सोमवार, 25 मई 2020

Pratham 2

जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति की दृष्टि से कितने सक्षम हैं वैज्ञानिक अनुसंधान !

   मौसम पूर्वानुमान से संबंधित अधिकाँश भविष्यवाणियाँ गलत निकल जाती हैं या द्वयर्थी होती हैं जिसका मतलब सरकारों को समझ में नहीं आता है जनता क्या समझे और किसान उनका लाभ कैसे उठावें|मौसमी भविष्यवाणियों के कारण नुक्सान उठा चुके हैरान परेशान कुछ जागरूक असंतुष्ट किसानों  के द्वारा ऐसे मौसम भविष्यवक्ताओं पर केस और कंप्लेन भी किए गए हैं |
    मौसम का असर सबसे अधिक किसानों पर पड़ता है कृषि कार्यों के लिए मौसम संबंधी जानकारी उन्हें आगे से आगे चाहिए होती है क्योंकि कृषि योजना बनाने के लिए उन्हें महीनों पहले वर्षा से संबंधित पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है | धान जैसी कुछ फसलें अधिक वर्षा में भी हो जाती हैं जबकि मक्का जैसी फसलों के लिए बहुत कम और अरहर के लिए कम वर्षा की आवश्यकता होती है | उसी प्रकार से रवि की फसल में आलू के लिए बार बार पानी की आवश्यकता होती है किंतु अधिक पानी भर जाने से यह फसल ख़राब हो जाती है | गेहूँ कुछ अधिक पानी में भी हो जाता है जबकि सरसों अलसी आदि कम पानी में भी हो आते हैं किंतु आँधी तूफ़ान आदि के कारण पौधे गिर जाने से इन फसलों में काफी नुक्सान होते देखा जाता है |
     ऐसी परिस्थिति में वर्षा और आँधी तूफ़ान रोके तो जा नहीं सकते जब जो होना होगा वो तो होगा है किंतु उनके विषय में फसलों को बने के समय में यदि पहले से पता हो कि इस वर्ष वर्षा कैसी होनी है उसी हिसाब से फसलों का चयन किया जाए कि इस वर्ष किस प्रकार की फसल ऊँचे नीचे आदि किस प्रकार के खेतों में बोई जानी चाहिए | इससे उनका नुक्सान होने से बच जाता है |इस प्रकार से किसानों का उद्देश्य तो मौसम को जानना होता है ताकि अपनी कृषि की उपज को नुक्सान से बचाकर सुरक्षित संरक्षित करते हुए बचाया और बढ़ाया जा सके | 
    मौसम संबंधी अनुसंधानों का उद्देश्य यदि किसानों की इस प्रकार की आवश्यकताओं की आपूर्ति करना है तो वर्तमान मौसम संबंधी पूर्वानुमान उनके लिए बहुत उपयोगी नहीं हो पाते हैं क्योंकि दोचार दिन पहले का पूर्वानुमान बताया जाता है कई बार तो उसी दिन का बताया जा रहा होता है | सन 2020 के अप्रैल मई महीने में जब हजारों गट्ठे गेहूँ कटा हुआ खेतों में पड़ा था उस दिन दोपहर में मौसम पूर्वानुमान टीवी पर बताया जा रहा था कि आज अधिक पानी बरसेगा अपनी कटी हुई खेतों में पड़ी फसलों को खेतों से उठाकर सुरक्षित स्थानों पर ले जाएँ !ऐसे में वो हजारों गट्ठा गेहूँ किसान इतने कम समय में सुरक्षित कैसे कर सकते थे | पहले से पता होता तो थ्रेसरिंग करवाकर गेहूँ ही उठा सकते थे भूसा पड़ा रहता तो बाद में देख लेते | 
    वस्तुतः किसानों को मौसम संबंधी पूर्वानुमान फसल बोने के समय ही दो चार महीने पूर्व के चाहिए होते हैं ताकि ऊँचे नीचे खेतों के हिसाब से फसलों का उचित चयन किया जा सके एवं अच्छी पैदावार के साथ उपज सुरक्षित घर लाई जा सके जिसमें मौसम का सहयोग पूरे समय तक मिलता रहे | 



   वर्तमान समय में वैज्ञानिक अनुसंधानों  के नाम पर प्राचीन विज्ञान की उपेक्षा की गई है जिसका असर प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है| 
    वर्तमान समय में आधुनिक वैज्ञानिकों की अत्यधिक उदारता के कारण बहुत सारे विषयों से संबंधित आधे अधूरे ज्ञान को भी विज्ञान की श्रेणी में सम्मिलित कर लिया गया है ऐसे सत्तासक्षम लोग जो कुछ कह दें वही विज्ञान हो जाता है और वे जिसका समर्थन कर दें वही वैज्ञानिक मान लिया जाता है|  
      किसी विषय का ज्ञान तो बहुत लोगों को हो सकता है जो किसी से पढ़ने सुनने या किसी पुस्तक को पढ़ लेने से प्राप्त हो सकता है जब उसी ज्ञान में अपना अनुसंधानात्मक अनुभव भी जुड़ जाता है जिसके द्वारा उस लक्ष्य तक पहुँचने की यात्रा तय कर ली जाती है तो वही ज्ञान  अधिक परिमार्जित अनुभूत एवं अधिक विश्वसनीय होने के कारण वह केवल ज्ञान ही नहीं रह जाता है अपितु उस विषय का विशेष ज्ञान होने के कारण वह उस विषय से संबंधित विज्ञान मान लिया जाता है | विशेष ज्ञान से अभिप्राय केवल सुनी सुनाई बातों पर विश्वास न करके जिस व्यक्ति को उस विषय का स्वयं भी अनुभव करने में सफलता मिली हो वही उस विषय का वैज्ञानिक होता है |
   वर्तमान समय में प्रकृति और जीवन से जुड़े कई महत्वपूर्ण विषयों में इसी प्रकार से ताला लगाकर छोड़ दिया गया है उन विषयों में अनुसंधान करने की जिम्मेदारी सँभाल रहे लोग अपने ज्ञान विज्ञान अनुभवों आदि के द्वारा उन अनुसंधानों में बार बार असफल होते जा  रहे हैं |ऐसी असफल अनुसंधान यात्राओं का नेतृत्व करते हुए उन्होंने दसों दशक निरर्थक व्यतीत कर दिए !जनता के  रूप में दिया गया जनता  पैसा बर्बाद हुआ सो अलग इसके बाद भी वे यह मानने   को तैयार नहीं हैं कि वे असफल हुए हैं | उनके पास कोई अन्य विकल्प न होने के कारण वे उन्हीं विषयों को विज्ञान के रूप में केवल इसलिए प्रतिष्ठित किए हुए हैं क्योंकि उन बिषयों की प्रतिष्ठा में ही उन व्यक्तियों की अपनी प्रतिष्ठा है और अपनी प्रतिष्ठा बनाए एवं बचाए रखने के लिए सब कुछ किया जा रहा है |इसी संकीर्ण एवं स्वार्थ भावना के कारण कुछ अत्यंत आवश्यक विषयों से संबंधित अनुसंधान योजनाएँ संकीर्ण भावनाओं की भेंट चढ़ती चली जा रही हैं उन विषयों में अनुसंधानों के नाम पर केवल खानापूर्ति होते सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है |  

    इसमें सरकारों की भूमिका हमेंशा से संदिग्ध रही है|



    आधुनिक विज्ञानवादियों को अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों पर इतना बड़ा विश्वास होता है कि प्रकृति और जीवन के विषय में वे ही बहुत कुछ जानते हैं और वे ही बहुत कुछ बना या बिगाड़ सकते हैं और जो वैज्ञानिक नहीं कर सकते हैं वो कोई दूसरा आम व्यक्ति तो बिलकुल नहीं कर सकता है आम व्यक्ति का मतलब जिसने आधुनिक विज्ञान नहीं पढ़ा है जबकि किसी अन्य विज्ञान विधा का विद्वान् होने के कारण  वह भी उस रहस्य को सुलझा सकता है किंतु आधुनिक वैज्ञानिकों का मानना है कि विज्ञान केवल वही है जो उन्हें पढ़ाया लिखाया गया है उसके अतिरिक्त किसी अन्य अनुसंधान प्रक्रिया को विज्ञान माना ही नहीं जा सकता |इस प्रकार से वैज्ञानिक अनुसंधान की संपूर्ण प्रक्रिया कुछ लोगों  के हाथों की कठपुतली बनकर रह गई है वे अपनी उस विज्ञान को जैसे चाहते हैं वैसे नचाते हैं |वैज्ञानिक अनुसंधान विस्तार में इस संकीर्ण भावना ने सबसे बड़ा नुक्सान किया है | 
    

 विज्ञान पर विश्वास   
  प्रकृति और जीवन में जो कुछ घटित हो रहा है उसे नियंत्रित करने वाली कोई नियामक शक्ति तो है सूर्य प्रतिदिन एक निश्चित समय पर उदित होता है और निश्चित समय पर अस्त होता है !जब से सृष्टि बनी तब से यही क्रम चला आ रहा है| सूर्य का निश्चित समय पर उगना और अस्त होने का मतलब है सूर्य समय के महत्त्व को समझता है और उसे  समय के संचार की जानकारी है | यदि सूर्य स्वयं समय के संचार को नहीं समझता है तो उसे जो शक्ति संचालित करती है वह समय के संचार की नियमावली का पालन करती है या फिर समय स्वयं ही सूर्य चंद्र आदि समस्त ग्रहों को अपने अनुसार संचालित करता है | इसलिए प्रकृति और जीवन में होने वाले सभी प्रकार के परिवर्तनों के लिए स्वयं समय ही कारण है |समय को सबकुछ मानने वाले ऐसे लोग समस्त घटनाओं एवं परिवर्तनों का कारण समय को ही मानने लगते हैं |  
    कुछ लोग ईश्वर को ही सबकुछ मानते हैं ईश्वर धर्माचरण को पसंद करता है इसलिए वे धर्माचरण का अनुपालन करते हैं | ईश्वर को मानने वाले लोग अपने सभी सुख और दुःख बढ़ने एवं घटने का कारण ईश्वर को ही मानते देखे जाते हैं |उन्हें ऐसा लगता है कि ईश्वर ही उन्हें सुख और दुःख दे सकता है प्रकृति में होने वाले  सभी प्रकार के परिवर्तनों घटनाओं का विधान स्वयं ईश्वर ही करता है |
      प्रकृति में या जीवन में जो कुछ भी घटित हो रहा है वह प्रकृति का सुनिश्चित विधान है ऐसा मानने वाले लोग सभी प्रकार के परिवर्तनों घटनाओं को प्रकृति का विधान मानकर चलते हैं | 
    समाज का एक वर्ग परिश्रम  को ही सबकुछ मानता है उसे लगता है कि मनुष्य परिश्रम पूर्वक सबकुछ बदल सकता है इस प्रकृति और जीवन में जितने प्रकार  परिवर्तन हुए हैं या हो रहे हैं या भविष्य में जब कभी भी होंगे उसका कारण स्वयं मनुष्य ही है |
     ऐसे कर्मवादी लोगों को अपने कर्म पर इतना बड़ा भरोसा होता है कि उनके अपने जीवन में जो कुछ घटित हो रहा होता है उसे तो वे कर्मों का परिणाम मानते ही हैं इसके साथ ही प्रकृति में भी जो कुछ हो रहा होता है उसके लिए भी वे मनुष्यों के कर्मों को ही जिम्मेदार मानते देखे जाते हैं | 
     कर्मवादियों का कहना होता है कि भूकंप,वर्षा बाढ़,आँधी तूफ़ान,बज्रपात जैसी बार बार घटित होने वाली हिंसक प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण जलवायु परिवर्तन है |अधिकाँश प्राकृतिक आपदाएँ इसी जलवायु परिवर्तन के कारण ही घटित होती हैं इसी जलवायु परिवर्तन के कारण नए नए रोग होते हैं यहाँ तक कि कोरोना जैसी महामारियाँ भी इसी जलवायु परिवर्तन के कारण ही घटित होती हैं |
    प्रश्न उठता है कि जलवायु परिवर्तन क्यों होता है इसके लिए ग्लोबलवार्मिंग अर्थात तापमान बढ़ने को जिम्मेदार माना जाता है | तापमान बढ़ने का कारण बढ़ते  हुए वायुप्रदूषण को माना जाता है और वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण उद्योंगों एवं वाहनों आदि से निकलने वाले बिषैले  धुएँ को बताया जा रहा है | इसके अतिरिक्त  पेड़ पौधों का काटा जाना भी एक कारण बताया जाता है|ये सब काम करने वाला एक मात्र मनुष्य है | 
    ऐसी  परिस्थिति में यदि देखा जाए तो प्रकृति में या जीवन में जितनी भी आपदाएँ या रोग महारोग आदि घटित होते  हैं उनका कारण मनुष्य के अपने द्वारा किए गए कर्मों को ही माना जाता है | इस संपूर्ण श्रंखला को ध्यान से देखने में लगता है कि प्रकृति से लेकर जीवन तक की सभी समस्याओं की जड़ में मनुष्यों का अपना आचरण ही है ऐसे लोगों का मानना है कि मनुष्य के किए बिना कुछ नहीं होता है | इसलिए लिए इस संसार में अच्छा बुरा जो कुछ जितना भी होता है उस सबका कारण मनुष्य स्वयं है |ऐसे कर्मवादी लोग अपने चिंतन को विज्ञान सम्मत मानने लगते हैं | ऐसे लोग केवल विज्ञान को ही सबकुछ मानते देखे जाते हैं | 
   आधुनिक दुनियाँ में विज्ञान का बहुत बड़ा महत्त्व है इसी विज्ञान पर विश्वास के कारण ही तो जब भारतीय लोग भी अपने भारत के अत्यंत प्राचीन ज्ञान विज्ञान से दूर होते जा रहे हैं | लोग अब संपूर्ण रूप आधुनिक विज्ञान के बताए हुए बातों बिचारों को मानने के लिए विवश हैं |
    कुलमिलाकर वर्तमान समय में प्रकृति से लेकर जीवन तक की सारी वागडोर आधुनिक विज्ञान के हाथ में ही दिखने लगी है !|आधुनिकविज्ञानवादी लोग  जिसे स्वीकारें सरकारें भी उसे ही मानती हैं समाज भी वही स्वीकार कर लेता है|  विज्ञानवादी लोग  जिसे मनाकर देते हैं वही कार्य रोक दिया जाता है | चिकित्सा वैज्ञानिकों की सलाह पर ही तो सरकारें लॉकडाउन कर कर दिया गया था | 
   कुल मिलाकर विज्ञान की ओर से जिस जिस प्रकार की सावधानियाँ बरतने की सलाह दी जाती है समाज उसे ही सच मानकर उसका  पालन करने में लग जाता है ,यहाँ तक कि समाज अपने अधिकाँश सुख दुःख घटने बढ़ने का श्रेय भी विज्ञान को ही देता है | संपूर्ण रूप से विज्ञान की शरण में ही हाथ जोड़े खड़े रहना मनुष्य अपनी मजबूरी समझता है |विज्ञान जो बताता है वो किया जाता है जैसे बताता है वैसे रहा जाता है जो बताता है वो खाने का प्रयास किया जाता है |विज्ञान की सलाह पर ही तो मनुष्य 
     परालीजलाना  ,वाहनचलाना,पटाखेफोड़ना, निर्माणकार्य करना एवं  उद्योगों का संचालन आदि इसीलिए तो बंद कर दिया जाता है क्योंकि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए ऐसे ही कार्यों को जिम्मेदार माना जाता है |
 स्वास्थ्य बनने बिगड़ने का कारण भी लोग अपने आस पास ही खोज लिया करते हैं किसी रोगी के स्वस्थ होने का कारण अच्छी औषधि अच्छी चिकित्सा प्रक्रिया एवं अच्छे चिकित्सक आदि को मान लिया जाता है | इसी प्रकार से किसी रोगी के स्वस्थ न होने या चिकित्साकाल में ही मृत्यु हो जाने का कारण अच्छी औषधि अच्छी चिकित्सा प्रक्रिया एवं अच्छे चिकित्सक आदि समय से न मिल पाने को कारण मान लिया जाता है |कुल मिलाकर कोई भी मनुष्य किसी रोगी के स्वस्थ होने या न होने की दोनों परिस्थितियों में केवल विज्ञान की शरण में ही शृद्धापूर्वक समर्पित  रहता है |
     ऐसी परिस्थिति में संपूर्ण विश्व में फैली कोरोना जैसी महामारी से डरा सहमा वही विज्ञानभक्त समाज आज विज्ञान की ओर टकटकी लगाए बैठा है उसे लगता है कि यदि विज्ञान चाहे तो हमें इस महामारी से मुक्ति दिला सकता है विज्ञान इस मुसीबत में हमारी मदद करके कोरोना जैसी महामारी के संकट से हमारी रक्षा करे हमें कोई उपचार बताए किंतु विज्ञान अभी तक कोरोना को नियंत्रित करने में सक्षम तो नहीं ही हो  पाया है इस बात का पता लगाने में भी सक्षम नहीं हो पाया है कि यह महामारी कब समाप्त होगी | 
   
     घटनाएँ घटित होने न होने के कारण की खोज !

