इसके बाद 16 दिसंबर को प्रकाशित -"संपूर्ण विश्व के साथ ही ब्रिटेन में भी कोरोना संक्रमण घट रहा था, लेकिन अब अचानक से मामले बढ़ने लगे हैं और इसकी वजह है ब्रिटेन में मिला कोरोना का एक नया प्रकार। दरअसल, ब्रिटेन के कुछ हिस्सों में कोरोना वायरस का एक नया प्रकार पाया गया है जो तेजी से फैल रहा है। इस वजह से ब्रिटेन में अब तक का सबसे सख्त लॉकडाउन लगाया गया है।"see more... https://www.amarujala.com/photo-gallery/lifestyle/fitness/covid-19-how-dangerous-is-new-variant-of-coronavirus-identified-in-britain
- Last updated: Tue, 08 Dec 2020 12:21 AM मदन जैड़ा,नई दिल्ली | Published By: Rakesh Kumarलक्षणों के आधार पर कोरोना मरीजों की पहचान संभव नहीं, स्टडी में आया सामनेsee more...https://www.livehindustan.com/national/story-coronavirus-patient-symptoms-medical-study-reveal-3671926.html
वैक्सीन : 1. https://sahjchintan.blogspot.com/2020/07/korona-3.html 2. https://sahjchintan.blogspot.com/2020/07/korona-3.html
विज्ञान है या अंधविश्वास:https://jyotishvigyananusandhan.blogspot.com/2020/10/blog-post_14.html
कोरोना से जूझता समाज और असहाय विज्ञान !:https://snvajpayee.blogspot.com/2020/09/korona-3.html
वैक्सीन पर संशय !
चिकित्सा का सिद्धांत है कि रोग और रोगी को अच्छी प्रकार से समझे बिना किसी सामान्य रोग की भी चिकित्सा नहीं की जा सकती है फिर महामारी जैसी भयंकर स्वास्थ्यआपदा से मुक्ति दिलाने वाली औषधि(वैक्सीन)आदि बना लेने की कल्पना कैसे की जा सकती है |
किसी भी महामारी का जन्म होने का कोई न कोई निश्चित कारण अवश्य होता है वह निश्चित कारण मनुष्यकृत है या प्राकृतिक है !उसमें संक्रमकता कितनी है वेग कितना है और विस्तार कितना है उसके प्रसार का माध्यम क्या है आदि बिषयों पर अनुसंधान पूर्वक निर्विकल्प निश्चित तथ्यों की खोज किए बिना किसी औषधि(वैक्सीन)आदि का निर्माण कैसे संभव है |
महामारी से संक्रमित हुए रोगियों में किस किस प्रकार के कुछ संभावित लक्षण हो सकते हैं चिकित्साविज्ञान के विविध माध्यमों के द्वारा ऐसे लक्षणों की अनुसंधानपरक जानकारी के होनी चाहिए |
उपर्युक्त बिषयों की वास्तविकता समझने के बाद ही महामारी से बचाव के लिए उपाय खोजे जा सकते हैं एवं तभी महामारी से मुक्ति दिलानेवाली औषधियों के निर्माण की परिकल्पना की जा सकती है |
महामारियों के जन्म देने वाला प्रथम कारण या तो वातावरण अर्थात वायु में विद्यमान होता है और या फिर मनुष्यादि जीवों में विद्यमान होता है | यदि वातावरण में विद्यमान होता है तब तो वातावरण में जब तक रहेगा तब तक महामारी से मुक्ति मिलना संभव कैसे हो सकता है | यदि ऐसा हो भी जाए तो वातावरण में विद्यमान जो कारण सर्वांग स्वस्थ व्यक्ति को एक बार संक्रमित कर सकते हैं वातावरण में उन कारणों के विद्यमान रहते हुए किसी औषधि आदि के प्रभाव से किसी रोगी के स्वस्थ होने की परिकल्पना कैसे की जा सकती है |
ऐसी महामारियाँ यदि एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य के संपर्क में आने से बढ़ती है तो सबसे पहले किसी व्यक्ति में संक्रमण कैसे प्रारंभ हुआ होगा !इसका निश्चित ज्ञान होना चाहिए !दूसरी बात किसी भी एक संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने कारण जिस प्रकार से बहुत लोग संक्रमित हो सकते हैं उसी प्रकार से उन बहुत लोगों से बहुत लोग संक्रमित क्यों नहीं हो सकते हैं ?
