुऍं का गांभीर्य समाप्त करने वाले उन लोगों की है जिनका वो कुआँ था |
     कथा के क्षेत्र में ही देखिए कि बड़े बड़े शहरों में डांसबार बंद हुए तो वे नचैया गवैया कथा क्षेत्र में घुस आए वहाँ फिल्मी गाने नाच गा रहे थे अब उन्हीं धुनों पर धार्मिक गाने गाते नाचते देखे जाते हैं | इसीप्रकार से कुछ पुरुषवेश्या जो 'जिगोलो' के नाम से प्रसिद्ध हैं उन्होंने अपने स्वरूप ,श्रृंगार और पुंसत्व स्त्रीत्व आदि के बलपर अपने को कथा वाचक सिद्ध कर रखा है आज भी वे कथाओं के नाम पर वही जिगोलोगिरी ही रहे हैं और धार्मिक वेषभूषा में उनके ग्राहक भी वही हैं जो करोड़ों रूपए उनके कथा आडंबरों पर खर्च करते हैं | पहचान बदल जाने से ग्राहकों को कोई अब ये नहीं कहता कि उन्होंने अपने घर 'जिगोलो' को क्यों बुलाया है अब तो वो जिगोलो कथाव्यास और उस घर का गुरू बन चुका होता है |
        आजकल तो इतना एडवांस युग आ गया है कि सुंदर दिखने वाले लड़के लड़कियों को उनके घरवाले पैदा होते ही कथावाचक सिद्ध कर देते हैं उन्हें पता होता है कि ये रामायण भागवत पढ़ें  न पढ़ें इनके शरीर  में जवानी तो एक बार आएगी ही वो इतना दे जाएगी कि सारे जीवन अपनी ऐय्यासी चलेगी !
    उन्हें पता होता है कि विद्वत्ता हो न हो जवानी तो हर किसी की अपने समय पर आ ही जाती है !कथा नहीं बिकी तो अपनीजवानी बेच लेंगे !जवानी ढलते ही ये बेकार हो जाते हैं |फिर बूढ़े साँड़ों को कोई नहीं पूछता है | जबकि रामायण भागवत के विद्वानसदाचारी साधक कथावाचकों का बुढ़ापा तो छोड़िए उनका शरीर छूट जाने के बाद भी जिन आसनों पर वे बैठते रहे होते हैं उन  आसनों को दशकों शतकों तक अपने शृद्धाश्रुबिंदुओं से गीला करते रहते हैं |   "विद्यावतां भागवते परीक्षा"किंतु जिनमें संस्कृत भाषा को पढ़ने समझने अनुवाद करने भागवत मर्मज्ञ बने फिर रहे हैं | आज लोग भागवत कहने के लिए  नहीं पढ़ रहे अपितु संगीत सीख रहे हैं | भागवत के नामपर 'भोगवत' करने की चाह में ये ऐसा करते हैं |
      पाखंडियों को लगता है कि शरीर तो अपना है | शरीर तो सबका ही समय पर युवा होगा ही वो आध्यात्मिक आवश्यकताओं की आपूर्ति भले न कर पावे किंतु दूसरों की युवा अवस्था संबंधी आवश्यकताओं की आपूर्ति तो कर ही लेगा | 'तमाशाराम' या उसका लड़का इसी भावना के आदि आचार्य है जिनसे प्रेरणा लेकर आज तमाम छिछोरे छिछोरियाँ कथा बाचक बनकर  वही करते देखे जा रहे हैं किंतु उन तक कानून के हाथ अभी पहुँचे नहीं हैं इसलिए वे अभी भी गुरु बनकर कहीं छिछोरेपन को अंजाम दे रहे होंगे !ऐसे बदमाश धर्म की प्रत्येक विधा में उन विषयों के विद्वानों को  अपने से पीछे कर चुके हैं | 
     आज तक जितने भी बड़े बड़े कथावाचक विद्वान् हुए हैं उनमें से कितने ऐसे लोग रहे हैं जो रामायण  भागवत की कथाएँ नाच गा कर करते रहे हैं !रामायण  भागवत की कथाएँ स्वयं में इतनी मधुर हैं कि कठोर बोलने  के लिए प्रसिद्ध  कौआ भी  कथा कहता है तो - "मधुर बचन तब बोलेउ कागा " |संगीतमय कथाओं का मतलब फीके खरबूजे को चीनी के साथ खाना ! भगवान् की कथाओं का इतना बड़ा अपमान करने वाले भी अपने को धार्मिक कह रहे हैं | कथाएँ मनोरंजन के लिए नहीं अपितु आत्मरंजन के लिए होती हैं उसमें मनोरंजन का मतलब है खीर में कंकड़ मिलाना !
     इसलिए धार्मिक भ्रष्टाचारी कोई एक व्यक्ति नहीं अपितु एक बिचार धारा है जिससे पोषित होने वाले लोगों की  संख्या अधिक है | उनकी बुराई करके उनसे नहीं जीता जा सकता है अपितु अपनी विद्वत्ता सदाचरण एवं धार्मिक महापुरुषों के उपदेशों का प्रचार प्रसार करके ऐसी धर्मबिरोधी बिचार धारा को पराजित किया जा सकता है | 

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