    भूकंप, महामारियाँ ,बाढ़ ,बज्रपात,आँधी तूफान आदि जो भी घटनाएँ घटित होती हैं और उनमें जो  प्रभावित
 होते हैं उनमें एक बात देखी जाती है !प्रायः कोई घटना संपूर्ण विश्व में एक साथ नहीं घटित होती है !दूसरी बात जिस क्षेत्र में घटित होती है वहाँ के सभी लोग ऐसी घटनाओं से प्रभावित तो होते हैं किंतु एक जैसे पीड़ित नहीं होते हैं | आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से इस विषय में क्या कुछ कहा जा सकता है मुझे नहीं पता है किंतु भारत का प्राचीन विज्ञान इस विषय में भी अपना स्पष्ट मत रखता है |  
  इसमें बचाव भी केवल उसी का हो सकता है जिसका अपना व्यक्तिगत समय सही होता है | किसी का यदि अपना समय सही नहीं चल रहा है तो उसका नुक्सान तो होना ही होता है इसलिए होता है किंतु ऐसे लोगों के नुक्सान के लिए कुछ घटनाएँ मात्र बहाना बन जाती हैं इसमें सिद्धांत की परिधि में सभी प्रकार की दुर्घटनाएँ आ जाती हैं भले वे मनुष्यकृत ही क्यों न हों |भूकंपों, महामारियों ,बाढ़ ,बज्रपात,आँधी तूफानों में मरने वाले लोग हों या वाहनदुर्घटना,विमानदुर्घटना आदि सभी प्रकार की दुर्घटनाएँ हों या मनुष्यकृत दुर्घटनाएँ इनसे प्रभावित तो बहुत लोग होते हैं किंतु मरते केवल वही हैं जिनका अपनी मृत्यु का समय आ चुका होता है |दुर्घटनाएँ तो केवल बहाना बन जाती हैं | 
    कोई एक्सीडेंट होता है या कोई बस कार आदि किसी गहरी खाई में गिर जाती है ऐसे ही और भी अनेकों प्रकार की दुर्घटनाएँ घटित होती हैं | इसी प्रकार से भूकंप,वर्षा बाढ़,आँधी तूफ़ान,बज्रपात जैसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं या किसी क्षेत्र विशेष में महामारी फैलती है | ऐसी सभी प्रकार की घटनाओं के घटित  होते समय में ही बहुत लोगों की आयु समाप्त हो रही होती है वे अपने पूर्व निर्धारित नियमानुसार अपने समय पर ही मर जाते हैं उन मनुष्यों की मृत्यु का कारण आस पास कहीं कोई दिखाई नहीं पड़ता है मृत्यु के समय को देखा नहीं जा सकता है इसलिए जब जिसकी मृत्यु होती है उस समय प्रकृति में या जीवन में जिस प्रकार की घटनाएँ घटित हो रही होती हैं उन्हें ही मृत्यु का कारण मान लिया जाता है क्योंकि यह  निश्चित मानकर चला जाता है कि मनुष्य के मरने का कोई न कोई कारण अवश्य होता है | कई बार मृत्यु का समय समीप आ जाने पर लोग आत्महत्या करते देखे जाते हैं |कई बार बिना किसी कारण के सहज स्वस्थ एवं प्रसन्न अवस्था में भी कुछ लोगों की मृत्यु होते देखी  जाती है | लोग हँसते हँसते अचानक मौन होते देखे जाते हैं बैठे बैठे प्राण निकल जाते हैं | ऐसी मृत्यु में तो बहाना बनने के लिए भी कोई कारण नहीं होता है |
    बहुत लोग भूख के कारण मर जाते हैं तो दूसरी ओर जिनके यहाँ अच्छी से अच्छी भोजन व्यवस्था है अमर तो वे भी नहीं हैं मरना उन्हें भी पड़ता है | कुछ लोग चिकित्सा के अभाव में मरते देखे जाते हैं तो कुछ लोग सघन चिकित्सा कक्ष में अत्यंत उन्नत चिकित्सकीय संसाधनों का लाभ लेते हुए भी मरते देखे जाते हैं | कुछ लोग सर्प के काटने से बच जाते हैं किंतु मच्छर के काटने से मर जाते हैं |
      कई बार मृत्यु के कुछ पहले उसी व्यक्ति के साथ कोई ऐसी दुर्घटना घटित होती है जिसमें वह मर सकता था किंतु उसे खरोंच भी नहीं आती है उसी के कुछ क्षण बाद वही व्यक्ति किसी छोटे घटना के घटित होने से या बैठे बैठे ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है |
  कुल मिलाकर  मृत्यु घटनाओं के अधीन नहीं अपितु समय के आधीन होती है जिस प्रकार से सूर्य समय से उदित अपने अपने समय से ही अस्त होता है | ऐसी परिस्थिति में बादल आकर कुछ समय के लिए सूर्य को धक् तो सकते हैं किंतु सूर्यास्त अपने समय पर ही होता है | इसी प्रकार से लोग मरते तो अपनी मृत्यु का समय आ जाने पर ही हैं | जिनकी मृत्यु का समय समीप नहीं आया होता है वे एक से एक बड़ी दुर्घटना का शिकार होने के बाद भी सुरक्षित बचकर निकल आते हैं कई बार तो खरोंच भी नहीं लगती है | 
    कोरोना जैसी महामारी से भयभीत होकर बहुत लोग मजबूरी बश अपने अपने गाँवों की ओर पैदल ही निकल पड़े उनमें से कुछ लोग ऐसे भी थे जो रास्ते में किसी दुर्घटना के शिकार हो गए और उनकी मृत्यु हो गई | ऐसे लोग महानगरों में ही रहते और कोरोना होता तो मानलिया जाता कोरोना से मर गए  या भूख की स्थिति में मरते तो कारण भूख बन जाती !पैदल चल रहे थे या ट्रेन की पटरी पर विश्राम कर रहे थे या किसी वाहन में बैठकर चले जा रहे थे | ऐसी सभी परिस्थितियों में कुछ लोगों की मृत्यु होते देखी गई | 
     कोरोना काल में जिनकी मृत्यु मार्ग दुर्घटना में होनी थी महानगरों में लॉकडाउन चल रहा था तो यहाँ वाहन  चल नहीं रहे थे इसलिए जहाँ चल रहे थे वहाँ वो लोग उस समय पहुँच गए उनकी मृत्यु का जो समय और स्थान निश्चित था यहीं उनकी मृत्यु उन्हें खींच ले गई | 
     इसलिए मृत्यु का समय ,स्थान  और बहाना निश्चित होता ही है जो प्रकृति के इस रहस्य को नहीं समझते हैं उन्हें भ्रम होता है कि किसी की मृत्यु प्राकृतिक आपदाओं से या महामारी से हुई है या मनुष्यकृत घटना से हुई है किंतु मृत्यु किसी घटना के आधीन न होकर अपितु समय के आधीन है | मृत्यु यदि घटनाओं के आधीन होती तो जिस क्षेत्र में भूकंपों, बाढ़ ,बज्रपात,आँधी तूफानों महामारियों का प्रकोप होता वो किसी पर कम और किसी पर अधिक तो नहीं होता अपितु उससे सभी समान रूप से सभी प्रभावित होते तो सभी को उस घटना से समान रूप से पीड़ित होना चाहिए किंतु ऐसा होते तो नहीं देखा जाता है | यही स्थिति महामारियों में होती है जिस क्षेत्र में महामारियाँ फैलती हैं वहाँ रहने वाले सभी लोग तो उन महामारियों से एक जैसे पीड़ित नहीं होते हैं कुछ तो बिल्कुल स्वस्थ बने रहते हैं कुछ केवल अस्वस्थ होते हैं और कुछ अस्वस्थ होने  के बाद मृत्यु को भी प्राप्त होते हैं | 
      विशेष बात यह है कि भूकंपों, बाढ़ ,बज्रपात,आँधी तूफानों महामारियों का प्रकोप जब बिलकुल नहीं होता है तब भी तो क्रम यही रहता है कुछ लोग बिल्कुल स्वस्थ बने रहते हैं तो कुछ केवल अस्वस्थ होते हैं और कुछ अस्वस्थ होने  के बाद मृत्यु को भी प्राप्त होते हैं |इसीलिए सभी जगहों पर भीड़ हमेंशा बनी रहती है यहाँ तक कि अस्पतालों और श्मशानों को तब भी कभी खाली नहीं देखा जाता है जब महामारियाँ नहीं होती हैं तब भी तो ऐसा ही होता है |ऐसा हमेंशा से होता चला आया है और हमेंशा तक यही क्रम चलता भी रहेगा | पीड़ितों या मृतकों की संख्या भी एक जैसी कभी नहीं रहती है कुछ कमी या बढ़ोत्तरी तो हमेंशा से ही चलती रहती है यही तो प्रकृति क्रम है | 
     कुलमिलाकर प्रकृति के नियमानुसार प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में किस समय से किस समय तक अर्थात  कितने समय तक स्वस्थ रहेगा ,ऐसी ही किस उम्र में कितने समय तक अस्वस्थ रहेगा और किस उम्र में मृत्यु को प्राप्त होगा | यह सुनिश्चित है | यदि ऐसा न होता तो अस्वस्थ होने वाला प्रत्येक वह व्यक्ति अस्वस्थ ही बना रहता या मृत्यु को प्राप्त हो जाता जिसके पास चिकित्सा की सुविधाएँ न होतीं | इसी प्रकार से चिकित्सकीय संसाधनों से संपन्न प्रत्येक व्यक्ति अस्वस्थ ही नहीं होता जो होता भी वह चिकित्सा से स्वस्थ हो जाता | ऐसी परिस्थिति में चिकित्सकीय  संसाधनों से संपन्न किसी व्यक्ति को मरना ही नहीं पड़ता |,,किन्तु ऐसा तो होते नहीं देखा जाता हैं गाँवों जंगलों महानगरों के गरीबों रईसों के साथ समान रूप से सभी घटनाएँ घटित होते  देखी जाती हैं | जो जीवन में संसाधनों से अधिक समय की प्रधानता को सिद्ध करती हैं |
    समय की प्रधानता को यदि न स्वीकार किया जाए और यह मान ही लिया जाए कि लोगों का नुक्सान होने का कारण भूकंप, बाढ़ ,बज्रपात,आँधी तूफान महामारियाँ आदि घटनाएँ ही हैं | इन घटनाओं में यदि इतनी क्षमता होती तो कुछ लोगों का ही नुक्सान नहीं करतीं अपितु उन घटनाओं से प्रभावित हर व्यक्ति के साथ एक जैसी घटनाएँ घटित होनी चाहिए थीं किंतु व्यवहार में ऐसा होते तो नहीं देखा जाता है|
    यही कारण है कि केवल प्राकृतिक घटनाएँ ही नहीं अपितु उनमें भी प्रायः देखा जाता है कि उस घटना से प्रभावित सभी लोगों का एक जैसा नुक्सान नहीं होता है किंसी को केवल चोट लगती है तो किसी किसी की तो मृत्यु तक होते देखी जाती है जबकि उसी समय उसी  स्थान पर उसी प्रकार से उपस्थित कुछ लोगों को तो खरोंच तक नहीं लगती है | 
   हमारे कहने का अभिप्राय मात्र इतना ही है भूकंप,वर्षा बाढ़,आँधी तूफ़ान,बज्रपात जैसी प्राकृतिक घटनाएँघटित होने में तो मनुष्य की कोई भूमिका हो ही नहीं सकती क्योंकि ये तो प्राकृतिक दुर्घटनाएँ हैं इसलिए उनमें मनुष्य का कोई बश नहीं होता ये बात तो समझ में आती है किंतु महत्वपूर्ण बात तो यह है कि जो घटनाएँ मनुष्य के अपनी जीवन स्वास्थ्य या संबंधों में घटित होते देखी  जाती हैं उनमें भी अधिकाँश घटनाएँ ऐसी होती हैं जो मनुष्य के जीवन में घटित अवश्य होती हैं किंतु उनमें मनुष्यों की कोई भूमिका ही नहीं होती है | 
   प्राकृतिक आपदाओं की तरह ही कोरोना जैसी महामारियाँ भी जब जब जहाँ कहीं घटित हुई हैं उनके पीछे किसी का कुछ करना या न करना कारण नहीं होता है अपितु ये  घटनाएँ मनुष्यों के द्वारा किए जाने वाले किसी प्रयास के बिना ही घटित होते देखी जाती हैं |
 प्रकृति और मनुष्य !
    जीवन में बहुत ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं जो मनुष्य नहीं चाहता कि उसके जीवन में घटित हों उनसे बचने के लिए बहुत प्रयास भी करता है इसके बाद भी तो वे घटनाएँ उसी के अपने शरीर स्वास्थ्य एवं संबंधों के बनने बिगड़ने के रूप में घटित होते  देखी जाती हैं मनुष्य चाहकर भी उन्हें रोक नहीं पाता है ! किसी भी दुर्घटना के समय प्रत्येक व्यक्ति अपने बचाव के लिए पूर्ण प्रयास करता है फिर भी उसके साथ अप्रिय घटनाएँ भी घटित होते देखी जाती हैं कोई दुर्घटना घटित होती है या कहीं आग लगती है तो बचने का प्रयास तो उसमें फँसे सभी लोग कर ही रहे होते हैं यदि प्रयास से बचाव होना होता तो उन सभी का बचाव हो जाता है जो जो प्रयास कर रहे थे किंतु सबका बचाव तो नहीं हो पाता है | जिनका होता है उन्हें लगता है कि वे अपने प्रयासों से बचे हैं तो जो नहीं बचे या मृत्यु को प्राप्त हो गए उनके लिए यह तो नहीं कहा जा सकता है कि उन्होंने अपने बचाव के लिए प्रयास ही नहीं किया होगा या अपने बचाव के लिए प्रयास में लापरवाही की होगी या वे बचना नहीं चाहते थे |सच्चाई ये है कि बचना तो वे भी चाहते थे इसीलिए बचने के लिए प्रयास तो उन्होंने ने भी किया था किंतु जिनके मृत्यु का समय समीप आ चुका था इसलिए उनके द्वारा किए गए बचने के प्रयास सफल नहीं हो सके | 
      ऐसी परिस्थिति में यह सच सामने आ ही जाता है कि किसी मनुष्य का अपना समय जब खराब आ जाता है तब उसे रोगी होना होता है उसके चोट लगनी होती है उसे तनाव होना होता है या उसका कोई नुक्सान होना होता है या फिर उसके कुछ अपनों के साथ संबंध बिगड़ने होते हैं इसके अतिरिक्त और भी बहुत कुछ ऐसा है जो किसी के जीवन में होना ही होता है इसलिए वह होता ही है किंतु इसी बीच संयोगवश कुछ ऐसी प्राकृतिक या सामाजिक घटनाएँ भी उसी समय घटित होनी होती हैं |
     ऐसी परिस्थिति में किसी के व्यक्तिगत जीवन में जो घटनाएँ घटित होनी होती हैं वो होंगी ही उन्हें रोका नहीं जा सकता !उसी प्रकार से प्रकृति में भी कुछ घटनाएँ घटित होनी होती हैं उन्हें भी घटित होना ही होता है इसलिए वे दोनों प्रकार की घटनाएँ जीवन और प्रकृति में घटित होंगी ही किंतु आपस में उनका एक दूसरे से कोई संबंध दूर दूर तक नहीं होता किंतु उन दोनों के घटित होने का समय और स्थान एक ही होता है इसलिए वे दोनों घटनाएँ संयोगवश एक ही समय पर घटित हो जाती हैं इसलिए उन दोनों घटनाओं का एक दूसरे के साथ संबंध न होते हुए भी अपनी अपनी समझ के अनुसार कोई न कोई संबंध जोड़ लिया जाता है | 
      कहीं तूफ़ान आया उसमें कुछ पेड़ गिरे किसी पेड़ के नीचे कोई व्यक्ति दब गया और उसकी मृत्यु हो गई या कोई अन्य दुर्घटना घटी और वहीँ उसी समय किसी की मृत्यु हो गई तो ऐसा भ्रम होता है कि उसकी मृत्यु उस दुर्घटना से हुई है जबकि वे दोनों घटनाएँ बिलकुल अलग अलग होने के बाद भी एक समय और एक स्थान पर घटित होने के कारण एक दूसरे से संबंधित लगने लगती हैं | 
     इसीप्रकार से बुरे समय के प्रभाव से कोरोना जैसी महामारियाँ फैलती हैं जिससे पृथ्वी का बहुत बड़ा वर्ग प्रभावित होता है ऐसी महामारियों का प्रभाव कई देशों तक फैल जाता है | ऐसी घटनाओं में एक बात अवश्य याद रखी जानी चाहिए कि बुरा समय आने पर वो महामारियाँ नहीं फैलाता है अपितु उसके प्रभाव से वातावरण प्रदूषित होने लगता है जल में भी इस प्रकार का प्रदूषण बढ़ने लगता है कि वह जीवन के लिए अहितकर हो जाता है | वायु और जल में बिषैलापन आ जाने से उसका उसी प्रकार का प्रभाव फलफूल शाक बनस्पतियों आदि पर पड़ने लगता है | जीवन पर इनका प्रभाव अहितकर होने लगता है |मनुष्यों को जिस वायु में साँस लेना है जो जल पीना है जो फलफूल शाक बनस्पतियाँ आदि खाद्य पदार्थों के रूप में प्रयोग करनी हैं | इसी वातावरण में रहने तथा इन्हीं पदार्थों के सेवन का बिषैला प्रभाव शरीर और स्वास्थ्य पर पड़ना स्वाभाविक ही है |जिससे उतने समय तक के लिए सभी प्राणियों की जीवनीय शक्ति कमजोर हो जाती है |वह समय बीतने के बाद पहले प्राकृतिक वातावरण में सुधार होता है वायु जल आदि प्रदूषण मुक्त होकर स्वच्छ हो जाते हैं उससे फलफूल शाक बनस्पतियाँ आदि खाद्य पदार्थ दोष रहित होकर जीवनीय शक्ति को सबल करने लगते हैं जिससे सभी लोग पुनः पूर्ववत हो जाते हैं | 
    इसी प्रक्रिया में यदि कोई पहले से बिलकुल स्वस्थ होता है तो वह आगे भी स्वस्थ बना रहता है किंतु यदि किसी को पहले से कोई हृदयरोग  शुगर ब्लडप्रेशर या साँस लेने संबंधित कोई बड़ी बीमारी पहले से चली आ रही होती है तो ऐसे लोग जीवनीय शक्ति के कमजोर हो जाने की परिस्थिति को सहने लायक नहीं होते और गंभीर बीमारियों का शिकार होने लग जाते हैं उनमें से कई तो मृत्यु तक को प्राप्त होते देखे जाते हैं |
     ऐसी परिस्थिति में यदि ऐसे महारोग स्वयं में मृत्यु का कारण होते तब तो किसी को कोई रोग होता या नहीं होता फिर भी महारोग के प्रभाव से मृत्यु तो उनकी भी हो सकती थी किंतु ऐसे समय में भी पहले से किसी गंभीर रोग से पीड़ित लोगों की ही मृत्यु होते देखी जाती  है ऐसा कोरोना काल  में भी हुआ बताया  जा रहा है | कहा जाता है कि इस महामारी के समय में भी मृत्यु को प्राप्त हुए 85 प्रतिशत वे लोग ही थे जो महामारी प्रारंभ होने के काफी पहले से ही हृदयरोग  शुगर ब्लडप्रेशर या साँस लेने संबंधित  किसी न किसी बड़ी बीमारी से पीड़ित रहते आ रहे थे | 
     ऐसी परिस्थिति में किसी के  शरीर में रोग होने का समय या किसी की मृत्यु होने का समय तो कभी भी आ सकता था जब महामारी नहीं होती है तब भी तो लोग मरते देखे जाते हैं | इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी के रोगी होने या किसी की मृत्यु होने के लिए किसी महामारी की आवश्यकता नहीं होती है किंतु बुरे समय के प्रभाव से जब प्रकृति प्रदूषित होती है उस समय ही यदि कोई रोगी हो जाता है या किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसका कारण उस महामारी को मान लिया जाता है जबकि ये दोनों बिलकुल अलग अलग घटनाएँ हैं | महामारियों के समय में भी मरते केवल वही लोग हैं जिनकी मृत्यु का समय होता है और रोगी केवल वही होते हैं जिनके रोगी होने का समय होता है | इसी लिए ऐसे समय में भी न सभी लोग रोगी होते हैं और न ही सभी की मृत्यु होते देखी  जाती है | 
      महामारियों के समय में लॉकडाउन के कारण अन्य काम तो रोके जा सकते हैं किंतु मृत स्त्री पुरुषों के शवों की अंतक्रिया तो करनी ही होती है वो तो रोकी नहीं ही जा सकती है किंतु कोरोना काल में यदि अधिक लोगों की मृत्यु हुई होती तब तो श्मशानों पर भीड़ लग जाती किंतु ऐसा लगभग कहीं नहीं देखा गया | यहाँ तक कि काशी के मणिकर्णिकाघाट पर जहाँ की चिताएँ कभी बुझती ही नहीं रही हैं किंतु कोरोना काल में वहाँ की वह अत्यंत प्राचीन परंपरा भी टूटते देखी गई और वहाँ कई कई दिनों तक कोई शवदाह नहीं हुआ | ऐसा पहली बार हुआ है | 
     इससे यह निश्चित हो जाता है कि सामान्य दिनों की अपेक्षा महामारी काल में भी किसी ऐसे व्यक्ति की मृत्यु होते नहीं देखी जाती है जिसका अपना मृत्यु का समय आया न हो |महामारी और मृत्यु का समय एक साथ आ जाने से ऐसा भ्रम होने लगता है कि अमुक व्यक्ति की मृत्यु का कारण महामारी है |किसी की मृत्यु और महामारी दोनों समय से संबंधित घटनाएँ हैं | ये कभी भी अपनी सीमा का अतिक्रमण नहीं कर सकती हैं | 
      इस प्रकार का भ्रम संसार के कुछ अन्य स्थानों पर भी दिखाई पड़ता है प्रातःकाल का समय होने पर सूर्य को उगना होता है और कमल को खिलना होता है ये दोनों घटनाएँ एक दूसरे से दूर दूर तक संबंधित नहीं हैं इसके बाद भी एक साथ घटित होने के कारण भ्रम होने लगता है कि कमल खिलने का कारण सूर्योदय है | पुराणों में वर्णन मिलता है कि श्रीकृष्ण का जन्म अर्धरात्रि में हुआ था उस समय सूर्योदय तो नहीं हुआ था किंतु कमल के पुष्प खिले हुए देखे गए थे |
      ऐसा ही भ्रम समुद्र में उठने वाले ज्वार भाँटा और चंद्रमा के बीच जोड़ लिया गया है जबकि एक समय आने पर चंद्रमा का प्रभाव बढ़ जाता है उसी समय के प्रभाव से समुद्र हिलोरें मारने लगता है जबकि इस घटना के संदर्भ में समुद्र में उठने वाले ज्वार भाँटा का चंद्रमा के साथ कोई संबंध नहीं होता है |