किसी महामारी का संक्रमण यदि पशुओं पक्षियों नदियों पेड़ों शाक सब्जियों फलों फूलों आदि खाद्यपदार्थों के अंदर तक पहुँच चुका हो तो ऐसी परिस्थिति में उन्हीं खाद्यपदार्थों को खाकर कोई व्यक्ति स्वस्थ कैसे रह सकता है |
किसी एक द्वारा यदि किसी महामारी जब तक यों का संक्रमण यदि
यदि मनुष्यकृत है या प्राकृतिक है तो उसकी
सबसे पहले किसी रोग और रोगी को समझा जाए !उस रोग का वेग उसकी संक्रमण क्षमता की जानकारी एवं संक्रमण को सह पाने की रोगी की क्षमता का सम्यक परीक्षण किया जाए इसके बाद
और विभिन्न परिस्थितियों के आधार पर
भूमिका
सरकारें जनता से टैक्स के माध्यम से धन लेकर जनता की सुख सुविधा संपन्नता आरोग्यता सुरक्षा आदि सुनिश्चित करने के लिए अनेकों प्रकार से काम किया करती हैं | इस बिषय में तरह तरह के वैज्ञानिक अनुसंधान भी करवाया करती हैं | ऐसे कार्यों पर व्यय होने वाला संपूर्ण खर्च जनता के द्वारा दिए गए धन से सरकारें खर्च किया करती हैं | टैक्स रूपी धन लेने जनता के दरवाजे पर चूँकि सरकारें जाती हैं इसलिए जनता के प्रति जवाबदेही भी सरकारों की ही बनती है |
जवाबदेही सुनिश्चित करने वाली ईमानदार एवं पारदर्शी सरकारें जितना धन जिन जिन विभागों से संबंधित कार्यों या अनुसंधानों पर खर्च किया करती हैं उन विभागों से संबंधित कार्यों अनुसंधानों की आवश्यकता पड़ने पर सरकारें जनता को उचित एवं संतोष जनक उत्तर देने के लिए उन विभागों से उस बिषय में उनके द्वारा किए गए कार्यों अनुसंधानों योगदानों के बिषय में जानकारियाँ जुटाकर जनता तक पहुँचाती हैं इससे शासकों और शासितों का आपसी विश्वास सुदृढ़ बना रहता है |जो लोकतांत्रिक पद्धति के संचालन के लिए अतीव आवश्यक है |
वर्तमान समय की कोरोना महामारी एक बहुत बड़ी आपदा है जिससे जनता स्वयं अकेली जूझ रही है सरकारों के द्वारा किए गए प्रयासों एवं चिकित्सा संबंधी अनुसंधानों से जनता को कोई विशेष मदद नहीं मिल सकी है | सन 2020 का पूरा वर्ष ही संपूर्ण मानव समाज के लिए अत्यंत दुखदायी सिद्ध हुआ है | यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि संपूर्ण विश्व एक वर्ष से किसी कैदी से ज्यादा डरा सहमा आशंकाओं से ग्रस्त जीवन जीने पर विवश है | रोजीरोजगार समाप्तप्राय है |
ऐसी परिस्थिति में विश्व के देशों की सरकारी शक्तियों के सामने दो बड़ी चुनौतियाँ हैं |पहली तो जनता की मदद करके उसे पहले की तरह ही दोबारा खड़ा करना है ताकि वे अपने रोजी रोजगार में अधिक से अधिक व्यस्त होकर अपनी रोजी रोजगार का संचालन पुनः प्रारंभ करके शीघ्रति शीघ्र इतना अधिक व्यस्त हो जाएँ कि महामारी की त्रासदी को भूल सकें !
दूसरी बड़ी चुनौती यह है कि समाज से इस महामारी का सामना अचानक हुआ है जिसका कोई पूर्वानुमान चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा पहले से बताया नहीं गया था !इसलिए अब जनता के मन में ऐसा डर पैदा होना स्वाभाविक ही है कि कोरोना जैसी कोई अन्य महामारी दोबारा न जाने कब अचानक आवे और कोई भयानक रूप ले ले |उसके बिषय में हमें कोई पहले से अग्रिम सूचना देगा इसकी तो आशा अब बची नहीं है यदि कोई दे भी तो उन पूर्वानुमानों पर अचानक विश्वास कैसे किया जा सकेगा |
इसीप्रकार से कोरोना महामारी काल में अपने चिकित्सा वैज्ञानिकों को जिस असहाय अवस्था में जनता ने देखा है कि वो जनता की मदद करने के लिए अपनी जानपर खेलते रहे किंतु चाहकर भी न तो जनता की मदद के लिए उनके पास कोई अग्रिम तैयारियाँ थीं न कोई जानकारी थी और न ही कोई औषधि ही थी जिसके द्वारा वे जनता की मदद पहुँचा पाते | कोई कुछ भी नहीं कर पा रहा था !केवल महामारी ही जोकुछ कर रही थी वही होता जा रहा था उसे ही स्वीकार कर लेना जनता के पास एक मात्र विकल्प था |
ऐसी परिस्थिति को एक बार अपनी आँखों से देख चुके अपने कानों से सुन चुके लोग चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए अब किसी ऐसे दावे पर विश्वास नहीं कर पाएँगे कि वे जनता के प्राणों की रक्षा कर सकते हैं| वस्तुतः लोग चिकित्सकों को दूसरा भगवान् समझने लगे थे कि उनके प्रयासों से हम मृत्यु पर भी बिजय प्राप्त कर सकते हैं कुछ लोग धन के बल पर अच्छी से अच्छी चिकित्सा का लाभ लेकर स्वस्थ हो जाने की भावना से भावित थे |
लोगों को एक बार फिर लगने लगा है धन बहुत कुछ है किंतु महामारी के प्रकोप से जूझते लोगों को धन भी बहुत अधिक मदद नहीं पहुँचा पाता है | इसी प्रकार से चिकित्सकों को भगवान् समझने वाले लोगों को एक बार फिर लगने लगा है कि चिकित्सक प्राणरक्षा में सहयोगी तो हो सकते हैं किंतु भगवान् नहीं हो सकते हैं | वे भी किसी की मदद तभी तक कर सकते हैं जब तक समय साथ देता है समय विपरीत होने पर चिकित्सक भी कोरोना काल की तरह हाथ खड़ा कर देते हैं
ऐसी निराशा की स्थिति में डूबते समाज की मदद के लिए सरकारों की जिम्मेदारी बन जाती है कि वह पारदर्शी तर्कसंगत कुछ ऐसी विश्वसनीय बातें जनता के साथ साझा करे जिससे जनता के मन में महामारी का भय कम हो एवं अपने चिकित्सा संबंधी अनुसंधानों के प्रति विश्वास पुनः पैदा किया जा सके |
इसके साथ ही चिकित्सासंबंधी अनुसंधानों की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि महामारी संबंधी इतना बड़ा संकट समाज के सामने खड़ा हुआ जिसमें वर्तमान प्रक्रिया से चलाए जा रहे अनुसंधान विशेष मदद कर पाने में सफल नहीं हो पाए हैं |
ऐसी परिस्थिति में योग आयुर्वेद आदि जिस किसी भी वेदवैज्ञानिक पद्धति के आधार पर किए गए किसी अनुसंधान के द्वारा भी महामारियों को समझने इनसे बचाव करने आदि की दृष्टि से यदि कोई ऐसी मदद मिलती है तो वह भी ली जानी चाहिए और सभी प्रकार की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर केवल जनता का हिट ध्यान में रखकर ही चिकित्सा संबंधी अनुसंधान कार्यों को संचालित किया जाना चाहिए | यही मानवता के हित में होगा ताकि भविष्य में ऐसी महामारियों के आक्रमण से पूर्व इनका सामना करने के लिए कुछ तैयारियाँ तो पहले से कर के रखी जा ही सकें |
कोरोना काल प्रारंभ होने के बाद-----------
चिकित्सा काल में रखे गए रोगियों को चिकित्सकों ने
अपनी आँखों के सामने मृत्यु को प्राप्त होते देखा है | आज वे किस मुख से
किसी को आश्वासन दे सकते हैं कि वे चिंता न करें हम उनके प्राणों की रक्षा
अपने प्रयासों से कर लेंगे | यद्यपि परिणाम कुछ भी रहे हों किंतु इस
महामारी में चिकित्सकों के द्वारा किए गए प्रयास उनके प्रति शृद्धा पैदा
करने वाले हैं इस महामारी में उनकी कर्तव्यनिष्ठा प्रणम्य है |
विश्व के समस्त देशों में स्थापित सरकारों को अपने अपने देश के चिकित्सा संबंधी अनुसंधानकर्ताओं को अपनी चिंताओं से अवगत कराकर उनसे यह पूछा जाना चाहिए !कोरोना महामारी से जूझती जनता को आप अपने अनुसंधानों के द्वारा क्या और कितनी मदद पहुँचा सके !आप यदि ऐसा न करते तो इस महामारी के संक्रमण से मानवता का इस इस प्रकार से इतना नुक्सान और अधिक हो सकता था !