    
 विज्ञान और कोरोना
      आज 16 मई है अब तक लाखों लोग इस महामारी की चपेट में आकर मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं !संक्रमित बहुत बड़ा वर्ग अभी भी अस्पतालों में जीवन और मृत्यु से जूझ रहा है | इस महामारी को प्रारंभ हुए आज चार महीने पूरे हो चुके हैं पाँचवें का भी एक सप्ताह बीत चुका है निरंकुश हाथी की तरह कोरोना संपूर्ण विश्व को अपनी चपेट में लेता चला जा रहा है |  विज्ञान उस पर किसी भी प्रकार से अंकुश लगाने में अपनी क्षमता सिद्ध नहीं कर सका है |कोरोना जैसी महामारी को समझने में यदि विज्ञान थोड़ा भी सक्षम होता तो इसे  वुहान में ही कैद करके रखा जा सकता था या फिर जिन देशों में  पहला रोगी जब मिला था वहाँ उसी समय सतर्कता बरत कर इस महामारी को उसी क्षेत्र तक सीमित रखा जा सकता था किंतु ऐसा होते तो नहीं देखा गया है | यहाँ तक कि कोरोना प्रारंभ कैसे हुआ इसपर अभी तक कोई निश्चित मत नहीं खोजा जा सका है किसी अखवार में प्रकाशित हुआ था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से इसे प्राकृतिक रोग की संज्ञा दी गई है जबकि कुछ देश इसे एक देश विशेष की लैब में मनुष्य निर्मित बताते हैं | 
    दुनियाँ के वैज्ञानिकों का एक वर्ग निजी चर्चाओं में इस बात को स्वीकार भी कर रहा है कि कोरोना के सामने विज्ञान नाकाम हो गया है | विश्व में बहुत ऐसे भी चिकित्सा वैज्ञानिक हैं जिन्हें महामारी विशेषज्ञ माना जाता है उन्हें लगता है कि वे महामारी के स्रोतों एवं उसके विस्तार के कारणों को भली भाँति समझते हैं किंतु वह समय और समाज को समझने में सक्षम नहीं हैं | इसीलिए इस विषय में विज्ञान असफल हुआ है | 
   कुछ चिकित्सा वैज्ञानिकों का  मानना है कि हमने चिकित्सा तंत्र पर तो पूरा ध्यान दिया किंतु समाजतंत्र और समयतंत्र को नहीं समझने में चूक हुई है | कोरोना महामारी के रूप में जिसका सामना आज सारे विश्व को करना पड़ रहा है |मई का महीना आधा बीत गया लगभग 46 लाख लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं और लगभग तीन लाख से अधिक लोग इस महामारी से मारे जा चुके हैं|संक्रमण अभी भी बढ़ता जा रहा है संक्रमितों 
और मृतकों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है |
     कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा अब यह कहा जा रहा है कि हमें अपने समाज और जीवन से संबंधित सभी निर्णय केवल विज्ञान पर नहीं छोड़ देने चाहिए क्योंकि विज्ञान के द्वारा कुछ द्रव्यों गुणों स्वभावों को समझा जा सकता है उनके आपसी संबंधों को समझा जा सकता है उससे इस बात को समझने में मदद मिल सकती है | 
    


 प्रकृति में या जीवन में क्यों घटित होती हैं घटनाएँ !
     
      प्रकृति में या जीवन में जितनी भी घटनाएँ घटित होती हैं उन सभी प्रकार की घटनाओं के घटित होने का कोई न कोई कारण होता है| कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि वह कारण मनुष्य का अपना किया धरा ही होता है उसके प्रभाव से ही कुछ होता है |इसी भावना को आगे बढ़ाते हुए कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि 

 भारत के प्राचीन वेद वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रकृति से लेकर जीवन तक कुछ घटित होने के लिए किसी का कुछ करना ही आवश्यक नहीं होता है अपितु जो होना होता है वो बिना कुछ किए भी होते देखा जाता है !
    भूकंप,वर्षा बाढ़,आँधी तूफ़ान,बज्रपात जैसी प्राकृतिक घटनाएँ स्वतः घटित होती हैं इनके घटित होने के लिए मनुष्यों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि मनुष्यकृत प्रयासों से ऐसी घटनाओं को उत्पन्न नहीं किया जा सकता है उन्हें घटाया बढ़ाया या रोका नहीं जा सकता है|कुलमिलाकर घटनाएँ जैसी घटित होनी हैं वे होंगी ही मनुष्य अपने बचाव के लिए प्रयास कर सकता है जिससे नुक्सान की मात्रा को कुछ परिस्थितियों में घटाया जा सकता है किंतु प्रयास से हमेंशा बचाव हो ही जाए ऐसा संभव नहीं होता |

    
    

वैज्ञानिक अनुसंधानों को विशेष श्रेणी में रखा जाए 
    सरकारों के द्वारा जनता के लिए कराए जाने वाले विकास कार्यों में अक्सर जनता को सम्मिलित किए बिना ही योजना बना ली जाती है ठेका दे दिया जाता है काम हो जाने के बाद भुगतान कर दिया जाता है | 
    ऐसी परिस्थिति में जिसके लिए काम किया जाता है उस काम की गुणवत्ता के परीक्षण के लिए उससे प्रभावित होने वाली उस क्षेत्र की जनता का बिचार जानना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है | सरकारी कार्यपद्धति में अक्सर जनता के बिचारों को सम्मिलित नहीं किया जाता है जिसके दुष्परिणाम स्वरूप उस कार्य की गुणवत्ता अत्यंत कमजोर होती है | 
    ऐसी परिस्थिति में जनता यदि अपने बिचार देना भी चाहे तो सरकार तक बात पहुँचाने का उसके पास कोई सीधा माध्यम नहीं होता है और उस कार्य को करने कराने वाले अधिकारियों कर्मचारियों
 से यदि जनता अपनी बात कहना चाहे तो उनके लिए जनता की बात मानना तो दूर सुनना भी उचित नहीं समझते हैं |  
    उस विकासकार्य के बदले संबंधित लोगों को जो भुगतान सरकार करती हैउसमें यदि जनता की भी कोई भूमिका होती तो जनता की भी बात सुनना उनकी मजबूरी होती तब तो उसकी भी बात सुनी जाती किंतु उस कार्य के विषय में सरकार के पास उतनी जानकारियाँ नहीं होती हैं जितनी कि जनता के पास होती हैं और न ही सरकार में सम्मिलित लोगों का उस कार्य में व्यक्तिगत लाभ हानि ही जुड़ा होता है |इसलिए सरकार के लिए यह उतना महत्वपूर्ण भी नहीं होता है कि सरकार ऐसे कार्यों में व्यक्तिगत  तौर पर विशेष रूचि ले |जनता के पास उनका भुगतान रोकने या भुगतान करने की शक्तियों का अभाव होता है इसीलिए ऐसे प्रकरणों में संबंधित प्रशासन जनता की बात मानना आवश्यक नहीं समझता |संसार का नियम है कि प्रायः प्रत्येक व्यक्ति उसी की बात को महत्त्व देता है जो उसे लाभ या हानि पहुँचा सकने में सक्षम होता है |
    इसीलिए सरकारी कार्यों में प्रायः जनता के प्रति जवाबदेही का अभाव देखा जाता है | उसका कारण उनमें सरकारें जनता को सम्मिलित नहीं करती हैं जबकि वे कार्य जनता के लिए किए जा  होते हैं उसकार्य की गुणवत्ता देखने परखने के लिए सरकारी माध्यम भी सरकारी ही होते हैं जिन्हें अपनी अपनी सुविधा के अनुसार प्रभावित कर लेना अक्सर आसान होता है जिस कारण सरकारी की ऐसी योजनाओं पर धन  तो पूरा खर्च हो रहा होता है किंतु कार्यों की गुणवत्ता में कमी आ जाती है जिसकी जानकारी उस जनता को होती है जो भुक्तभोगी होती है किंतु वो अपनी बात कहे किससे और उसकी सुनता कौन है |
    सरकारों की इस कार्य पद्धति का शिकार सेना को छोड़कर संपूर्ण सरकारीतंत्र है !सेना में थोड़ी भी सतर्कता घटी तो उसकी कीमत प्राण देकर चुकानी पड़ती है इसलिए वहाँ तो अधिकाँश कार्य संपूर्ण ईमानदारी से ही करने की परंपरा है | सेना के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में सतर्कता रहे न रहे संबंधित अधिकारियों कर्मचारियों के व्यक्तिगत हानि लाभ होने की संभावनाएँ बहुत कम रहती हैं इसीलिए जवाबदेही और जिम्मेदारियों का अभाव होता है |जिसका परिणाम समाज को भुगतना पड़ता है | 
    सरकारी तंत्र की लापरवाही के कारण ही सरकारी स्कूलों से अधिक प्राइवेट स्कूल विश्वसनीय माने जाते हैं ,सरकारी डॉक से अधिक कोरियर विश्वसनीय माने जाने लगे हैं | सरकारी अस्पतालों से प्राइवेट अस्पताल एवं सरकारी टेलीफोनों पर प्राइवेट मोबाइल कंपनियों ने दबदबा बना रखा है | पुलिस विभाग आदि में प्राइवेट का विकल्प होता तो उसमें भी प्राइवेट का ही बोलबाला होता ,जबकि प्राइवेट वालों की अपेक्षा सरकार अधिक धन खर्च करके अधिक शिक्षित लोगों की नियुक्तियाँ करती है किंतु उस कार्य की गुणवत्ता में उतनी अच्छाई नहीं होती जितनी प्राइवेट में उससे कम धन खर्च करके भी देखी जाती है |
    इसमें एक कारण तो यह होता है कि प्राइवेट क्षेत्र में जो धन खर्च किया जाता है वो उनका अपना होता है जो खर्च कर रहे होते हैं इसलिए उसमें प्रत्येक कदम सोच सँभल कर रखना होता है उसमें हानि लाभ उनका अपना हो रहा होता है जबकि सरकारी कार्यों में इस भावना का प्रायः अभाव होता है | ऐसी योजनाएँ समाज के लिए उतनी हितकारी नहीं हो पाती हैं जितनी वो हो सकती थीं | इसलिए जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप काम हो नहीं पाते हैं |
     इसलिए जनता को भी यदि इस प्रक्रिया में सम्मिलित कर  लिया जाए तो जनता  सरकार के उतने ही धन का अपने हित में अधिक से अधिक उपयोग कर  सकती है क्योंकि वह धन जनता का अपना होता है इसलिए वह उसे सरकारीपन से नहीं अपितु अपनेपन से खर्च करेगी |
      सरकार की छोटी से बड़ी तक संपूर्ण प्रक्रिया में जो भारी भरकम धनराशि  खर्च की जाती है वह  सरकारों के द्वारा जनता से टैक्स रूप में लिया गया धन होता है | यह जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई का अंश होता है जिसे जनता  घर गृहस्थी के आवश्यक कार्यों पर बहुत सोच समझकर खर्च करती है अपने प्रत्येक प्रयास पर किए गए खर्च पर पुनर्मंथन किया करती है कि हमने जहाँ जो पैसा खर्च किया है उसका उपयोग सही हुआ है क्या ?जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया उसकी पूर्ति हुई है क्या यदि हुआ तो अच्छा और यदि नहीं तो क्यों उसके कारणों पर बिचार पूर्वक सुधार करके पुनः प्रयास करती है जबकि सरकारी क्षेत्र में वही कार्य परिणाम की विशेष चिंता किए बिना एक प्रक्रिया के तहत चलाए जा रहे होते हैं | जिससे वे हमेंशा एक तरह से ही चला करते हैं |

  भूकंप आँधी तूफानों वर्षा बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों के क्षेत्र में भी यही स्थिति है आवश्यकता और आपूर्ति में बहुत बड़ा अंतर दिखाई पड़ता है |इस क्षेत्र में भी जनता से संबंधित  बिषयों में जनता को पता होना चाहिए कि हमारी किस प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए या समस्याओं के समाधान के लिए सरकार किस प्रकार के वैज्ञानिक अनुसंधानों को बढ़ावा दे रही है उससे किस प्रकार से हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति आसान हो सकती है अथवा हमें हमारी समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है | 
   कोरोना जैसी महामारी का शिकार संपूर्ण विश्व को आज यह लगने लगा है कि हमारी कमजोर वैज्ञानिक तैयारियों ने हमें कोरोना महामारी के जबड़े में जकड़ रखा है|मानव समाज पर इस महामारी के रूप में आई इतनी बड़ी आपदा से बचाव के लिए जनता को जब अपने उन वैज्ञानिक अनुसंधानों की सबसे अधिक आवश्यकता थी वे अनुसंधान आज जनता के किसी काम नहीं आ सके | 
   इस अनुसंधान प्रक्रिया को संचालित करने के लिए वह जनता आजीवन टैक्स रूप में सरकार को धन देती है उसी धन को सरकार ऐसी अनुसंधान प्रक्रिया को संचालित करने पर खर्च करती है किंतु कोरोना जैसी महामारी से निपटने की दृष्टि से वह विज्ञान बिलकुल लाचार सिद्ध हुआ है |

महामारी और विज्ञान ?
     कल्पना करके यदि देखा जाए तो लगता है कि महामारी के इस कठिन काल में यदि विज्ञान न होता या वैज्ञानिक अनुसंधान न हो रहे होते तो और किस किस प्रकार से कितना नुक्सान और हो सकता था जो विज्ञान की मदद से बचा लिया गया | 
     प्राचीन काल में महामारियों के आने से पहले ही उनके विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता था जिससे बचाव करने एवं औषधि निर्माण के लिए पर्याप्त समय मिल जाया करता था | 
      वर्तमान समय में इस विज्ञान के द्वारा क्या ऐसी किसी पद्धति का आविष्कार किया जा सका जिसके द्वारा करना जैसी महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सका हो | 
      इसी प्रकार से वेदविज्ञान में ऐसी औषधियों के निर्माण की व्यवस्था थी जिसके द्वारा महामारी जैसे कठिन महारोगों को नियंत्रित करने में सफलता पा ली जाती थी | 
       बीते चार महीनों में कोरोना जैसी महामारी पर किसी प्रकार से कोई अंकुश नहीं लगाया जा सका है चीन के वुहान में पैदा होकर यह महामारी आज संपूर्ण विश्व तक पहुँच चुकी है इसमें लाखों लोग संक्रमित होने के साथ साथ लाखों लोग मारे भी जा चुके हैं अभी तक ऐसी किसी औषधि का निर्माण नहीं किया जा सका है जिसकी इस महामारी में कोई भूमिका सिद्ध हो सकी हो | पहले भी ऐसा होता रहा है एड्स या डेंगू जैसे महारोगों की आज तक कोई वैक्सीन नहीं बनाई जा सकी है | 
     ऐसी समस्याओं का सामना समाज को सभी प्रकार की महामारियों के समय में करना पड़ता है महामारियाँ बीत जाने के बाद फिर बड़े बड़े दावे किए जाने लगते हैं | हमेंशा से ऐसा ही होता चला आ रहा है |  
      महामारियों में होने वाले रोगों के कारणों लक्षणों आदि को नहीं खोजा जा सका है !