संपूर्ण कोरोना काल में वैज्ञानिकों अनुसंधानों के नाम पर जिसे जब जो मन आया सो बोलते देखा गया !यह तो ईश्वर ही जाने कि वह बोलने के पीछे उनका वैज्ञानिक आधार क्या था और किस प्रकार के वैज्ञानिक अनुसंधान से उन्हें उस प्रकार का ज्ञान हुआ जिसका उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर परीक्षण भी किया हो !क्योंकि कोरोना महामारी से संबंधित बिषयों पर वैज्ञानिकों को बार बार अपने वक्तव्य बदलने पड़े !कई बार तो अपने कहे किसी एक ही बिषय में किसी एक ही वक्तव्य का विरोधी वक्तव्य दोबारा देना पड़ा !कईबार किसी एक वैज्ञानिकअनुसंधान के नाम पर दिए गए किसी एक वैज्ञानिक से असमत होते हुए किसी दूसरे वैज्ञानिक ने दूसरा वक्तव्य दिया दोनों को वैज्ञानिक रिसर्च के रूप में स्वीकृति मिली जबकि दोनों सही सिद्ध नहीं हो सके !
कोरोना की वैक्सीन बनाने के लिए चार चरणों में ट्रायल
किया जाना था !उस परीक्षण में सफल होने के बाद ही उसे कोरोना वैक्सीन के
रूप में मान्यता मिलनी थी !यही कारण है कि दिसंबर 2019 में प्रारंभ हुई कोरोना महामारी से निपटने के लिए दिसंबर 2020 तक कोई औषधि या वैक्सीन नहीं उपलब्ध करवाई जा सकी |
सैनिटाइजर मास्क दोगजदूरी एकांतबास को जनता के लिए अनिवार्य करने से पूर्व
इनका ट्रायल कितने चरणों में किस किस प्रकार से कहाँ कहाँ हुआ !ऐसे उपायों के बिषय में जिन परीक्षणों के सकारात्मक परिणाम पाने के बाद ही जनता के लिए न केवल इन्हें अनिवार्य बनाया गया अपितु अत्यंत शक्ति का प्रावधान करते हुए इनका पालन न करने वालों को आर्थिक रूप से दण्डित भी किया गया |
महामारी और वैज्ञानिकतैयारियाँ
सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं की तरह ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में महामारी आदि बिषयों पर भी अनुसंधान हमेंशा चला ही करते हैं |विभिन्न बिषयों पर अनुसंधानों के नाम पर जो जो कुछ किया जाता है वह तो करने वालों को पता होता होगा या फिर उन अनुसंधानों पर जनता का धन खर्च करने वाली सरकारों को पता होता होगा | उस बिषय में जनता को कुछ पता न तो होता है और न ही बताया जाता है और न ही इसकी आवश्यकता ही समझी जाती है | जनता इस बिषय की जानकारी वैज्ञानिकों या सरकारों से माँगना आवश्यक भी नहीं समझती है | जनता का ध्यान तो केवल उन अनुसंधानों के परिणामों पर होता है कि हमसे टैक्स लेकर सरकारें जिन अनुसंधानों पर खर्च करती हैं वे अनुसंधान हमारी आवश्यकताओं पर कितने खरे उतरते हैं | इसी उद्देश्य से जनहित में कोरोना जैसी महामारी के बिषय में आत्ममंथन किया जाना बहुत आवश्यक है | आखिर जनता पर दोहरी चोट क्यों पड़े पहले तो अपनी गाढ़ी खून पसीने की कमाई के धन से ऐसे अनुसंधानों पर खर्च करने के लिए सरकार को दे इसके बाद महामारी जैसी भीषण आपदा का सामना भी स्वयं करे !आखिर इतने वर्षों से चले आ रहे चिकित्सकीय अनुसंधानों का इस महामारी से निपटने में क्या योगदान रहा ?
1.कोरोना महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगाने में वैज्ञानिक अनुसंधानों का क्या योगदान रहा ?
2. कोरोना महामारी के प्रारंभ होने का निश्चित समय क्या है इसे खोजपाने में कितनी सफलता मिली ?
3. कोरोना महामारी मनुष्यकृत है या प्राकृतिक ?इसे खोजपाने में हमारे वैज्ञानिकअनुसंधान कितने सफल रहे ?
4. महामारी की संक्रामकता और उसके वेग का क्या अनुमान लगाया जा सका ?
5.स्थान वातावरण मौसम वायुप्रदूषण एवं तापमान के बढ़ने घटने का भी संक्रमण पर कितना प्रभाव पड़ेगा ?
6. किस उम्र के लोगों पर इस महामारी का कैसा प्रभाव संभावित था ?
7.किस रोग से पीड़ित रोगी को इस महामारी से कितना कम या अधिक नुक्सान सहना पड़ सकता है ?
8 .इस महामारी में खानपान रहन सहन आदि का कितना प्रभाव संभावित था ?
9.महामारी से पीड़ित रोगियों के रोगलक्षण कितने और क्या क्या थे ?
10. महामारी के विस्तार का माध्यम खोज पाने में कितने सफल हुए ?
11. महामारी से बचाव के लिए बरतने योग्य आवश्यक सावधानियों का वैज्ञानिक तर्कपूर्ण वैज्ञानिक आधार क्या था ?
12. कोरोना से संक्रमित रोगियों की समय पर प्रभावी औषधि खोजने में कितनी सफलता पाई जा सकी ?
ऐसे सभी प्रश्नों का वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर तर्कपूर्ण उत्तर अवश्य खोजा जाना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी परिस्थिति पैदा होने पर वैज्ञानिक अनुसंधानों की अवस्था इतनी असहाय न हो !ऐसे अनुसंधानों पर धन खर्च करने वाली जनता को इनसे कुछ मदद तो मिलनी ही चाहिए अन्यथा ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधान जनता के किस काम के !वर्तमान समय में ऐसे बिषयों पर अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों को यदि लगता है कि इस महामारी से जूझती जनता को वे अपने आज तक किए गए अनुसंधानों के द्वारा थोड़ी भी मदद पहुँचा पाने में सफल हुए हैं तो किस प्रकार से और क्या वह भी बताया जाना चाहिए कि यदि आज तक वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए वैज्ञानिक अनुसंधानों की मदद न मिली होती तो कोरोना महामारी इस इस प्रकार से इतना नुक्सान और पहुँचा सकती थी |
लॉकडाउन
इस महामारी को लेकर यह देखा गया कि
वेदविज्ञान
वेद विज्ञान के अनुशार रोग और महारोग दो होते हैं जिन रोगों के लक्षण पता लगाए जा सकें और उनसे मुक्ति दिलाने वाली प्रभावी औषधियाँ खोजी जा सकें वे तो रोग की श्रेणी में आते हैं | जिन रोगों से एक समय में ही बहुत लोग पीड़ित होते जा रहे हों जिनके लक्षण बार बार बदलते रहने के कारण रोग की पहचान करना कठिन हो रहा हो ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने वाली कोई औषधि खोजी न जा पा रही हो !बड़ी संख्या में रोगियों की मृत्यु होती चली जा रही हो चिकित्सा व्यवस्थाएँ ऐसे रोगों के सामने बेबश लाचार दिख रही हों !असहाय चिकित्सा अनुसंधानों से निराश हताश समाज के पास महामारी से स्वयं जूझने, मरने या फिर अपने जीवन को ईश्वर आधीन छोड़ देने के अतिरिक्त कोई विकल्प ही न बचता हो ऐसे रोगों को महारोग या महामारी की श्रेणी में रखा जाता है |
महामारी के समय होने वाले रोगों के लक्षण स्थाई नहीं होते इसलिए किन लक्षणों को आधार बना कर औषधि निर्माण किया जाए ये सबसे बड़ी चुनौती होती है क्योंकि दवा बनकर जब तक तैयार होती है तब तक महारोग अपना स्वरूप बदल लेता है उसके आधार पर कोई औषधि जब तक तैयार की जाती है तब तक महारोग पुनः स्वरूप बदल लेते हैं | इसलिए दवा बनाने के लिए किया जाने वाला संपूर्ण परिश्रम निरर्थक ही बीतता चला जाता है जब तक महामारी रहती है तब तक कुछ न कुछ इसीप्रकार के प्रयास जारी रखे जाते हैं |