   


  
              -: वैज्ञानिक अनुसंधानों की प्राथमिकताएँ :-

     विज्ञान के क्षेत्र में इतना अधिक भटकाव ठीक नहीं है कि अपने लक्ष्य से इतनी दूर निकल जाएँ जिससे हमें हमारा उद्देश्य ही याद न रहे और हम अपने भटकाव को विज्ञान बताकर समाज पर थोपना प्रारंभ कर दें |ऐसे अनुसंधानों की प्रक्रिया में केवल खाना पूर्ति ही हुआ करती है तरह  प्रयास हो रहे होते हैं किसी असफल कवि या लेखक की तरह अपनी कल्पनाओं के जाल में उलझते चले जा रहे होते हैं | कई बार मकड़ी  ऐसी ही प्रक्रिया के कारण अपने ही बुने जाल में फँसकर समाप्त हो जाती है |    
      जितना भी खर्च होता है सरकारों को समाज यह होनी चाहिए का उद्देश्य अपने शोध से संबंधित समाज की समस्याओं का समाधान खोजना होता है जीवन  की उलझनों को सुलझाना होता है कठिनाइयों  को कम करना होता है | मानसिक तनाव को घटाना एवं जीवन को सरल बनाते हुए उन्नति करने का मार्ग प्रशस्त करना होता है | ऐसी परिस्थिति  अपने सभी प्रकार के वैज्ञानिक अनुसंधानों को भी आवश्यकता और आपूर्ति की कसौटी पर कसा जाना आवश्यक होता है |यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो जादू टोना करके अपनी कलाओं के द्वारा समाज को भ्रमित करने वाले कार्यों और वैज्ञानिक अनुसंधानों में  क्या अंतर रह जाएगा | विज्ञान के क्षेत्र में भी यदि केवल कल्पनाओं को ही सच मान लिया जाए तब तो इसलोक से लेकर परलोक तक की उन बातों को भी सच माना जाना चाहिए जिन्हें आज कल्पना मानकर अंधविश्वास बता दिया जाता है |
       ऐसी परिस्थिति में विज्ञान का उद्देश्य कुछ निराधार कल्पनाएँ करना मात्र ही नहीं अपितु उन्हें उन घटनाओं पर सही घटित करना भी है जिन उद्देश्यों की आपूर्ति के लिए उस प्रकार के अनुसंधान प्रारम्भ किए गए होते हैं तभी वैज्ञानिक अनुसंधानों की सार्थकता भी है | उसके बिना उद्देश्यों की पूर्ति  नहीं है | यही कारण है कि प्राकृतिक आपदाएँ हों या महामारियाँ इनसे संबंधित जो और जितनी भी समाज की समस्याएँ हैं उन्हें  लक्ष्य बनाकर उनसे संबंधित जो अनुसंधान आज से सैकड़ों वर्ष पहले प्रारंभ किए गए थे किंतु सफलता के नाम पर उन विषयों में अभी तक ऐसी कोई प्राप्ति नहीं हो सकी है जिसे उन अनुसंधानों की उपलब्धि कहा जा सके | ऐसे अनुसंधान अपने उद्देश्य की पूर्ति में कितना सफल हो सके हैं इन बिषयों पर भी बिचार किया जाना चाहिए | 
                        समाज की आवश्यकता और आपूर्ति


    भूकंप : भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा की घटनाएँ आज के हजारों वर्ष पहले भी घटित हुआ करती थीं तब भी तब भी उसी प्रकार का विप्लव होता था जैसा कि वर्तमान समय में होता था |भूकंप जैसी घटनाओं को रोका तो जा ही नहीं सकता कि प्राचीन काल में इनके विषय में संभावित पूर्वानुमान लगा लिए जाते थे अथवा जिन अवसरों पर भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होने की अधिक संभावना रहती थी उन अवसरों को ऐसे त्योहारों के रूप में मनाया जाने लगा ताकि लोग अपने अपने घरों से बाहर निकलकर गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान करने चले जाऍं या  उतने समय को तीर्थों में भ्रमण और निवास करके बिता लें जिससे वह समय सकुशल ब्यतीत हो जाए |
       ऐसा कर लेने से भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा की घटनाएँ तो घटित होती थीं मकान भी टूट कर गिरते थे धरती फटने के दृश्य भी दिखाई देते थे किंतु उतनी बड़ी घटनाओं में उस समय उतने लोगों की मृत्यु होते नहीं देखी जाती थी जितनी अब हो जाती है | उसका मुख्यकारण यह है कि अब कोई ऐसे वैज्ञानिक तकनीक नहीं है जिसके द्वारा भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगा या जा सके | 
     ऐसी पारिस्थिति में भूकंपों के विषय में अनुसंधान का उद्देश्य भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान लगाना
 होता है जिससे ऐसी प्राकृतिक  आपदाओं के घटित होने पर भी जनता अपना बचाव कर सके | इसी उद्देश्य से जनता ने ऐसे अनुसंधानों की आवश्यकता व्यक्त की थी जिसकी आपूर्ति के लिए सरकारों ने टैक्स रूप में जनता से जो धन लिया उसे ऐसे अनुसंधानों पर खर्च किया जिससे भूकम्पों  विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके | जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से प्राप्त वह धन तब से लेकर आज तक ऐसे अनुसंधानों पर खर्च किया जाता है उसके बदले  जनता को जो मिला उससे जनता के 
 उद्देश्य पूर्ति से कोई लेना देना नहीं है | 








     विश्व के समस्त देश अपने अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए जो धन व्यय करते हैं वो उन्हें उनकी जनता के द्वारा टैक्स रूप में दिया जाता है ऐसा करने के पीछे उस देश के निवासियों की अपनी अपनी सरकारों से अपेक्षा रहती है कि हमारे द्वारा दिए जाने वाले धन का एक एक पैसा देश और समाज के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए खर्च किया जाना चाहिए उनकी बुनियादी समस्याओं के समाधान के लिए खर्च किया जाना चाहिए और बुनियादी समस्याओं को निश्चित करते समय गंभीरता पूर्वक बिचार किया जाना चाहिए कि समाज की आवश्यकताएँ तो बहुत सारी  हैं जबकि समस्त आवश्यकताओं की आपूर्ति एक साथ किया जाना संभव नहीं है | इसलिए उसमें भी प्राथमिकताएँ तय की जानी चाहिए उसी आधार पर आवश्यकता के अनुशार अनुसंधानों के लिए लक्ष्य क्रमशः निर्धारित किए जाने चाहिए | अनुसंधान केवल राजनीति और सरकारों के प्रति ही जवाबदेह न हों अपितु उस जनता के प्रति भी जवाब देह हों जो वैज्ञानिक अनुसंधानों से लेकर सरकारों के द्वारा संचालित समस्त कार्यक्रमों पर खर्च किए जाने वाले धन का वहन  करती है |      
    वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज को बहुत अपेक्षाएँ हैं वह अपनी सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान विज्ञान से चाहती है कोई  रोग महामारी या प्राकृतिक आपदा ही क्यों न हो वह अपने समस्त संकटों से मुक्ति दिलाने के लिए वैज्ञानिकों की ओर देखने लगती है | स्वास्थ्य समेत कई क्षेत्रों में वैज्ञानिक अनुसंधानों के परिणाम समाज के लिए हितकारी सिद्ध हुए हैं उसी से समाज का विश्वास उनकी ओर बढ़ा है इसमें भी कोई संशय नहीं है |
     उन्हीं वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज ने कुछ जो बड़ी अपेक्षाएँ पाल रखी हैं उन विषयों में वैज्ञानिकों के द्वारा  किए गए अधिकाँश प्रयास अभी तक निरर्थक ही सिद्ध हुए हैं | इसलिए समाज ने जो अपेक्षाएँ पाल रखी रखी हैं उन आवश्यकताओं और उनकी आपूर्ति में बड़ा अंतर दिखाई दे रहा है |
     कोरोना जैसी सभी महामारियों के समय में समाज को अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता सबसे अधिक होती है उस समय समाज की मदद करने में असफल असहाय विज्ञान उस महामारी से जूझने के लिए समाज को अकेला छोड़ देता है |
       यही स्थिति प्राकृतिक आपदाओं की है जब जब प्राकृतिक आपदाएँ समाज को कुचलना प्रारंभ करती हैं तब भी विज्ञान की भूमिका लगभग नगण्य ही देखी  जाती रही है |
कोरोना जैसी महामारियों में विज्ञान की भूमिका !                                
      23 अप्रैल 2020 मीडिया में प्रकाशित एक लेख पढ़ने को मिला जिसकी हेडिंग थी " दम घोंट देता है कोरोना, देखते रह जाते हैं डॉक्टर, वेंटिलेटर भी काम नहीं आता" आगे लिखा था -'कोरोना वायरस की वजह से मरीजों का दम घुट रहा है. वेंटिलेटर और लाइफ सपोर्ट सिस्टम भी बेकार साबित हो रहे हैं. डॉक्टर मरीजों को मरते हुए देखते रह जाते हैं |' यह पढ़कर लगा कि किसी भी रोग या महारोग का संक्रमण फैलने पर  सारा विश्व चिकित्सकों से आशा करता है कि हमारे लिए यही ईश्वर स्वरूप हैं यहीं हमें इस महामारी से मुक्ति दिला सकते हैं | वही चिकित्सक यदि इतने बेबश हों तो चाहकर भी सरकारें या समाज की स्वयं सेवी संस्थाएँ ऐसी महामारी से पीड़ित लोगों को रोग मुक्त होने में और कैसे मदद पहुँचा  सकती हैं | 
       इसीलिए सरकारों  चिकित्सकों समाज सेवियों आदि सभी लोगों के समर्पित प्रयासों से निकलने वाले परिणाम अत्यंत निराशा जनक हैं |कोरोना पर अभी तक किसी भी प्रकार का अंकुश नहीं लगाया जा सका है इसके लक्षण नहीं पहचाने जा सके हैं जो लक्षण चिन्हित भी किए गए हैं वे भी गलत होते देखे जा रहे हैं | जिनके लिए कहा जा रहा है कि कोरोना स्वरूप बदल रहा है |सच्चाई यह है कि कोरोना का वास्तविक स्वरूप है क्या अभी तक इस बात का ही पता नहीं लगाया जा सका है | कुछ चिकित्सकों को रोगियों के एक वर्ग में जिस प्रकार के लक्षण दिखाई पड़ने लगे वे उसे ही कोरोना का लक्षण मैंने लगते हैं जबकि कुछ दूसरे  चिकित्सकों को रोगियों के किसी दूसरे वर्ग में कुछ दूसरे प्रकार के लक्षण दिखाई पड़े तो वे उन्हीं लक्षणों को कोरोना के लक्षण मानने लगे ऐसे ही कुछ अन्य वर्ग के अनुभव कुछ अन्य प्रकार के देखने को मिले |जब सभी लोगों ने अपने अपने अनुभवों का एक दूसरे के साथ आदान प्रदान किया तो कई प्रकार के लक्षण देखने को मिले !उन सभी के संयुक्त बिचारों से यह अनुभव सामने  आया कि कोरोना स्वरूप बदल रहा है | किंतु कोरोना है क्या उसका अपना स्वरूप क्या है इसका निश्चय हुए बिना उसके स्वरूप बदलने की बात कहने का कोई औचित्य ही नहीं है |  
      एक बार कुछ नेत्रहीन लोगों के सामने एक हाथी लाकर खड़ा कर दिया गया और उनसे पूछा गया गया कि हाथी कैसा होता है अपने अपने अनुभवों से आप लोग बताएँ | चूँकि उनमें से किसी को दिखाई नहीं पड़ता था इसलिए उन सभी लोगों ने हाथी को घेर कर उसके शरीर पर हाथ फेरते हुए का स्पर्श करके इस बात का अनुभव करने लगे कि हाथी कैसा होता है | उनमें से जिसने हाथी का जो अंग पकड़ में मिला वो हाथी को वैसा ही मानने लगा | जिसके पकड़ में हाथी की सूँड आई वो हाथी को पतला लंबा और लोच दार मानने लगा ! दूसरे के हाथ में पूछ आई वो उस हाथी को अत्यंत पतला लोचदार बताने लगा | जिसका  हाथ हाथी के पेट पर पड़ गया वह हाथी का स्वरूप पहाड़ की तरह बताने लगा !इसी प्रकार से कुछ अन्य लोगों को हाथी के स्वरूप के बिषय में कुछ अन्य प्रकार के अनुभव हुए | बाद में जब उन सभी नेत्रहीन लोगों ने अपने अनुभवों का आदान प्रदान किया तो सबका अनुभव भिन्न भिन्न प्रकार का देखने को मिला जिससे उन लोगों का एक संयुक्त मत बना कि हाथी स्वरूप बदल रहा है  जबकि सच्चाई यह नहीं थी क्योंकि उन लोगों में हाथी का संपूर्ण स्वरूप एक साथ देखने की क्षमता नहीं थी इसीकारण उन्हें ऐसा भ्रम हुआ कि हाथी अपना स्वरूप बदल रहा है | 
      कोरोना भी उसी हाथी की तरह है जिसके विषय में कोई जानकारी न होने के कारण चिकित्साविज्ञानिकों को इस प्रकार के भ्रम हो रहे हैं जिस दिन इसे पहचानने की क्षमता विकसित हो जाएगी उसीदिन कोरोना के बिषय में उनका यह भ्रम टूट जाएगा | 
     
1.चीन- पहला केस: 31 दिसंबर 2019
2.अमेरिका- पहला केस: 23 जनवरी
3.   फ्रांस- पहला केस: 24 जनवरी 
 4.  जर्मनी - पहला केस: 27 जनवरी
  5. भारत में - पहला केस:30 जनवरी  
 6.  इटली -पहला केस: 31 जनवरी 
 7.  यूके- ब्रिटेन में पहला केस: 31 जनवरी
 8.  स्पेन में - पहला केस: 1 फरवरी को  
9.बेल्जियम- पहला केस: 4 फरवरी
10.ईरान- पहला केस: 19 फरवरी 
11. तुर्की - पहला केस: 10 मार्च 