वेदविज्ञान के अनुशार जितने प्रकार के रोग होते हैं उनके लक्षण निश्चित होने के कारण चिकित्सकों को पहले से पता होते हैं !उन रोगों में लाभ करने वाली औषधियाँ भी निश्चित होने के कारण चिकित्सा वैज्ञानिक आगे से आगे तैयार करे रखते ही हैं | सामान्य तौर पर रोगियों के लक्षणों के आधार पर उन्हें वे औषधियाँ दे दी जाती हैं जिन्हें सेवन करके वे स्वस्थ होते देखे जाते हैं |
किसी रोगी की मृत्यु जब समीप होती है या महामारी जब फैलती है ऐसे समय होने वाले रोग तेजी से अपना स्वभाव और प्रभाव बदलने लगते हैं जिनकी पहचान कर पाना बिलकुल कठिन होता है इसलिए ऐसे रोगियों पर प्रयोग की जाने वाली औषधियाँ या तो निष्प्रभावी हो जाती हैं या फिर दुष्प्रभावी हो जाती हैं | हमारे कहने का अभिप्राय यह है कि दवाएँ या तो असर नहीं करती हैं या फिर उनका विपरीत असर होने लगता है |
कुलमिलाकर महामारियों के समय सबसे बड़ी समस्या ये होती है कि उस समय अचानक फैलने वाले रोग के स्वभाव प्रभाव के बिषय में कुछ भी पता नहीं होता है !ऐसी परिस्थिति में उस रोग की औषधि का निर्माण करना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है |
वेद विज्ञान में महामारियों पर विजय प्राप्त करने के लिए सबसे पहले महामारियों के बिषय में पूर्वानुमान लगाने पर सबसे अधिक जोर दिया गया है | इसके साथ ही कोई भी महामारी प्रारंभ कब होगी रहेगी कितने समय तक उसमें संक्रामकता कितनी होगी !उसका प्रभाव किस देश प्रदेश या शहर आदि में कैसा रहेगा | उस समय अचानक फैलने वाले रोगों का स्थाई स्वभाव क्या होगा !ऐसी सभी बातों का पूर्वानुमान लगाकर महामारी प्रारंभ होने से पूर्व ही संभावित महामारियों को नियंत्रित करने के लिए उन रोगों से लड़ने के लिए प्रभावी औषधियाँ बनाकर रख लेने का निर्देश दिया गया है | महामारी का अचानक आक्रमण होते ही उन पूर्व निर्मित औषधियों का प्रयोग करके उस युग में महामारियों पर बिजय प्राप्त की जाती थी |
इसके अतिरिक्त महामारियाँ प्रारंभ होने से पूर्व ही वे इस प्रकार का जाँच अभियान चला देते थे जिससे लोगों सामयिक प्रतिरोधक क्षमता का पूर्वानुमान लगा लिया जाता था जिसके आधार पर इस बात का ज्ञान पहले ही कर लिया जाता था कि हमारे देश प्रदेश जनपद आदि में कितने प्रतिशत लोगों के महामारी से प्रभावित होने की संभावना है उसी हिसाब से कुशल शासक औषधियों का निर्माण महामारी प्रारंभ होने से पूर्व ही करवाकर रख लिया करते थे | संभावित महामारी से किस व्यक्ति के शरीर को कितना नुक्सान पहुँचने की संभावना है | उसी के अनुशार लोगों को सतर्क कर दिया जाता था पथ्य पालन के लिए प्रेरित कर दिया जाता था | उचित आहार बिहार संयमित जीवन प्राणायाम आदि प्रक्रियाओं के अभ्यास से शरीरों में प्रतिरोधक क्षमता तैयार करने के लिए महामारी प्रारंभ होने से पूर्व ही प्रेरित कर दिया जाता था | यहाँ तक कि संक्रमण अधिक न बढ़े इसलिए लोग महामारी का प्रारंभ होने से पहले ही अपने अपने गाँव घर छोड़ छोड़कर सामूहिक बस्तियों से दूर खेतों बगीचों जंगलों नदियों तालाबों के किनारे उतने समय तक एकांतवास करने लग जाते थे |इससे छुआछूत के कारण महामारियों का विस्तार नहीं होने पाता था |
अचानक आने वाले तूफानों की तरह अत्यंत वेग से आने वाली महामारियाँ पाताल से लेकर सुदूर आकाश तक को अपने प्रभाव से अतिशीघ्र प्रभावित कर लेती हैं हवा पानी आदि सभी में महामारियों का बिषैलापन व्याप्त हो जाता है | तूफानों की तरह ही वृक्षों बनस्पतियों पशुओं पक्षियों मनुष्यों आदि सभी जीव जंतुओं पर महामारियों का प्रभाव समान रूप में पड़ता है |संयमित रहन सहन उचित आहार बिहार के अभ्यास से जिसमें जितनी प्रतिरोधक क्षमता बन पाती है और जिसे जैसा चिकित्सकीय सहयोग मिल पाता है उसका वैसा बचाव हो जाता है |
वैसे भी महामारी हो या अन्य प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ बचाव के लिए तैयारियाँ करके तो पहले से ही रखनी होती हैं | किसी नदी में बाढ़ आने से पहले ही बचाव के लिए तैयारियाँ करके रखनी पड़ती हैं इसी प्रकार से भूकंप तूफ़ान या अग्निकांड घटित होने से पहले ही बचाव के लिए तैयारियाँ करके रखनी होती हैं |इसीलिए तो वर्षा तूफ़ान आदि के बिषय में पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया विकसित की गई है ऐसा महामारियों के बिषय में भी होना चाहिए था किंतु ऐसी तैयारियाँ तो विश्व के किसी देश में नहीं दिखीं |
कोरोना जैसी महामारी के अचानक प्रारंभ होने पर बहुत समय तो यह सोचने बिचारने में लगा दिया गया कि यह महामारी मनुष्यकृत है या प्राकृतिक है | कोरोना हवा में व्याप्त है या नहीं है |कोरोना संक्रमण का विस्तार हवा से हुआ या संक्रमितों के संपर्क में आने से हुआ |यदि संक्रमितों के संपर्क में आने से ही होता है तो जो लोग कोरोना प्रारंभ होते ही एकांतबास में चले गए थे उसके बाद वे घर से निकले ही नहीं किसी के संपर्क में आए ही नहीं फिर वे संक्रमित कैसे हो गए ?
कुछ लोग घनी बस्तियों छोटे घरों में राशन लेने की लाइनों बाजारों आदि भारी भीड़ में बिना मास्क आदि सावधानियों के सभी के साथ सामूहिक रूप से रहते खाते पीते सोते जागते रहे उनमें से कितने लोगों को कोरोना हुआ ?बहुत घरों में एक व्यक्ति कोरोना संक्रमित हुआ जबकि उसके साथ रहने वाले बाक़ी लोग नहीं हुए | ऐसी परिस्थिति में कोरोना संक्रमण के बढ़ने में संक्रमितों के संपर्क में आने का प्रभाव कितना पड़ता था इसके बिषय में स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सका | ऐसी परिस्थिति में मास्क पहनने या लॉकडाउन लगाकर दुकानें बाजार आदि बंद करना कितना उचित था | इस बिषय में भी कोई स्पष्ट उत्तर मिलपाना असंभव सा ही है |
विशेषकर भारत में दिल्ली मुंबई सूरत आदि से भीषण कोरोना काल में लाखों श्रमिकों के पलायन प्रकरण में बच्चे बूढ़े जवान स्त्री पुरुष गर्भिणी स्त्रियाँ आदि सभी एक एक सप्ताह तक भीड़ में पैदल चलते रहे जहाँ जो मिला जिसने जैसे हाथों से दिया वही खाते पीते रहे इसी बीच कई महिलाओं को प्रसव भी हुआ किंतु सभी स्वस्थ रहे | यदि छुआछूत से संक्रमण बढ़ता होता तो कोरोना संक्रमितों की संख्या में अचानक लाखों रोगियों की बढ़ोत्तरी हो जाती किंतु ऐसा तो नहीं हुआ |
यहाँ तक कि अक्टूबर नवंबर में हुआ बिहार बिधानसभा की चुनावी रैलियों में उमड़ने वाली भारी भीड़ों में कितने प्रतिशत लोग मास्क लगाए या दो गज दूरी बनाए दिखे !ऐसे ही नवंबर के अंत मेंदिल्ली में जमा किसानों की भारी भीड़ में कितने किसान मास्क लगाए दिखे और उनमें से कितनों को कोरोना हुआ !ये हमारे चिकित्सकीय अनुसंधानों के लिए चिंतन का बिषय अवश्य है |
भोजन व्यवस्था के बिषय में कहा गया कि फल और सब्जियाँ गर्म पानी में अच्छे ढंग से धो कर ही प्रयोग की जाएँ !जबकि तंजानियाँ जैसे विश्व के कुछ देश ऐसे भी हैं जिन्होंने विभिन्न वृक्षों के फलों को काटकर उसके अंदर के अंश का कोरोना परीक्षण करवाया तो वे फल संक्रमित पाए गए |
कुछ देशों में पशुओं पक्षियों को भी कोरोना संक्रमण से संक्रमित पाया गया | कुछ देशों में नदियों नालों तालाबों आदि के पानी को कोरोनासंक्रमण से संक्रमित पाया गया |
ऐसी परिस्थिति में सैनिटाइजर से हाथ धोना, मास्कलगाना ,दो गज दूरी बनाकर रखना ,एकांतबास करना या फिर लॉकडाउन जैसे प्रतिबंध लगाना आवश्यक था भी या नहीं !