      इस प्रकार से अप्रैल बीतने के साथ धीरे धीरे 4 महीने पूरे होने को आ रहे हैं समस्त विश्व के सुयोग्य चिकित्सावैज्ञानिक संपूर्ण  समर्पण के साथ कोरोना को खदेड़ने के प्रयासों में लगे हुए हैं जिसमें विश्व के एक से एक शक्तिशाली देशों ने कोरोना को समाप्त करने में अपनी संपूर्ण ताकत झोंक रखी है जिसके परिणाम स्वरूप कोरोना को समाप्त करने की बात तो दूर उसपर किसी भी प्रकार का कोई अंकुश नहीं लगाया जा सका है वह उन्मत्त निरंकुश हाथी की तरह चिकित्सा वैज्ञानिकों के प्रयासों की परवाह किए बिना चीन के वुहान शहर से निकलकर विश्व के अधिकाँश भाग को अपनी चपेट में लेता हुआ धीरे धीरे आगे बढ़ता जा रहा है | चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा उसे समाप्त करना तो दूर उसे पहचान पाना भी अभी तक संभव नहीं हो पाया है | कोरोना की गति को रोकपाना भी यदि संभव हो पाता तब भी इसे वुहान में ही घेर कर रखा जा सकता था किसी दूसरे देश में फैलने नहीं दिया जाता तब भी गनीमत थी | ऐसा भी नहीं किया जा सका | 
      कोरोना के जो लक्षण  वैज्ञानिकों के द्वारा बताए गए वे उसके लक्षण ही नहीं थे जब इस गलती का अहसास हुआ तब तक काफी देर हो चुकी थी तब कहा गया कि कोरोना स्वरूप बदल रहा है | संशय साफ झलकता है | 
     कोरोना के फैलने के बिषय में जितने भी शोध हुए हों मुझे नहीं पता किंतु जो बातें सामने आयीं उनमें कोई भी स्पष्ट निष्कर्ष सामने नहीं लाया जा सका | पहले कहा गया  कि ये छुआछूत से फैलने वाली बीमारी है | इसके बाद कहा गया ये हवा से फैलने वाला रोग है फिर इसका खंडन करते हुए कहा गया कि यह हवा से फैलने वाला रोग नहीं है | बाद में काफी रोगी ऐसे भी मिले जो न कहीं यात्रा पर निकले और न ही किसी ऐसे संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए उन्हें भी कोरोना होते देखा गया !यहाँ भी अंत तक इस बात का निर्णय नहीं हो सका है कि कोरोना फैलता आखिर कैसे है ? इस बिषय में संशय अंत तक बरकरार है | 
      कोरोना तापमान बढ़ने से ठीक होगा ऐसा कहा गया किंतु जिन क्षेत्रों में तापमान बढ़ा हुआ था वहाँ भी कोरोना उपद्रव मचा रहा था तब कहा गया कि यह आवश्यक नहीं है कि तापमान बढ़ने से कोरोना समाप्त हो ही जाएगा | इस बात में भी संशय साफ साफ झलकता है | 
    कोरोना के विषय में पूर्वानुमान लगाने की क्षमता का जहाँ तक प्रश्न है तो कोरोना कब फैलेगा न तो इसका कोई पूर्वानुमान लगाया जा सका था और न ही कोई स्पष्ट पूर्वानुमान इस बात का ही लगाया जा सका कि कोरोना कब समाप्त होगा !जितने मुख थे उतनी बातें थीं !इसमें भी संशय साफ साफ झलक रहा था |
    दिसंबर 2019 में पैदा हुए कोरोना जैसे महारोग पर बीते चार महीनों में किसी भी प्रकार का अंकुश नहीं लगाया जा सका है जबकि तमाम चिकित्सकीय प्रयास किए गए !इसीक्रम में 21 अप्रैल को दिल्ली के  एलएनजेपी अस्पताल में कोरोना के चार मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी का प्रयोग किया गया आशा अच्छी है किंतु परिणामों पर किसी का अधिकार नहीं है | 
     इसी प्रकार से कहीं वैक्सीन बनाई गयी कहीं कुछ अन्य प्रकार के प्रयास और परीक्षण किए गए किंतु उसका प्रभाव कोरोना पर कितना पड़ेगा यह कहना संभव नहीं है |
    ऐसी परिस्थिति में कोरोना कोरोना वायरस का संक्रमण दिसंबर 2019 में चीन के वुहान में शुरू हुआ था  तब से लेकर अप्रैल तक कोरोना के विषय में सम्पूर्ण संशय यथावत बने हुए हैं | कोरोना को रोकने एवं इसे जड़ से समाप्त करने हेतु उन समस्त वैज्ञानिक अनुसंधानों का उपयोग किया चुका है जो स्वास्थ्य रक्षा के लिए अभीतक खोजे जा सके हैं | ये चिंता का बिषय है कि विश्व के जान जीवन को जब अपने चिकित्साविज्ञानिकों के अनुसंधानों की सबसे अधिक आवश्यकता थी तब वे समाज के किसी काम नहीं आ सके |इससे समाज को निराश होना पड़ा है ऐसे अनुसंधानों से आशा होनी स्वाभाविक ही है किंतु ..... ! 
      सरकारों के साथ साथ कोरोना योद्धाओं के नाम से प्रसिद्ध चिकित्सक पुलिसकर्मी सफाईकर्मी आदि अपनी अपनी क्षमता के अनुसार कोरोना से लड़ाई लड़ने में अपना सबकुछ न्योछावर किए हुए हैं विशेषकर चिकित्सक अपने प्रियपरिवारों की परवाह छोड़कर अपनी जानपर खेलते हुए कोरोना से लड़ाई में अपने को पूरी तरह झोंक रखा है | चिकित्सकीय कर्तव्यनिष्ठा के प्रति समर्पित कुछ चिकित्सकों को तो इसकी चपेट में आकर प्राण तक गँवाने पड़े हैं बताया जाता है जिसने सबसे पहले इस बिषाणु को पहचाना था उन चिकित्सक महोदय को भी अपनी कर्तव्यनिष्ठा में समर्पित होकर प्राण छोड़ देना पड़ा है |इसके साथ साथ तमाम पुलिसकर्मी एवं अन्य सेवाओं से जुड़े लोग भी इसकी चपेट में आ चुके हैं | ऐसे समस्त कोरोना योद्धाओं के समर्पण को सदैव याद रखा जाना चाहिए जिनके प्रयासों के परिणाम कितने आए नहीं आए वो अलग विषय हो सकता है किंतु इतनी बड़ी मुसीबत में उन्होंने समाज के लिए अपना सर्वस्व दाँव पर लगाया है जिसके लिए उनकी भूरी भूरी प्रशंसा की जानी  चाहिए !इसके साथ ही चिकित्सा संबंधी ऐसे अनुसंधानों को भी कम से कम इतना जवाबदेय तो बनाया ही जाना चाहिए कि ऐसी महामारियों के नाम रख लेने के अतिरिक्त भी उनका कुछ योगदान भी तो दिखाई ही पड़ना चाहिए |
 महामारियाँ और चिकित्सा -
     महामारियों से मुक्ति दिलाने के लिए चिकित्सकगण  कोई न कोई प्रयास तो लगातार करते  ही रहते हैं इसी उधेड़बुन में कोरोना जैसी महामारियाँ समाप्त होने लगती हैं |इससे चिकित्सा वैज्ञानिकों को लगने लगता है कि हमने जो वेक्सीन आदि बनाई है यह रोग उसी से समाप्त हो रहा है | सरकारें अपने द्वारा उचित समय पर लिए गए चिकित्सकीय निर्णयों एवं लॉकडाउन आदि अपने प्रयासों को इसका श्रेय देने लगती हैं |
    प्रायः सभी देश अपने अपने स्तर से कुछ ऐसे प्रयास कर रहे होते हैं जिससे महामारियों पर अंकुश लगाया जा सके यह प्रक्रिया सभी प्रकार की महामारियाँ फैलने पर अपनाई जाती है फिर भी महामारियों पर तुरंत अंकुश लगा पाना संभव नहीं हो पाता है यदि ऐसी महामारियों की कोई वैक्सीन या चिकित्सा पद्धति आदि विकसित की जा सकी होती तो ऐसी महामारियों को समाप्त भले न किया जा सके किंतु इनके वेग को तो कम किया ही जा सकता है यदि इतना भी नहीं हो सकता तो ये कैसे सिद्ध होता है कि ऐसी महामारियों को चिकित्सा प्रक्रिया के किसी प्रयास से समाप्त किया जा सका है,क्योंकि कोई भी महामारी जब तक रहती है तब तक ऐसे रोगों पर विजय पाने के लिए वेक्सीन आदि बनाने के कोई न कोई प्रयास तो किए ही जाते रहते हैं | उन सभी प्रयासों की ऐसी महामारियों से मुक्ति दिलाने में कोई न कोई भूमिका हो ही यह भी मानने के लिए कोई तो वैज्ञानिक आधार होना चाहिए जो तर्कपूर्ण भी हो  |
   प्राचीनकाल में जब अत्यंत विकसित चिकित्सा पद्धतियाँ नहीं थीं रोगों की जाँच के लिए भी उतने अच्छे संसाधन नहीं थे तब भी महामारियाँ फैलती थीं एक निश्चित समय तक रहती थीं अपने निर्धारित लक्ष्य की भाँति संपूर्ण विश्व या उसके किसी देश के किसी क्षेत्र को अपने दुष्प्रभाव से प्रभावित करने के बाद अपने समय से समाप्त हो जाया करती थीं | जिन बनबासियों तक आज भी चिकित्सकीय विकास नहीं पहुँच पाया है वहाँ आज भी वही होते देखा जा रहा है | वहाँ भी महामारियाँ फैलती और समाप्त होती हैं वहाँ भी बहुत लोग मारे जातें हैं | 
 वहीं वर्तमान समय में  जहाँ चिकित्सा पद्धतियाँ अत्यंत विकसित हैं सारे संसाधन विद्यमान हैं | चिकित्सा से संबंधित एक से एक उन्नत तकनीक है |वर्तमान विश्व के पास इतनी सारी अच्छी व्यवस्थाएँ होने के बाद भी तो परिस्थितियाँ लगभग वही हैं उनमें से कुछ बहुत अंतर पड़ते तो नहीं दिख रहा है | उन अत्यंत विकसित देशों और शहरों में ऐसी कोरोना जैसी महामारियाँ फैलने पर आज भी तो वुहान में प्रकट होकर संपूर्ण विश्व में फैल जाता है जिसमें बहुत लोग मारे जाते हैं |आखिर चिकित्सकीय सुविधाएँ मिलने और न मिलने का कुछ अंतर तो दिखाई पड़ना चाहिए | 
      प्रायः देखा जाता है कि महामारियाँ जब सब कुछ तहस नहस कर जब जाने लगती हैं तब उन महामारियों इलाज खोज लेने का दावा कर दिया जाता है किंतु वह इलाज उस महामारी को समाप्त करने में कितना सक्षम है इसका परीक्षण तो बहुत मुश्किल होता है क्योंकि दूसरी बार कोई दूसरी महामारी कोई नया रूप लेकर आती है फिर उसके लिए उसी संपूर्ण प्रक्रिया को करने में फिर उतना समय लग ही जाता है जितने समय में महामारी स्वयं समाप्त होने का समय आ पहुँचता है |
     इसकी वास्तविकता तब और अधिक स्पष्ट रूप से समझ में आती है जब भारत में लगभग प्रत्येक वर्ष डेंगू जैसे रोग अपने समय से आते और अपने समय से जाते देखे जाते हैं | यह सच्चाई जानते हुए भी प्रत्येक वर्ष जब डेँगू समाप्त होने लगता है तब उसके समाप्त होने का कारण चिकित्सकीय प्रयासों को मानकर डेंगू पर बिजय प्राप्त कर लेने का भ्रम पाल लिया जाता है फिर दूसरे वर्ष डेँगू अपने समय से आ जाता है और अपने समय तक रहता है और समय बीतने पर समाप्त हो जाता है किंतु अक्सर देखा जाता है कि उस डेँगू पर पिछले वर्ष खोजे गए चिकित्सकीय प्रयोग औषधियाँ अनुभव आदि काम नहीं आ पाते हैं |
     महामारियों के अतिरिक्त भी कुछ ऐसे रोग होते हैं जिन पर चिकित्सकीय प्रयासों का असर भी देखा जाता है उनके द्वारा कुछ बहुत गंभीर रोगियों को स्वस्थ होते भी देखा जाता है |इस विशवास के कारण ही कुछ ऐसे विशेष रोगों से ग्रसित लोग विशेषज्ञ सुयोग्य चिकित्सकों से समय रहते अपनी चिकित्सा प्रारंभ करवा देते हैं और पूर्ण पथ्य परहेज का पालन करते हैं इसके बाद भी उनमें से कुछ रोगी स्वस्थ हो जाते हैं कुछ अस्वस्थ बने रहते हैं और कुछ की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु होते देखी जाती है |
   यदि किसी रोग से मुक्ति दिलाने में केवल चिकित्सा ही सक्षम होती तब तो चिकित्सकीय प्रयासों का प्रभाव उन सभी रोगियों पर एक समान पड़ना चाहिए था !यदि एक समान न भी पड़ता तो थोड़ा बहुत अंतर पड़ता !इतना अंतर तो नहीं ही पड़ना चाहिए था कि कुछ रोगी तो बिल्कुल स्वस्थ हो जाएँ और कुछ की मृत्यु हो जाए !
    इस अंतर से यह स्पष्ट हो जाता है कि चिकित्सकीय प्रयासों के अतिरिक्त कोई ऐसा अन्य बल भी है जो रोगियों पर काम कर रहा होता है किसी रोगी के स्वस्थ होने ,अस्वस्थ बने रहने में उस बल की भी प्रमुख भूमिका होती है जो दिखाई भले न पड़ता हो किंतु किसी रोगी के जीवन या मृत्यु के विषय में उसका निर्णय ही सर्वमान्य होता है | 
    उस अदृश्य अज्ञात एवं शक्तिशाली बल के आगे सारी दुनियाँ नतमस्तक है इसीलिए तो प्रायः चिकित्सालयों में रोगियों के स्वास्थ्य होने के संपूर्ण संसाधन जुटाए जाते हैं इसके बाद भी उन्हीं चिकित्सालयों में एक शवगृह भी बनाया जाता है जो उस चिकित्सालय के उद्देश्य ,उद्घोष और पहचान के विपरीत है | इसके बाद भी उसे  चिकित्सालय में आवश्यक मानकर बनाया जाता है , क्योंकि किसी चिकित्सालय के वश में अच्छी से अच्छी चिकित्सा पद्धति उपलब्ध  करवाना तो है किंतु उस अज्ञात बल पर किसी का कोई बश नहीं चलता है जो चिकित्सकीय प्रयासों के विपरीत परिणाम प्रदान कर रहा होता है | चिकित्सालयों में बने शवगृह उस अदृश्य एवं अज्ञात बल के भय के प्रभाव के प्रत्यक्ष प्रमाण होते हैं | 
     उस अज्ञात बल का इतना प्रबल प्रभाव होने के बाद तो यह आवश्यक हो ही जाता है कि उस बल की पहचान की जाए उसके स्वभाव प्रभाव का अध्ययन हो जिससे किसी रोगी पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का अध्ययन किया जा सके ताकि किसी भी रोगी की चिकित्सा प्रारंभ करते समय उस रोगी पर पड़ने वाले उस अदृश्य बल के प्रभाव एवं चिकित्सा के प्रभाव को समझकर संभावित परिणाम के विषय में कुछ पूर्वानुमान लगाया जा सके | 

   कोरोना वायरस के भेद या स्वरूप परिवर्तन ?
      कोरोना वायरस से पीड़ित सभी जगह के रोगियों के लक्षण भी लगभग एक जैसे ही होने चाहिए थे जबकि लक्षणों और प्रभाव में पर्याप्त अंतर है |कई रोगियों के शरीरों में कोरोना वायरस तो मिला किंतु वे लक्षण नहीं मिले जिन लक्षणों से कोरोना की पहचान की जाती रही है |इसके बाद आशंका व्यक्त की गई कि कोरोना अपना स्वरूप बदल रहा है |ऐसी परिस्थिति में जानना आवश्यक था कि कोरोना अपना स्वरूप बदल रहा है या कोरोना के अनेकों भेद  थे जिसके कारण अलग अलग रोगियों में अलग अलग लक्षण दिखाई पड़ रहे थे  या फिर कोरोना के लक्षणों को पहचाना ही नहीं जा सका है |कोरोना का स्वरूप है क्या इसे ठीक ठीक समझने के लिए हमारे पास कोई ऐसा आधार भूत ज्ञान स्रोत ही नहीं था और न ही किसी अनुसन्धान के द्वारा ही इस बात का पता लगाया जा सका कि कोरोना जैसे महारोग का स्वभाव क्या है इसका स्वरूप कैसा है इसमें लक्षण क्या क्या दिखाई पड़ते हैं तथ रोगियों के किस स्तर पर पहुँचने के बाद उनमें कैसे लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं |    
     यदि ये बात सच है कि बहुत रोगियों में कोरोना के लक्षण तो नहीं दिख रहे थे किंतु उनमें कोरोना था ऐसा जाँच से पता लगा किंतु जाँच  देश के सभी नागरिकों की तो संभव नहीं है | ऐसे गुप्त लक्षण वाले रोगियों की यदि जाँच न की जाती तो शायद यह पता भी न लग पाता कि उन्हें कोरोना हुआ भी है | बहुत ऐसे लोग भी रोगी हुए होंगे और वे अपने आप से स्वस्थ भी हो गए होंगे उनमें संक्रमण के लक्षण अधिक नहीं बढ़े होंगे इसलिए किसी को पता नहीं चल पाया | क्योंकि जाँच के साधन अत्यंत सीमित थे इसलिए जाँच तो उन्हीं की हो पायी जिनके विषय में विशेष आवश्यक समझा गया  या जो लोग किसी कोरोना संक्रमित व्यक्ति के किसी भी प्रकार से संपर्क में रहे होंगे | जिन लोगों पर ऐसा कोई संशय नहीं हुआ उनकी जाँच नहीं की गई जबकि उनमें से कितने लोग कोरोना पीड़ित थे इसका पता लगाने का और कोई दूसरा माध्यम भी नहीं है | वैसे भी बहुत लोग ऐसे देखे गए जिनमें संक्रमण के लक्षण उभरे और वे एकांत में चले गए और उचित आचार व्यवहार का पालन करते रहे इससे ऐसे लोग भी कुछ समय में स्वस्थ होते देखे गए |इसलिए कोरोना वायरस से संक्रमित वही लोग प्रकाश में आ पाए जो या तो गंभीर थे या फिर किसी अन्य कारण से उनकी जाँच करनी आवश्यक समझी गई | संक्रमितों की वास्तविक संख्या का अनुमान लगा  पाना आसान काम नहीं है |
       बिशेष बात यह है चीन के वुहान शहर से लेकर अमेरिका ब्रिटेन इटली स्पेन आदि विश्व के उन देशों में भी फैल गया जो चीन से बहुत दूर स्थित थे | ऐसी परिस्थिति में ये प्रश्न  उठना स्वाभाविक है कि इस वायरस के फैलने का माध्यम क्या रहा होगा ?एक ओर तो वुहान शहर के आस पास के कुछ देश प्रदेश आदि ऐसे हैं जहाँ कोरोना वॉयरस बहुत अधिक नहीं फैल पाया जबकि इटली स्पेन ब्रिटेन अमेरिका जैसे देश तो भौगोलिक दृष्टि से वुहान से बहुत दूर स्थित हैं फिर भी उनमें कोरोना फ़ैल गया | इसका कारण क्या हो सकता है | बियतनाम जैसे चीन के पड़ोसी देशों में कोरोना का संक्रमण उस प्रकार से नहीं फैला जैसा सुदूर यूरोपीय देशों में देखा गया जबकि अमेरिका जैसे अत्यंत विकसित अनुभवी संसाधन संपन्न देश थे फिर भी वे इसकी चपेट में आ गए | 
   दूसरी बिचारणीय बात यह भी है कि कुछ रोगियों में कोरोना वायरस के एक प्रकार के लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं जबकि दूसरों में दूसरे प्रकार के और तिसरों में कोई लक्षण ही नहीं दिखाई पड़ रहे हैं | ऐसी परिस्थिति में सारे शंका होना स्वाभाविक ही है कि विश्व में फैला कोरोना वायरस वही वुहान वाला है या कि भिन्न भिन्न प्रकार का कोरोना अलग अलग देशों में उसी प्रकार से हुआ है जिस तरह चीन के वुहान में हुआ था | उसी प्रकार से विश्व के अन्य भागों में भी पैदा हो गया होगा | निश्चित तौर पर यह कहना कठिन है कि इसका चीन के वुहान वाले वायरस से कोई सीधा संबंध है भी या नहीं यदि है तो कोरोना से संक्रमित रोगियों में इतना अंतर क्यों दिखाई पड़  रहा है ?

   कोरोना वायरस फैलने के माध्यम क्या क्या हैं ?
    किसी कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से


क्या जल और वायु से भी फैल सकता है !


महामारियाँ और भारत का वैदिकविज्ञान !
    महामारियों का इतिहास लाखों वर्ष पुराना है हमेंशा से सौ पचास वर्षों में कोई न कोई महामारी घटित होती रही है ऐसा वर्णन मिलता है | कोई भी महारोग जब महामारी का स्वरूप धारण करता है तब उसमें चिकित्सा की किसी विधा का कोई विशेष असर नहीं होता है | 
      किसी भी महामारी के बिषय में वैदिक विज्ञान का मानना है कि ये समय जनित संक्रामक महारोग होते हैं ये समय से प्रारंभ होते और अपने समय पर ही समाप्त होते हैं | ऐसी महामारियों के विषय में एक ही उपचार बताया गया है कि सर्वप्रथम महामारियों के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए कि कोई महामारी फैलेगी कब और कितने समय तक रहेगी तथा उससे मुक्ति कब मिलेगी | इसका पूर्वानुमान पहले से लगा लिया जाना चाहिए | 
       कोई भी महामारी फैलने में सबसे बड़ा कारण होता है समय !अच्छा और बुरा दो प्रकार का समय होता है जब बुरा समय आता है तब महामारियाँ फैलती हैं | इसका क्रम यह है कि बुरे समय के प्रभाव से सबसे पहले वायु प्रदूषित होता है इसके बाद जल प्रदूषित होता है |  जल और वायु के प्रदूषित होने से पेड़ पौधे फल फूल अनाज बनौषधियाँ आदि सब कुछ प्रदूषित होने लगता है प्राकृतिक वातावरण बिगड़ने से जीवन प्रभावित होने लगता है | प्रदूषित हवा में साँस लेने से एवं प्रदूषित खाद्यपदार्थों का सेवन करने से प्रदूषित जल पीने से बहुत सारे लोग एक जैसे रोग से पीड़ित होने लगते हैं | 
     महामारियों में होने वाले रोगों के संपूर्ण लक्षण एक दूसरे से मिलेंगे ही ऐसा निश्चय नहीं होता है | क्योंकि इसमें जल प्रदूषित होता है खाद्य पदार्थ प्रदूषित होते हैं वायु प्रदूषित होती है बनौषधियाँ प्रदूषित होती हैं |कुलमिलाकर संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण बिषैला हो जाता है | इसलिए जिस प्रकार के प्रदूषण के संपर्क में जो जितना अधिक रह लेता है उसमें उसप्रकार के लक्षणों की अधिकता दिखाई देने लगती है | जिसने केवल प्रदूषित जल पिया है उसमें उस प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं जिसने प्रदूषित वायु का सेवन किया है उसमें उस प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं ऐसे ही जिसने केवल प्रदूषित वस्तुओं का स्पर्श ही किया है उसमें उस प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं | इसके साथ ही जैसे जैसे बुरे समय का प्रभाव बढ़ते जाता है उसी समय के प्रभाव से प्राकृतिक वातावरण में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जाता है उससे उस महारोग के लक्षण भी बदलते चले जाते हैं | ऐसी परिस्थिति में महामारियों की पहचान कर पाना सबसे कठिन काम होता है | 
      महामारियाँ एक बार जब प्रारंभ हो जाती हैं तब तक संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण बिल्कुल बिगड़ चुका होता है इसलिए ऐसे महामारी काल में उस बुरे समय के प्रभाव से औषधि उपयोगी बनस्पतियाँ गुणहीन होकर ऐसे रोगों पर निष्प्रभावी हो जाती हैं | 
      ऐसी परिस्थिति में उस बुरे समय का प्रभाव जिस अनुपात में शरीरों पर पड़ता है जिससे महामारी फैलती  है उसी अनुपात में उन खाद्यान्नों एवं बनस्पतियों पर भी पड़ता है जिससे खाद्यान्न बिषैले एवं बनस्पतियाँ गुणहीन हो जाती हैं | इसीलिए महामारियों में होने वाले रोगों पर उन बनस्पतियों से निर्मित रोगों का प्रभाव उस प्रकार का नहीं पड़ता है जिससे उस रोग पर अंकुश लग सके |  ऐसी परिस्थिति में रोग दिनोदिन बढ़ते हुए तेजी से अपने लक्षण बदलते जा रहा होता है |
      महामारियों का पूर्वानुमान लगाना ही इससे बचाव का एक मात्र रास्ता होता है क्योंकि महामारियाँ प्रारंभ होने से पूर्व यदि इनके विषय में पता लगा लिया जाता है तो उस समय तक बनस्पतियों से लेकर अन्न जल आदि सब शुद्ध और प्रदूषण मुक्त होते हैं उनका संग्रह यदि उसी समय कर लिया जाए तो महामारी काल में भी वे शुद्ध बने रहते हैं और बनस्पतियाँ गुणकारी बनी रहती हैं जिनके प्रयोग से ऐसी महामारियों का फैलाव अत्यंत कम हो पाता है तथा उन प्रदूषण मुक्त बनस्पतियों  से निर्मित औषधियाँ ऐसे रोगों पर नियंत्रण कर पाने में सक्षम होती हैं |
      इसमें वैदिक विज्ञान की दृष्टि से एक और विशेष बात बतायी गई है कि जैसे प्रकृति का अच्छा और बुरा दो प्रकार का समय होता है और बुरे समय के प्रभाव से महामारियाँ फैलती हैं उसी प्रकार से मनुष्यों का भी अपना अपना अच्छा और बुरा दो प्रकार का समय होता है जिन जिन स्त्री पुरुषों का उस समय बुरा समय चल रहा होता है महामारियों के समय में भी वही लोग अधिक पीड़ित होते हैं | इसीलिए महामारी काल में भी उस क्षेत्र के सभी लोग उस महामारी से एक जैसे पीड़ित नहीं होते हैं |जिस व्यक्ति का अपना जैसा समय चल रहा होता है महामारी का असर भी उस पर उसी अनुपात में होता है वह उतने स्तर तक ही रोगी होता है | महामारियों का असर किसी की उम्र के अनुशार न पड़कर अपितु उसके समय के अनुसार पड़ता है | इसीलिए महामारी काल में भी कुछ लोग बिल्कुल स्वस्थ बने रहते हैं क्योंकि उनका अपना समय अच्छा चल रहा होता है |



   महामारियाँ और समय
      इसलिए सच्चाई यही है कि कोरोना जैसी महामारियाँ प्राकृतिक होती हैं ये अपने समय से आती और अपने समय से ही जाती हैं मनुष्य कृत प्रयासों से इसके वेग को कुछ कम किया जा सकता है किंतु अधिक नहीं !
    दूसरी ओर ऐसी महामारियों का समय व्यतीत हो जाता है और समय समाप्त होते  ही ऐसी महामारियाँ भी समय के साथ साथ स्वयं ही समाप्त होने लगती हैं | ऐसे समय में जो जिस प्रकार के उपायों का सहारा ले रहा होता है उसे लगने लगता है कि वह महामारी उसके  उसी उपाय से कम होनी प्रारंभ हुई है | इसीलिए कुछ लोग महामारियों को पराजित करने या उससे लड़ने का उद्घोष करते हुए दिखाई देते हैं महामारियों से लड़ने की इच्छा रखने वाले ऐसे योद्धाओं को समझना चाहिए कि किसी व्यक्ति से लड़ा जा सकता है समय से नहीं | महामारी वस्तुतः कोई रोग नहीं अपितु बुरासमय होता है जिसका प्रभाव जीवन के साथ साथ संपूर्ण प्रकृति पर भी उसी अनुपात में पड़ रहा होता है | समय के प्रभाव से पृथ्वी पर स्थित जल वायु अन्न फल शाक आदि सब बिषैले हो जाते हैं पृथ्वी के वातावरण में विद्यमान इस प्रकृति के छोटे से छोटे तिनके पर भी समय का बिषैला प्रभाव पड़  रहा होता है | सुदूर आकाश तक सबकुछ उस बिषाणु से प्रभावित होता है | यहाँ तक कि पृथ्वी के अंदर पातळ के गर्भ में समाया हुआ जल भी निकालकर यदि कोई व्यक्ति नहाना या पीना चाहे तो वह भी उसी अनुपात में बिषैला होता है | 
    महामारी से पीड़ित रोगियों पर इसीलिए किसी औषधि का कोई विशेष असर नहीं पड़ता है !उसका कारण उस समय औषधियाँ भी उस बिषाणु से प्रभावित होने के कारण निर्वीर्य हो जाती हैं जिससे रोगियों पर उनका कोई असर नहीं होता है | दूसरी बात यदि कुछ असर होता भी हो तो रहना तो उन्हें इसी संसार में होता है इसी वायु में साँस लेनी होती है यही जल पीना होता है वही फल शाक सब्जियाँ आदि खाद्य पदार्थ खाने होते हैं !तो औषधि से अधिक उन वस्तुओं के बिषैलेपन का असर हो जाता है| बिशेष बात यह है कि रोगी के अपने शरीर पर तो समयज प्रभाव पड़ता ही है इससे वो तो बिषाणुप्रभावित होता ही है इसके साथ साथ वह जिस भी व्यक्ति वस्तु स्थान आदि का स्पर्श करता है वह सब कुछ बिषाणु प्रभावित होने के कारण बिषाणुओं का आपस में आदान प्रदान होते होते ऐसी महामारियों का विस्तार होता चला जाता है | 
    जीवों की तरह ही निर्जीव वस्तुओं पर भी बिषाणुओं का प्रभाव उसीमात्रा में होता है किंतु चेतना के अभाव के कारण उनमें दिखाई नहीं पड़ता है जबकि यदि कोई व्यक्ति जीव जंतु आदि उसका स्पर्श कर लेता है तो उससे वह संक्रमित हो जाता है | 
     इसीलिए कई बार कुछ लोग बिषाणु से पीड़ित किसी व्यक्ति का स्पर्श किए बिना भी संक्रमित होते देखे जाते हैं क्योंकि वे संक्रमित व्यक्तियों का स्पर्श करने से भले ही बच जाते हैं किंतु जाने अनजाने में संक्रमित वस्तुओं का स्पर्श हो होता ही रहता है |ऐसे समय में उन लोगों को बड़ा भ्रम होता है जो यह मानकर बैठे होते हैं कि संक्रमण एक दूसरे के संपर्क में आने से ही होता है | ऐसे रोगियों को देखकर उन्हें लगने  लगता है कि संक्रमण वायु में ही विद्यमान है | यदि वे ऐसा मान लेते हैं तो पुनः शंका होती है कि संक्रमण यदि वायु में विद्यमान होता तब तो सभी को एक साथ एक जैसा रोगी हो जाना चाहिए किंतु ऐसा होते नहीं देखा जाता है | 
       बिषाणु तो बिष का अंश होता है इसलिए वह किसी एक प्रकार का रोग पैदा नहीं करता है अपितु जिस समय जिस प्रकार के वातावरण का समय चल रहा होता है या जिसके शरीर में जिस प्रकार के तत्त्व की कमी होती है या बहुत अधिकता होती है उससे संबंधित रोग होते जाते हैं | इस प्रकार से समयज बिषाणु अलग अलग शरीरों पर भिन्न भिन्न प्रकार से असर करते देखा जाता है जिससे अनेकों प्रकार के लक्षणों से युक्त रोग फैलते देखे जाते हैं | जिन्हें देखकर ऐसा भ्रम होने लगता है कि बिषाणु अपना स्वरूप बदल रहा है किंतु कोई बिषाणु इतना स्वतंत्र नहीं होता है कि वह अपना स्वरूप बदल लेने लगे | वह समय के बंधन में इस प्रकार से बँधा होता है कि उसका स्वरूप बदलपाना संभव ही नहीं होता है |
       किसी क्षेत्र में महामारी के प्रारंभ होने पर भी उस क्षेत्र में सभी लोग एक जैसे रोग से पीड़ित नहीं होते हैं कुछ लोग स्वस्थ बने रहते हैं कुछ अस्वस्थ हो जाते हैं उन अस्वस्थों में भी कुछ स्वस्थ हो जाते हैं जबकि कुछ अस्वस्थ बने रहते हैं और बाद में उनकी दुर्भाग्य पूर्ण मृत्यु होते देखी  जाती है | इस प्रकार से बिषाणुओं का भिन्न भिन्न लोगों पर अलग अलग प्रकार का प्रभाव पड़ते देख कर लगता है जिसके अंदर जैसी प्रतिरोधक क्षमता होती है वैसा उस पर असर होता है किंतु यह आंशिक सच हो सकता है अपितु संपूर्ण सच तो यही है कि बुरे समय के प्रभाव से जब प्रकृति पीड़ित होती है तब कोई महामारी पैदा होती है | ऐसे समय पर भी महामारी से प्रत्येक व्यक्ति उतना ही पीड़ित होता है जितना उसका अपना बुरा समय चल रहा होता है जिसका अपना समय बिल्कुल अच्छा चल रहा होता है वो सारा संक्रमण पचा जाते हैं और उन्हें एक दिन जुकाम तक नहीं होता है | यदि ऐसा न होता तो महामारी फैलने पर गरीब और मजदूर लोग संसाधनों के अभाव में महानगरों से पलायन प्रारंभ कर देते हैं उनकी संख्या लाखों में होती है सब बड़े बड़े झुंड बनाकर हजारों की भीड़ में एक साथ ही निकल पड़ते हैं जहाँ आपसी दूरी बनाकर रह पाना संभव ही नहीं होता है |उनमें यदि छुआछूत से संक्रमण फैलता तो हजारों की तादाद में वे मजदूर ही संक्रमित हो जाते |
     इसी  प्रकार से  महानगरों की घनीबस्तियों में छोटे छोटे घरों में बड़ी संख्या में जो मजबूर वर्ग रहता है एक छोटे छोटे कमरों में पाँच पाँच दस दस लोग एक साथ ही उठते बैठते सोते जागते खाते पीते देखे जाते हैं ऐसे स्थानों पर में घरों में तो भीड़ होती ही है गलियों में भी भारी भीड़ होती है सब एक दूसरे का स्पर्श कर रहे होते हैं ऐसे वर्ग की संख्या हजारों लाखों में नहीं अपितु करोड़ों में है | यदि लोग इस प्रकार से संक्रमित होने लगते तबतो संक्रमितों की संख्या करोड़ों में होती किंतु ऐसा होते तो नहीं देखा जाता है और न ही संक्रमितों की इतनी बड़ी संख्या ही होती है |



या जिसका अपना व्यक्तिगत समय जिस प्रकार का जितना बुरा चला रहा होता है


इसीप्रकार 
याँ अपने समय से समाप्त हुई हैं या
 इसी बीच जैसे ही महामारी समाप्त होने लगती है तो मान लिया जाता है कि उस वेक्सीन के प्रभाव से ही महामारी समाप्त हो रही है | 
    वैसे भी कोई महामारी हमेंशा तो रहती नहीं हैउसका अपना निश्चित समय होता है इसलिए वह अपने समय पर आती और समय सीमा तक ही रहती है इसके बाद अपने समय पर चली जाती है | ऐसा तब भी होते देखा जाता था 

क्या है कोरोना वायरस
  • कोरोना वायरस एक ऐसा वायरस है. जो जानवरों और इंसानों को बीमार कर सकता है।

  • डब्लूएचओ के मुताबिक बुखार, खांसी. सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याएं इसके प्रमुख लक्षण हैं।

बीमारी के लक्षण
  • कोरोना वायरस का संक्रमण होने पर बुखार, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ, नाक बहना और गले में खराश जैसी समस्या उत्पन्न होती है। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है, इसलिए इसे लेकर बहुत सावधानी बरती जा रही है।
  • इसके दूसरे देशों में पहुंच जाने की आशंका जताई जा रही है। भारत में भी इस बीमारी के कई पॉजीटिव मरीज पाए गए हैं, जिन्हें मेडिकल सुपरविजन में रखा गया है।
  • चीन के साथ ही जापान, थाईलैंड, सिंगापुर में भी कोरोना वायरस के मरीज मिले हैं।









 वैदिक विज्ञान की दृष्टि से यदि बिचार किया जाए तो देखा   सभी प्रकार की  महामारियाँ अपने समय से आती और जाती रही हैं


याँ और प्राकृतिक आपदाएँ दाओं से बचाव की दृष्टि से कितना सक्षम सिद्ध हुआ है विज्ञान
     लगभग 144 वर्ष बीत गए


 पूर्वानुमानों की आवश्यकता !   
     प्रकृति और जीवन से संबंधित घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना बहुत आवश्यक होता है |आज विज्ञान के महान सहयोग एवं वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम से बड़े बड़े रोगों की चिकित्सा करना तो संभव हो पाया है किंतु चिंता तब विशेष बढ़ जाती है जब सारे साधन उपलब्ध होने के बाद भी जरूरत पड़ने पर रोगियों को मिल नहीं पाते हैं|उसका कारण है पूर्वानुमान का आगे से आगे पता न होना |
      कईबार अचानक भयंकर रूप ले लेने वाले प्राणांतक रोगों से पीड़ित रोगियों के लिए अस्पताल पहुँच पाना तक मुश्किल हो जाता है कई रोगी तो रास्ते में ही प्राण छोड़ देते हैं या कई बार प्रारंभ में सामान्य से दिखने वाले रोग वास्तव में बहुत भयंकर होते हैं जिनकी शुरुआत सामान्य जुकाम बुखार से होती है ऐसे रोगों को अनजान के कारण लोग सामान्य ही समझने की भूल लगातार करते रहते हैं उसी प्रकार की चिकित्सा पर भरोसा करते हैं और आगे बढ़ते जाते हैं धीरे धीरे वे रोग बहुत भयंकर रूप धारण कर लेते हैं तब तक उन्हें बचाना चिकित्सा व्यवस्था के बश की भी बात नहीं रह जाती है |ऐसे रोगों की गंभीरता के विषय में यदि पहले से ही पूर्वानुमान लगा लेना संभव हो पाता तो परिणाम कुछ और अच्छे हो सकते थे | रोगों को इतना बढ़ने से बचाने के प्रयास तो किए ही जा सकते थे परिणाम कुछ  भी होता !ऐसी परिस्थिति में चिकित्सा से संबंधित अत्यंत उत्तम अनुसंधान भी उनके काम नहीं आ पाते हैं | वैदिक  विज्ञान के आधार पर सारे जीवन से संबंधित ऐसे पूर्वानुमान जन्म के समय के आधार पर कभी भी लगाए जा सकते हैं जो साठ से सत्तर प्रतिशत तक सच भी हो सकते हैं |
     इसी प्रकार से प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए ये सच है कि विज्ञान ने हमें अनेकों प्रकार के साधन उपलब्ध करवा दिए हैं जिससे कि बचाव कार्य बहुत आसान हो जाता है इसमें कोई संदेह नहीं है किंतु आँधी-तूफान ,वर्षा-बाढ़ और भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं के अचानक आक्रमण से बचाव कार्यों की व्यवस्था के लिए जो समय लग जाता है उससे जन धन की हानि को तुरंत कम कर पाना बहुत कठिन हो जाता है |ऐसी अचानक प्राप्त परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयारी करते करते  बहुत कुछ बिगड़ चुका होता है| जिससे वैज्ञानिकों के वे प्रभावी अनुसंधान उस समय समाज के उतने काम नहीं आ पाते हैं जितनी मदद उनसे ली जा सकती थी | ऐसी परिस्थिति में  रोग ,मनोरोग ,सामूहिक महामारियाँ आदि या आँधी-तूफान ,वर्षा-बाढ़ और भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं को रोक पाना संभव भले न हो पावे किंतु इनके विषय में पूर्वानुमान करने की क्षमता का विस्तार करना आवश्यक ही नहीं अपितु अपरिहार्य हो गया है !
     विज्ञान पर भरोसा करके केवल आशा के आधार पर अब बहुत अधिक समय बिताना ठीक नहीं होगा | इसके पूर्वानुमानों के लिए केवल आधुनिक विज्ञान के आश्वासनों पर समय और  अधिक निरर्थक बिताना ठीक नहीं होगा |अचानक प्रकट होने वाले रोगों पर और प्राकृतिक आपदाओं के अचानक आक्रमण करने पर सारे संसाधन लाचार से दिख रहे होते हैं उनका लाभ जितना लिया जाना चाहिए उतना मिल ही नहीं पाता है |
    चिकित्सा और प्राकृतिक आपदाओं के विषय में वैज्ञानिक अनुसंधानों का पूर्णतः लाभ लेने एवं पथ्य परहेज सतर्कता आदि प्रिवेंटिव प्रयोगों के द्वारा जन धन की हानि को कम करने के लिए पूर्वानुमानों की खोज किए जाने की बहुत बड़ी आवश्यकता है|जिससे रोगों और प्राकृतिक आपदाओं के प्रकट होने से पूर्व ही पथ्य परहेज सतर्कता आदि के द्वारा अधिक न बढ़ने देने के लिए प्रभावी प्रयास किए जा सकें एवं प्राकृतिक आपदाओं के विषय में समय रहते बचाव कार्यों के इंतजाम किए जा सकें |                                                                           
    वर्षा बाढ़ आँधी तूफान और भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने के बाद राहत और बचाव कार्यों में जितनी तत्परता वरती जाती है उससे कम आवश्यक नहीं होता है कि ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाकर जन जागरण पूर्वक एवं पहले से सावधान किए गए लोगों को स्वसुरक्षा पूर्वक बचाने का प्रयास किया जाए !इसके माध्यम से सरकार के द्वारा चलाए जा रहे आपदा राहत के लिए किए जाने वाले प्रयासों को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है         
     वर्षा बाढ़ आँधी तूफान और भूकंप  जैसी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में लगाए जाने वाले पूर्वानुमान यदि सही घटित होने लगें तो जन धन के मामले में होने वाली जन धन की क्षति को भारी मात्रा में घटाया जा सकता है इससे मानवता का बहुत बड़ा भला हो सकता है !

प्रकृति से संबंधित घटनाएँ  और उनके कारण-
    प्रकृति में कुछ घटनाएँ ऐसी घटित होती हैं जिनमें मनुष्यों द्वारा किए गए प्रयास सम्मिलित होने की कल्पना कर ली जाती है | जिनमें मनुष्यकृत प्रयासों का दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं होता है प्रकृति में बहुत सारी घटनाएँ ऐसी भी  घटित होती हैं कर्ता कौन होता है |अब यदि कुछ घटनाओं के घटित होने का कारण मनुष्यकृत प्रयासों को मान लिया जाए तो प्रश्न उठता है कि जिन प्राकृतिक घटनाओं में मनुष्यों की पहुँच दूर दूर तक नहीं है उनके   घटित होने का कारण क्या हैऔर यदि उनके घटित होने का कारण समय है तो संभव यह भी है कि जिन प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण  प्रयासों को माना जाता है वो घटनाएँ भी समय संविधान की दृष्टि से स्वयं होने वाली ही तो नहीं हैं जिसमें मनुष्य ने अपने प्रयासों को सम्मिलित करके घटनाओं के कर्ता होने का भ्रम पाल बैठा है | 
      भूकंप, आँधी-तूफ़ान, वर्षा-बाढ़  आदि सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ हमेंशा एक जैसी तो घटित नहीं होती हैं कभी होती हैं कभी नहीं होती हैं कभी कम होती हैं और कभी अधिक होती हैं कभी बिल्कुल नहीं होती हैं और कभी बार बार घटित होती हैं | यहाँ तक कि ग्रीष्म(गर्मी)में या शिशिर ऋतु में भी तापमान  हमेंशा बढ़ा हुआ या घटा हुआ ही नहीं रहता है और न ही एक जैसा रहता है उसमें भी तो कम और अधिक हुआ करता है |वर्षा ऋतु में प्रत्येक दिन वर्षा होते नहीं देखी जाती है | दूसरी बात हमेंशा एक जैसी वर्षा होते नहीं देखी जाती है कभी कम और कभी अधिक वर्षा होती है | किसी वर्ष में कम और किसी वर्ष में अधिक वर्षा होती है कुछ दशकों में अपेक्षाकृत कम जबकि कुछ दशकों में अधिक वर्षा होते देखी जाती है कुछ वर्ष ऐसे भी आते हैं जब वर्षा बिल्कुल न होने से सूखा पड़ जाता है | 
      इसी प्रकार से किसी वर्ष में आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ बहुत कम घटित होती हैं कुछ वर्षों में बहुत अधिक घटित होती हैं तो कुछ वर्षों में ऐसी घटनाएँ हिंसक हो जाती हैं  | जिन वर्षों में बार बार हिंसक आँधी तूफ़ान घटित होते देखे जाते हैं | 
     कुछ दिनों में वायु प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ जाता है तो कुछ दिनों में बिल्क़ुल नहीं बढ़ता जबकि मनुष्यों गतिविधियाँ तो लगभग एक जैसी हमेंशा चला  करती हैं | ऐसी परिस्थिति में वायु प्रदूषण बढ़ने और घटने का कारण क्या हो सकता है ?
     कुछ वर्षों के एक निश्चित कालखंड में कुछ विशेष प्रकार के रोग बहुत अधिक होते देखे जाते हैं जबकि कुछ वर्षों के उसी कालखंड में ऐसा कुछ होते नहीं देखा  जाता  है |
     कुछ वर्षों में कुछ वृक्षों में फलफूल बहुत अधिक फलते हैं जबकि कुछ वर्षों में वही पेड़पौधे बहुत कम फूलते फलते हैं | कुछ वर्षों में बसंत ऋतु आने पर अपनी ऋतु में भी कुछ आम जैसे वृक्षों को संपूर्ण स्वस्थ होने पर भी फूलते फलते कम या बिल्कुल नहीं देखा जाता है तो कई बार बिना अपनी ऋतु आए भी दूसरी ऋतुओं में भी कुछ वृक्षों में फूल फल लगते देखे जाते हैं | 
      कृषि क्षेत्र में भी यही स्थिति है प्रायः सभी खेतों में कृषि कार्यविधि ,बीज,खाद,सिंचाई आदि की दृष्टि से प्रत्येक वर्ष लगभग एक जैसी प्रक्रिया का पालन किया जाता है |ऐसा किए जाने पर भी पैदावार (उपज)किसी वर्ष अधिक तो किसी वर्ष कम होते देखी जाती है | इसके अतिरिक्त किसीवर्ष किसी एक प्रकार के धान्यों की पैदावार अधिक होते देखी  जाती है तो उसी वर्ष किसी दूसरे प्रकार के धान्य की पैदावार कम होते देखी जाती है |
       कुछ वर्षों के किसी समय विशेष में कुछ मनुष्यों समेत सभी प्राणियों के स्वभावों और शरीरों में रहन सहन अचार व्यवहार खानपान रूचि अरुचि में कुछ विशेष प्रकार के बदलाव होने लगते हैं जो उनके चिर परिचित स्वभाव रहन सहन आदि से अलग होते हैं | किसी वर्ष कुछ कीट पतंगों की बहुत आधिक बढ़ोत्तरी हो जाती है जो प्रकृति से लेकर कृषि एवं जीवन तक को हानि पहुँचाने लग जाते हैं जबकि अन्य दूसरे वर्षों में ऐसा होते नहीं देखा जाता है | 
     ऐसे सभी परस्पर विरोधी परिवर्तनों के होने का कारण क्या हो सकता है !वेदविज्ञान की दृष्टि से तो ऐसे सभी परिवर्तनों का कारण समय का संचार है समय जब जैसा आता है तब तैसे बदलाव प्रकृति के प्रत्येक अंश में होने लगते हैं | उन प्राकृतिक परिवर्तनों का अध्ययन करके बदलते हुए समय के संचार के संभावित गुण दोषों को समझा जा सकता है उसी समय के आधार पर भविष्य में घटित होने वाली प्रकृति और जीवन से संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | भूकंप वर्षा आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं के घटित होने न होने कम या अधिक होने का कारण भी समय ही है | समय को समझकर प्रकृति और जीवन से संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
 जीवन से संबंधित घटनाएँ  और उनके कारण- 
    जीवन में कुछ घटनाएँ ऐसी घटित होती हैं जिनमें अपने द्वारा किए गए प्रयास सम्मिलित होने को कारण अपने को कर्ता मान लिया जाता है जबकि जीवन में बहुत सारी घटनाएँ ऐसी भी  घटित होती हैं जिनमें अपने प्रयासों का दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं होता है |उनका कर्ता कौन होता है |अब यदि कुछ घटनाओं के घटित होने का कारण अपने प्रयासों को मान लिया जाए तो प्रश्न उठता है कि जीवन संबंधी जिन घटनाओं में अपनी पहुँच  दूर दूर तक नहीं होती है ऐसा वो व्यक्ति स्वयं स्वीकार भी करता है ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण क्या हैऔर यदि उनके घटित होने का कारण समय है तो संभव यह भी है कि जिन घटनाओं के घटित होने का कारण भ्रमवश अपने प्रयासों को माना जाता है वो घटनाएँ भी समय संविधान की दृष्टि से स्वयं होने वाली ही तो नहीं हैं जिसमें मनुष्य ने अपने प्रयासों को सम्मिलित करके घटनाओं के कर्ता होने का भ्रम पाल रखा है |क्योंकि मनुष्य में  यदि होने की क्षमता होती तो प्रत्येक कार्य उसकी इच्छा और प्रयासों के अनुशार ही होता जबकि ऐसा नहीं होता है बहुत सारे कार्य या बहुत सारी  घटनाएँ ऐसी भी घटित होती हैं जिनके विषय में मनुष्य कभी नहीं चाहता कि वे मेरे जीवन में घटित हों और न ही उनके लिए कोई प्रयास करता है फिर भी मनुष्यों की इच्छा के विपरीत ऐसी घटनाएँ उनके अपने जीवन में घटित होती हैं जहाँ उनका प्रयास बल बिल्कुल नहीं होता है | 
      कोई विद्यार्धी विद्या पढ़ने में या कोई व्यापारी व्यापार करने में कभी सफल होता है तो कभी असफल भी होता है | ऐसे में व्यक्ति का व्यापर वही रहता है प्रयास भी वैसे ही रहते हैं और परिश्रम भी उसीप्रकार का होता है इसके बाद भी नुकसान होते देखा जाता है | सबकुछ वैसा ही रहते हुए भी केवल समय के बदलने से नुक्सान होने लगता है | किसी व्यक्ति को कभी प्रसन्नता होती है तो समय बदलने पर दूसरे समय में उसे तनाव भी होता है | एक समय में कोई व्यक्ति जिससे प्रेम कर रहा होता है तो दूसरे समय में वह उसी से घृणा करने लगता है | बाकी सबकुछ वैसा ही रहने के बाद भी केवल समय के बदल जाने से संबंधों को बिगड़ते देखा जाता है | कोई दो स्त्री पुरुष एक दूसरे के प्रेम में समर्पित होकर एक दूसरे से विवाह कर लेते हैं तो दूसरे समय में उन्हीं दोनों लोगों को एक दूसरे से तलाक लेते देखा जाता है |
       इसीप्रकार स्वास्थ्य के विषय में भी है कोई सहज जीवन जीते  हुए बिना किसी कारण के भी अस्वस्थ होते देखा जाता है | ऐसी परिस्थिति में कई बार तो स्वास्थ्य इस स्तर तक गिरता चला जाता है कि मृत्यु तक होते देखी जाती है जिस पर किसी चिकित्सा का कोई असर नहीं होता है ऐसा होने के कारण अंत तक पता नहीं लग पाते हैं |बिषय में जो कुछ बताया जाता है कि इंफेक्शन फैल गया या अटैक पड़ गया या और भी बहुत सारे  कारण हैं जो गिना दिए जाते हैं किंतु  वे कारण किसी एक व्यक्ति के लिए ही क्यों बने उस समाज में या उस परिवार में उसीप्रकार की दिनचर्या खानपान आदि बहुत लोगों का एक जैसा रहा है किंतु उन सबके बीच इतनी बड़ी बीमारी का शिकार कोई एक व्यक्ति ही क्यों बना इसका कारण खोजा जाना चाहिए | 
     दूसरी बात वह एक व्यक्ति भी उसीप्रकार के खानपान रहन  सहन आदि का पालन करता हुआ अभी तक चला आ रहा था तब तो उसे कुछ भी नहीं हुआ सारा जीवन उसका उसीप्रकार के रहनसहन खानपान पथ्य परहेज आदि में बीता तब तो उसको कुछ भी नहीं हुआ अंत में हुआ तो जीवन ही ले गया |ऐसा होने का वास्तविक कारण ज्ञात हुए बिना उसके रोग और मृत्यु होने के बिषय में किसी भी प्रकार का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा  सकता है | 
    वेदविज्ञान की दृष्टि में इसका कारण समय को माना गया है जिस घटना के घटित होने का जो समय  है वह घटना उसी समय घटित होती है | इसीक्रम में किसी की मृत्यु का समय आ जाने पर उसकी मृत्यु होना निश्चित होता है| जब बहुत लोगों की मृत्यु का समय एक साथ आ जाता है तब कोई भूकंप  या कोई अन्य प्रकार की ऐसी दुर्घटना घटित होती है या महामारी फैलती है जिसमें बहुत सारे लोग मारे जाते हैं| 
     कुल मिलाकर मृत्यु का बहाना कुछ भी बन जाता है जबकि मृत्यु किसी बहाने के कारण नहीं अपितु अपने सुनिश्चित समय पर होती है | जो बहाना किसी एक व्यक्ति की मृत्यु का कारण मान लिया जाता है वही बहाना किसी दूसरे के जीवन में तो एक खरोंच भी नहीं लगने देता है | दूसरे लोग न केवल जीवित अपितु स्वस्थ भी बने रहते हैं | इसलिए जो कारण सब पर समान रूप से घटित होते न देखा जाए उसे न तो तर्कसंगत माना जा सकता है और न ही विज्ञान सम्मत | 
     ऐसी परिस्थिति में किसी घटना के घटित हो जाने के कारण ही उसके आगे पीछे की छोटी घटनाओं को उसकी मृत्यु का कारण मान लेना अनुसंधान भावना के विपरीत है | वैसे भी किसी की मृत्यु की घटना किसी बहाने की मोहताज नहीं होती वह तो समय की गति के साथ आगे बढ़ती जाती है और समय से ही घटित हो जाती है वह समय की अनुगामिनी है | जैसे माला के किसी मनके में कोई दाग लग गया  हो तो माला फेरते समय वह पहले बहुत दूर दिखाई पड़ता है बाद में पास आ जाता है क्रमशः एक समय हाथ में आ जाता है |उसीप्रकार से किसी के शरीर में रोग होने या मृत्यु होने की घटना एक दागदार मनके की तरह है जो समय रूपी माले में पिरोई हुई है और समय के साथ साथ आगे बढ़ते बढ़ते एक दिन घटित हो जाती है |
      समय इंजन  हैं प्रकृति और जीवन से जुड़ी मृत्यु समेत समस्त घटनाएँ उसके पीछे लगे हुए कोच हैं इंजन जैसे जैसे आगे बढ़ता जाता है वैसे वैसे उसमें लगे हुए कोच भी आगे बढ़ते जाते हैं इंजन रुक जाता है तो कोच भी रुक जाते हैं वो फिर चल देता है तो कोच भी चल देते हैं |इसी प्रकार से प्रकृति और जीवन से संबंधित समस्त घटनाएँ समय के आधीन होती हैं |
        यहाँ एक बात और याद रखनी चाहिए कि जिस प्रकार से सारे कोच इंजन के आधीन हैं वह इंजन चालक के आधीन होता है चालक चलाएगा तब तो इंजन चलेगा उसके पीछे कोच चलेंगे जब चालक ही नहीं चलाएगा तो इंजन नहीं चल पाएगा और इंजन नहीं चलेगा तो कोच कैसे चल पाएँगे | 
       प्रकृति और जीवन से संबंधित घटनाओं में चालक की भूमिका में ईश्वर होता है जो समय को संचालित करता है और समय के अनुशार घटनाएँ घटित होती चली जाती हैं | इस समय की गति को समझने समझकर सभी प्रकार की घटनाओं का पूर्वानुमान समय के आधार पर लगा लिया जाता है कि भविष्य में ऐसा ऐसा समय आएगा तब उस उस प्रकार की घटनाएँ घटित होते देखी जाएँगी | 

घटनाओं के घटित होने के कारण !
    प्रकृति और जीवन में जितनी घटनाएँ  घटित होती हैं उनके घटित होने का कोई न कोई सुनिश्चित कारण होता है  उस निश्चित कारण को जानकर ही उसके निवारण के बिषय में या उससे बचाव के उद्देश्य से कोई प्रभावी प्रयास किया जा सकता है |किसी घटना के घटित होने का निश्चित कारण पता होने के बाद हम उस घटना के विषय में पूर्वानुमान तो लगा ही सकते हैं इसके साथ ही साथ विश्वास पूर्वक इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि हम जिस उद्देश्य से यह प्रयास कर रहे हैं उसका परिणाम उसप्रकार का निकल आएगा जैसा कि हम चाहते हैं | 
    जिस प्रकार से शिशिर और बसंत ऋतु की संधि(मार्च अप्रैल) में सर्दी  जुकाम खाँसी जैसे रोगों से बहुत लोग परेशान होने लगते हैं |ऐसे समय कुछ उस तरह के लोग भी पीड़ित होते देखे जाते हैं जिन्हें वर्ष भर की अन्य ऋतुओं में इस प्रकार की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है केवल इसी समय में ही ऐसा होता है |इस लिए इसी समय में ऐसा क्यों होता है इसके निश्चित कारण का ज्ञान होने के बाद इसके बिषय में पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है और अगले वर्ष ऐसा न हो उसके लिए पहले से उपाय भी किया जा सकता है |
     दूसरी बात ऐसे समय में भी बहुतों को इस प्रकार की समस्याएँ होती हैं बहुतों को नहीं भी होती हैं ऐसी परिस्थिति में जिन कुछ लोगों को ही होती हैं बाक़ी लोगों को नहीं होती हैं ऐसा क्यों ? यदि इसका कारण ऋतु परिवर्तन ही है तो उसका असर सब पर समान रूप से पड़ना चाहिए और ऐसे समय में एक जैसे रोग सभी को होने चाहिए | ऋतु परिवर्तन का प्रभाव भी कुछ लोगों पर ही पड़ने का कारण क्या है ? इसका ज्ञान होना आवश्यक है | 
      तीसरी बात जिन कुछ लोगों के शरीर में ऋतुपरिवर्तन में ऐसे रोग जीवन के अधिकाँश वर्षों में होते हैं किंतु उनमें से कुछ वर्ष ऐसे भी होते हैं जिनमें उन्हें किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या नहीं होती है और वे स्वस्थ बने रहते हैं | ऐसी परिस्थिति में ऋतुपरिवर्तन के समय में भी प्रत्येक वर्ष में उन्हें स्वास्थ्य समस्या न होने का कारण क्या है ?ऋतुपरिवर्तन तो प्रत्येक वर्ष होता है फिर प्रत्येक वर्ष एक जैसा अस्वस्थ न होने का कारण क्या है ? 
     चौथी बात कुछ लोगों के शरीर का ऐसा स्वभाव होता है कि वे कुछ खा लेते हैं तो उन्हें सर्दी  जुकाम खाँसी या कुछ अन्यप्रकार की स्वास्थ्य समस्याएँ होते देखी जाती हैं जबकि उसी प्रकार का भोजन कुछ दूसरे लोग कर रहे होते हैं उन्हें उस प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है | यह दोष यदि भोजन के पदार्थ का मान लिया जाए तो इसका प्रभाव प्रत्येक उस व्यक्ति पर पड़ना चाहिए जो उस प्रकार के भोजन को ले रहा है | किंतु ऐसा न होने का कारण क्या है ?
     चौथी बात किसी एक प्रकार के प्राकृतिक वातावरण का सेवन कर लेने से कुछ लोगों को उसप्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है बहुतों को उसीप्रकार के प्राकृतिक वातावरण में रहकर भी उन्हें ऐसी समस्याओं का सामना नहीं भी करना पड़ता है |
     ऐसी परिस्थिति में एक जैसे वातावरण में रहने के बाद भी उनमें से कुछ लोगों को स्वास्थ्य समस्याएँ होने और कुछ को न होने का कारण क्या है ? यदि दोष वातावरण का है तो उसका असर दोनों पर एक सामान होना चाहिए जबकि ऐसा होते नहीं देखा जाता है इसका कारण क्या है ? 
    ऐसे सभी कारणों की खोज कर लेने के बाद ही इससे संबंधित पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं और ऐसी स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा न हों इसके लिए उपाय किए जा सकते हैं और यदि पैदा हो भी जाऍं तो उससे बचाव कैसे किया जाए उसके लिए आवश्यक चिकित्सा का लाभ लिया जा सकता है किंतु यह सबकुछ तभी संभव है जब सभी परिस्थितियों के कारण खोज लिए गए हों |
      इस प्रकार के कारणों की खोज प्रकृति और जीवन से संबंधित प्रत्येक घटना के बिषय में की जानी चाहिए उसके बिना उसके बिषय में न तो पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और न ही उससे बचाव का मार्ग खोजा  जा सकता है |
पूर्वानुमानों से होने वाले लाभ !
     समय के गर्भ में होने के बाद भी सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ घटित होने के तीन से छै महीने पहले  बननी शुरू हो जाती हैं जिनके सूक्ष्म लक्षण प्राकृतिक परिवर्तनों में दिखने शुरू हो जाते हैं उनका निर्माण जब आधे से अधिक हो चुका होता है तब उन्हें घटित होने से रोक पाना  बहुत कठिन होता है इसलिए किसी भी रोग मनोरोग या प्राकृतिक आपदा के आने से पहले ही यदि उसके आने की आहट पता लगाई जा सके अर्थात पूर्वानुमान किया जा सके  और  उस प्राकृतिक आपदा ,रोगों या मनोरोगों के निवारण के लिए प्रिवेंटिव प्रयास किए जाएँ जो संभव है कि प्राकृतिक आपदाओं रोगों और मनोरोगों तनावों आदि के वेगों को बहुत हद तक कमजोर किया जा सकता है |


पूर्वानुमानों का आधार
     पूर्वानुमान तो समय के आधार पर ही लगाया जा सकता है क्योंकि घटनाएँ समय के अनुशार ही घटते देखी जाती है |'समयविज्ञान' जैसी किसी भी चीज पर आधुनिक विज्ञान भरोसा नहीं करता है समय संबंधी पूर्वानुमानों को आधुनिक वैज्ञानिक किस दृष्टि से देखेंगे मुझे नहीं पता ! किन्तु भविष्यवाणी और  पूर्वानुमान के क्षेत्र में आधुनिक विज्ञान के पास अभी तक ऐसा कोई सुदृढ़ आधार है ही नहीं जिसके बल पर दृढ़ता पूर्वक मौसम संबंधी या भूकंप संबंधी कोई पूर्वानुमान लगाया जा सके !समय वैज्ञानिक दृष्टि से मैं कह सकता हूँ कि मौसम से लेकर भूकंप तक और मानव जीवन से जुड़े समस्त विषयों पर पूर्वानुमान संबंधी विषयों में आधुनिक विज्ञान की कोई भूमिका है ही नहीं !आधार विहीन तीर तुक्कों को विज्ञान नहीं माना जा सकता है |  उपन्यासों की कहानियों से ज्यादा कल्पित होते हैं मौसमविज्ञान  के द्वारा किए जाने वाले मौसम संबंधी पूर्वानुमान !
     वस्तुतःमौसम आदि प्राकृतिक घटनाएँ एवं सभी प्रकार के शारीरिक या मानसिक रोग समय का ही विषय हैं और समय की गणना सूर्य और चंद्र की गति के आधार पर की जाती है सूर्य और चंद्र  की गति सिद्धांत गणित के सुदृढ़ सूत्रों से गुँथी हुई है जिनमें  गलती की कोई गुंजाइस ही नहीं होती है | जिस सिद्धांतपक्ष के द्वारा सूर्य और चंद्र ग्रहणों की गणित की जाती है और एक एक सेकेण्ड सही निकलती है उन्हीं से मौसम संबंधी गणित की जाए तो पूर्वानुमान बड़ी सीमा तक सटीक घटित हो सकते हैं ! उसी के आधार पर प्राचीन काल में चिकित्सा से लेकर प्राकृतिक आदि सभी परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगाया जाता रहा है |
        भविष्यवाणी हो या पूर्वानुमान इनका आधार एक मात्र समय होता है क्योंकि संसार की अच्छी बुरी सभी घटनाएँ समय के अनुशार ही घटित हो रही होती हैं इन सबका एक कालक्रम बना हुआ है उसी के अनुशार सारी घटनाएँ घटती चली जा रही हैं !सभी प्रकार की घटित होने वाली घटनाओं को समझने के लिए समय चक्र को समझना बहुत आवश्यक है |
     प्रकृति विधान से ये सब कुछ होना बहुत पहले से सुनिश्चित हो चुका होता है कोई माध्यम बने न बने ये उसकी इच्छा किंतु घटनाएँ तो समय के अनुशार घटेंगी ही और घटती ही रहती हैं वो मनुष्य कृत प्रयासों के आधीन नहीं होती हैं यदि ऐसा न होता तो जो मनुष्य को अच्छा लगता वैसी ही घटनाएँ घटित होतीं जो अच्छा न लगता वैसी घटनाएँ होतीं ही नहीं किंतु ऐसा न होने का कारण समय सब कुछ स्वयं करता जा रहा है उसमें से जो कुछ करने के लिए हम प्रयास कर रहे होते हैं यदि वैसा हो जाता है तो उसे हम अपने द्वारा  किया  हुआ मान लेते हैं और जो कुछ ऐसा हो जाता है जिसके लिए प्रयास हम नहीं कर रहे होते हैं फिर भी वो हो जाता है उसे टालने का प्रयास करने पर भी उसे घटित होते देखा जाता है वो हमारे लिए हानिकरक या हमारी इच्छा के विरुद्ध हो रहा होता है वो समय प्रेरित होने के कारण टलता नहीं है !
     कई चिकित्सकों के द्वारा सघन चिकित्सा करने के बाद भी रोगियों की मृत्यु होते देखी जाती है ऐसे समय चिकित्सक निरुत्तर हो जाते हैं कुछ लोग तो ऐसे विपरीत परिणामों के लिए समय भाग्य कुदरत या परमात्मा को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं जबकि यदि वैसा हो जाता जैसा वो चाह रहे थे या जिसके लिए प्रयास कर रहे थे तब तो उसके होने का संपूर्ण श्रेय (क्रेडिट)वे स्वयं ले लेते और अपने द्वारा किए जाने वाले प्रयासों की पीठ थपथपाने लग जाते !  
     ‘समय’ के क्षेत्र में सूर्य चंद्र आदि ग्रहों  की भूमिका !    
   सूर्य चंद्र आदि ग्रहों के अनुसार समय चलता है वर्ष अयन ऋतुएँ महीना पक्ष तिथियाँ सर्दी गर्मी वर्षात आदि मौसम एवं मौसम संधियाँ सब सूर्य और चंद्र की गति के अनुशार ही बनती हैं इन्हीं दोनों के प्रभाव प्रदान से जल और वायु अर्थात जलवायु का निर्माण होता है ! वस्तुतः वायु वर्षा एवं भूकंप आदि के कारण तो सूर्य चंद्र ही हैं |प्रकृति में घटित होने वाली हर घटना की जड़ में सूर्य और चंद्र का प्रभाव ही होता है !समुद्र में उठने वाली लहरें ज्वार भाँटा एवं भूकंप आदि घटनाएँ सूर्य और चंद्र के प्रभाव से ही घटित हो रही हैं |
    इसलिए सूर्य और चंद्र पर
समय का पड़ने वाला प्रभाव एवं समय का प्रकृति पर पड़ने वाला प्रभाव,प्रकृति का मौसम पर पड़ने वाला प्रभाव एवं मौसम का स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव तथा इन सभी के द्वारा मन पर पड़ने वाले संयुक्त प्रभाव को समझने के लिए  इनके पारस्परिक संबंधों एवं एक दूसरे पर पड़ने वाले असर को आधार बना कर वैदिक विद्या से शोध किया जा सकता है| सूर्य और चंद्र  की गति युति संस्कृति विकृति आदि के साथ समय एवं समय के साथ मौसम और मौसम के साथ सीधा संबंध होने के कारण सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं एवं  सभी प्रकार के रोगों के प्रमुख कारणों पर ध्यान दिया जाना चाहिए |
      सूर्य और चंद्र ही इसके प्रमुख कारण हैं | सूर्य और चंद्र के संचार का पूर्वानुमान यदि गणित के द्वारा लगाया जा सकता है तो इन्हीं के द्वारा निर्मित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं ,आपदाओं और रोगों का पूर्वानुमान भी गणित के द्वारा ही लगा लिया जाए तो इसमें आश्चर्य  क्यों होना चाहिए !आकाशस्थ ग्रहणों का पूर्वानुमान भी तो सैकड़ों वर्ष पहले ही केवल गणित  के सिद्धांतों के द्वारा ही किया जाता रहा है |रोग मनोरोग सामूहिक रोग एवं मौसम और भूकंप संबंधी पूर्वानुमानों को गणित के द्वारा संबद्ध करके शोधपूर्वक समय विज्ञान के अनुशार गणित विधा से  इनका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं है | यद्यपि बहुत आसान वो भी नहीं हैं किंतु श्रमसाध्य है और अर्थसाध्य तो है  और शोध पूर्वक वास्तविकता तक पहुँचा जा सकता है !                         
    समय के अनुशार प्रकृति और प्रकृति  के अनुशार समाज शासन एवं सरकार -
      प्राकृतिक समय जब अच्छा होता है तो सभी ऋतुएँ उचित मात्रा में सर्दी गर्मी वर्षात के द्वारा चराचर जगत का पोषण करती हैं प्रकृति अच्छी मात्रा में पेड़ पौधे फल फूल फसलें शाक आदि उत्पन्न करने लगती  है आरोग्यता प्रदान करने वाली उत्तम वायु बहने लगती है सभी स्त्री पुरुष स्वाभाविक रूप से  प्रसन्न रहने लगते हैं सब कुछ अच्छा अच्छा होता चला जाता है! लोगों की सोच सात्विक अर्थात अच्छी बनने लगती है लोग पुराने मुद्दे निपटाने के प्रयास करने लगते हैं वर्षों की बुराइयाँ समाप्त होने लगती हैं टूटी हुए नाते रिस्तेदारियाँ समय के प्रभाव से जुड़ने लगती हैं विखरता समाज फिर से संगठित होने  लगता है परिवारों में समरसता बढ़ते देखी जाती है समाज से हिंसक प्रवृत्तियाँ समाप्त होने लगती हैं ! ऐसी सभी अच्छाइयाँ समाज में प्रत्येक 12 वर्षों में स्वाभाविक रूप से अपने शीर्ष स्तर पर होती हैं फिर 6 वर्षों तक ये सभी प्रकार की अच्छाइयाँ क्रमशः धीरे धीरे घटती चली जाती हैं उसके बाद यही अच्छाइयाँ एक एक कला बढ़ते बढ़ते क्रमशः 6 वर्षों में अपने शीर्ष स्थान अर्थात पूर्ण रूप से अच्छे प्रभाव में पहुँच जाते हैं ये क्रम अनवरत चला करता है !जैसे जैसे अच्छाइयाँ घटती जाती हैं वैसे वैसे क्रमशः बुराइयाँ बढ़ती चली जाती हैं !तब इसी समाज में उनके लक्षण अधिकता में दिखाई देने लगते हैं विपरीत होने पर आँधी तूफान सूखा बाढ़  और  भूकंप आदि प्राकृतिक उपद्रव अधिक होते देखे जाते हैं सामूहिक महामारी रोग आदि पैदा होने लगते हैं पेड़ पौधे फल फूल फसलें शाक आदि सब कुछ नष्ट होने लगते हैं !समाज में उन्माद फैलने लगता है अपराध की मात्रा बढ़ती चली जाती है फसलें धोखा देने लगती हैं सामाजिक संघर्ष कलह आदि बढ़ते  दिखाई पड़ने लगते हैं !
        इसी प्रकार  समय के प्रभाव से जैसे जैसे समयजन्य अच्छाइयाँ अर्थात सात्विकता धीरे धीरे घटते घटते  क्रमशः जब अपने सबसे निचले स्तर पर पहुँच जाती है वैसे वैसे बुराइयाँ बढ़ती चली जाती हैं और 6 वर्षों में वे क्रमशः अपने सबसे ऊपरी स्तर पर पहुँच चुकी होती हैं उसके बाद वे क्रमशः 6 वर्षों में घटती चली जाती हैं और अच्छाइयाँ  अपने सबसे ऊपरी स्तर पर पहुँच जाती हैं इस प्रकार से हर अच्छा और बुरा समय एक दूसरे का विरोधी होने के कारण एक दूसरे के विपरीत ही चलता जाता है !ये प्रत्येक 12 -14 वर्षों में दोनों प्रकार के समय अपना एक चक्र पूरा करके अपने पुराने स्थान पर पहुँच जाते हैं !
     समय की अच्छाई और बुराई जाँचने परखने के लिए इसके अलावा तीन प्रकार और होते हैं उसमें से एक प्रकार लगभग 30 वर्ष में अपना चक्र पूरा कर लेता है ,दूसरा प्रकार एक वर्ष में एवं तीसरा प्रकार 25 -30 दिनों में अपना चक्र पूरा कर लेता है!ऐसे सभी चक्रों में समय की दृष्टि से लगभग एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत समय की अच्छाई और बुराई के दो ध्रुव होते हैं जो क्रमशः परस्पर विरोधी समयों में आते हैं और विरोधी प्रभाव छोड़ते चले जाते हैं !जैसे जैसे एक बढ़ता जाता है वैसे वैसे दूसरा घटता जाता है !इनका समय लगभग निश्चित होता है इसी प्रकार से कुछ अनिश्चित समय भी होते हैं किंतु पूर्वानुमान उनका भी लगाया जा सकता है !
       समय चक्र के अनुशार जब जैसे जैसे अच्छे समय का प्रभाव बढ़ता चला जाता है तो समाज में सभी प्रकार की अच्छाइयाँ विकास संतोष सात्विकता आदि बढ़ती चली जाती है बादल समय पर उचित मात्रा में जलवृष्टि करते हैं फल फूल फसलें अन्न शाक आदि भरपूर मात्रा में पैदा होने के कारण समाज में स्वाभाविक खुशहाली का वातावरण बन रहा होता है ऐसे समय में जिस दल की जो सरकारें सत्ता में होती हैं वो काम कम भी करें तो भी समाज उन पर दोषारोपण नहीं करता है अपितु अपनी व्यवस्थाओं से संतुष्ट होता है !समय अच्छा होने के कारण अधिकाँश लोग खुशहाल संतोषी एवं अच्छा अच्छा सोच जाने वाले होते हैं !उनकी खुशहाली का श्रेय सरकार ले जाती है यदि ऐसे समय कोई चुनाव हो जाए तो उसी दल की सरकार को दुबारा आने का अवसर मिल जाता है !
    इसी प्रकार से समय चक्र के अनुशार जब जैसे जैसे बुरे समय का प्रभाव बढ़ता चला जाता है तो समाज में सभी प्रकार की बुराइयाँ विकार असंतोष असात्विकता आदि बढ़ती चली जाती है बादल समय पर या तो बरसते नहीं हैं या फिर उचित मात्रा में जलवृष्टि नहीं करते हैं इस कारण फल फूल फसलें अन्न शाक आदि भरपूर मात्रा में नहीं पैदा हो पाते हैं इससे समाज में स्वाभाविक खुशहाली का वातावरण नहीं बन पाता है आराजकता असंतोष आपराधिक एवं उन्मादी वातावरण बनता चला जाता है !बुरे समयजन्य ऐसे सभी विकारों के लिए समाज वर्तमान सरकार को ही जिम्मेदार ठहरा लेती है ! ऐसे समय में जिस दल की जो सरकारें सत्ता में होती हैं जनता का आक्रोश उन्हीं पर निकलने लगता है उसकी अपनी व्यवस्थाएँ जो समय के कारण बिगड़ रही होती हैं उसके लिए भी वो जनता को जिम्मेदार ठहरा रहा होता है !ऐसी सरकारें काम कितना भी अच्छा और अधिक कर रही होती हैं तो भी अपनी व्यवस्थाएँ बिगड़ जाने के कारण उनके प्रति समाज के मन में आक्रोश अधिक बढ़ता चला जाता है ! समाज उन पर न केवल दोषारोपण किया करता है अपितु अपनी व्यवस्थाओं से असंतुष्ट होने के कारण सरकार को ही कटघरे में खड़ा किया करता है !
                    साधन महत्त्वपूर्ण है या समय ?
    साधन और समय इन दोनों का जीवन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है !जीवन के किसी भी क्षेत्र में प्रयास करने के लिए हमें साधन चाहिए और उसका परिणाम समझने के लिए हमें भाग्य को समझना होगा क्योंकि जो चीज हमारे भाग्य में बदी होगी उसे ही हम प्रयास पूर्वक प्राप्त कर सकते हैं किंतु जो सुख सफलता आदि हमारे भाग्य में बदी ही नहीं होगी उसके लिए कितना भी परिश्रम पूर्वक प्रयास क्यों न किया जाए वो हमें नहीं ही मिलेगी !इस प्रकार से 'समयविज्ञान' के द्वारा पूर्वानुमान लगाकर यह जाना जा सकता है कि हमें जीवन के किस क्षेत्र में प्रयास पूर्वक कितनी सफलता मिल सकती है तथा इसका पूर्वानुमान केवल समय विज्ञान के द्वारा ही लगाया जा सकता है !
      
 स्वास्थ्य और समय -            प्रकृति से लेकर शरीर तक की सभी घटनाएँ समय के अनुशार घटित होती हैं इसलिए पूर्वानुमानों के विज्ञान को विकसित करने के लिए समय और परिस्थिति दोनों पर शोध होना चाहिए केवल परिस्थितियों पर नहीं | दोनों का अनुपात भी आधा आधा है इसलिए समय के प्रभाव को समझे बिना केवल  चिकित्सकीय आधार पर पूर्वानुमान लगा पाना संभव ही नहीं है सभी प्रकार की अच्छी बुरी घटनाएँ समय के गर्भ में घटित होती हैं और समय को ही भुला दिया जाए तो  घटनाओं के अनुभवों के आधार पर भावी घटनाओं का पूर्वानुमान करना सही नहीं होगा क्योंकि हो सकता है वो पहले वाली घटनाओं से अलग हों !इसलिए पूर्वानुमानों का आधार समय और परिस्थिति दोनों को बनाया जाना चाहिए |

        आधुनिक विज्ञान और पूर्वानुमान
       कई विषयों में अनेक आधुनिकवैज्ञानिक पद्धति से शोध करने  के लिए बहुत परिश्रम किया जाता है बड़े साधनों का उपयोग होता है बहुत सारा धन खर्च किया जाता है सरकार भी उसमें बहुत रूचि लेती है इसीलिए सफलता भी मिलती है इसमें भी कोई संदेह नहीं है इसी कारण से लोगों का विश्वास विज्ञान पर बना हुआ है| 
    इसके साथ साथ हमें एक इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है कि जो विषय आधुनिकविज्ञान से संबंधित हैं उसमें तो आधुनिकविज्ञान बहुत अच्छा कार्य कर ही लेता है किंतु जो विषय आधुनिकविज्ञान से संबंधित नहीं होते हैं उनमें आधुनिकविज्ञान  की कोई विशेष भूमिका नहीं होती है |मौसम आदि ऐसे प्रकरणों में भी विज्ञान के नाम पर व्यक्त किए जाने वाले पूर्वानुमान संबंधी संकेत वैज्ञानिक कम अपितु तीर तुक्के  अधिक लगते हैं क्योंकि उनका कोई सुपुष्ट आधार नहीं होता है इसलिए वो प्रायः झूठ निकल जाते हैं जो विज्ञान के नाम पर शोभा नहीं देते !क्योंकि विज्ञान सिद्धांतसूत्रों  से निबद्ध है !जहाँ दो दो मिलकर चार होते ही हैं ऐसी ही आशा मौसम संबंधी पूर्वानुमानों के संबंध में भी की जाती है किंतु इन विषयों  से विज्ञान के नाम पर की जा रही भविष्यवाणियाँ विश्वसनीय नहीं लगती हैं क्योंकि वो अक्सर सच होते नहीं देखी जाती हैं  |

आखिर क्यों उठते हैं खतरनाक तूफ़ान 
    विषयों वैज्ञानिक अध्ययनों ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि जैसे जैसे समुद्रीजल गरम होता जाएगा समुद्र से उठाने वाले तूफानों की भयावहता बढ़ती जाएगी !1979 से 2017 के बीच यदि देखा जाए तो अधिक रफ़्तार वाले घटक तूफानों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है भौतिक विज्ञान पहले ही इस तथ्य को उजागर कर चुका है कि समुद्र यदि एक डिग्री सेल्सियस गरम होता है तो उस पर चलने वाली हवाओं में पाँच से दस प्रतिशत वृद्धि हो  जाती  है अब यह सवाल है कि समुद्र का तापमान बढ़ता क्यों है तो वही उत्तर मिलता है कि पर्यावरण में ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन के कारण पृथ्वी गरम हो रही है ! 
      ऐसी परिस्थिति में 20 मई 2020 को कलकत्ता उड़ीसा आदि में आए भयंकर चक्रवाती तूफ़ान का कारण क्या है !इस समय तो विश्व के अधिकाँश देशों में महीनों से चल रहे लॉक डाउन के कारण उत्सर्जन में कमी आई है बताया जा रहा है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पहली बार लॉकडाउन के कारण दुनियाभर में कार्बन डाइऑक्साइड के रोजाना होने वाले उत्सर्जन में 17 प्रतिशत तक की कमी आई है |इसलिए वातावरण प्रदूषण मुक्त हुआ है नदियों का जल स्वच्छ हुआ है |यहाँ तक कि ओजोन परत में सुधार आ रहा है लेकिन धीरे-धीरेवह छेद भी बंद हो गया जिसके लिए बढ़ते वायु प्रदूषण को जिम्मेएदार माना जाता था |  मार्च अप्रैल मई आदि के महीनों में अक्सर वर्षा होते रहे के कारण तापमान अन्य वर्षों की तह इसवर्ष बढ़ने नहीं पाया है वायु प्रदूषण भी अत्यंत कमजोर स्थिति में रहा है | 
     इन सबके बाद भी 20 मई 2020 को कलकत्ता उड़ीसा आदि में आए भयंकर चक्रवाती तूफ़ान के निर्माण का कारण क्या है? 

 

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