कोरोना से संक्रमित होने पर किस किस प्रकार के रोग लक्षण उभरते हैं इसका अंत तक कोई तर्क संगत वैज्ञानिक निर्णय नहीं किया जा सका !
अंत में कोरोना संक्रमितों को होने वाले रोगों की जो सूची जारी की गई उसे ध्यान से पढ़ने से ऐसा लगता है कि इसमें उन सभी रोगों को सम्मिलित कर लिया गया है जो आम तौर पर शरीरों में होते देखे जाते हैं-
कोरोना संक्रमण शुरू कब हुआ?
महामारी का पूर्वानुमान लगाने की वैज्ञानिक क्षमता का आकलन
कोरोना महामारी हवा में है या नहीं ?
कोरोना संक्रमण संक्रमितों के संपर्क में आने से बढ़ता है |
बढ़ने के लिए किसी के छूने या संपर्क में आने से
महामारियों से बचाव के लिए आखिर कौन सी ऐसी तैयारियाँ पहले से करके रखी गई थीं जिनके आधार पर योन याँ हैं
मेरी जानकारी के अनुशार वर्तमान समय में महामारियों का पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई वैज्ञानिक व्यवस्था न होने के कारण महामारी से निपटने के लिए आवश्यक सभी तैयारियों के बिषय में महामारी प्रारंभ होने के बाद ही सोचना प्रारंभ किया जाता है | में में
महामारी या महारोग को किसी औषधि या वैक्सीन आदि की मदद से नहीं जीता जा सकता है |कोई भी महारोग जिस प्रकार से बुरा समय आने पर स्वयं ही प्रारंभ होता है उसी प्रकार से अच्छा समय आने पर स्वयं ही समाप्त हो जाता है |
इसीलिए प्रकृति में बुरे समय का प्रभाव जब तक रहता है तभी तक महामारियों का वेग अधिक होता है और अच्छा समय आते ही महामारियाँ स्वतः शांत होने लगती हैं |
महामारियों का प्रभाव भीषण बाढ़ग्रस्त नदी की तरह होता है जिस प्रकार से भीषण बाढ़ के समय में किसी नदी में बाँध या पुल नहीं बनाया जा सकता उसी प्रकार से महामारी का वेग जब तक बढ़ा रहता है तब तक उससे मुक्ति दिलाने वाली कोई दवा या वैक्सीन नहीं बनाई जा सकती है |
जिस प्रकार से भीषण तूफ़ान के आने पर उसी समय कोई तंबू नहीं ताना जा सकता है उसी प्रकार से भीषण महामारी के प्रारंभ हो जाने पर उसकी कोई दवा या वैक्सीन नहीं बनाई जा सकती है |
जिस प्रकार से भीषण बाढ़ के समय किसी नदी पर बाँध या पुल बनाने का प्रयास जाए तो पानी का वेग उस समय इतना अधिक होता है कि उस बाँध या पुल को बहा ले जाता है ऐसे ही भीषण तूफ़ान के समय तंबू लगाने का प्रयास किया भी जाए तो उसे हवाओं का भीषण वेग अपने साथ ही उड़ा ले जाता है उसी प्रकार से महामारियों का वेग जब तक रहता है तब तक औषधियों या वैक्सीनों के प्रभाव को बढ़ने ही नहीं देता है |
इसीलिए तो महामारियों के समय में चिकित्सावैज्ञानिकों के द्वारा दवाएँ या वैक्सीन आदि बनाने के लिए वाले किए जाने वाले बड़े बड़े प्रयास निरर्थक होते जाते हैं |यही कारण है कि जब तक महामारियों का प्रभाव रहता है तब तक उससे मुक्ति दिलाने वाली कोई दवा या वैक्सीन आदि बनाई ही नहीं जा सकती है |
महामारियों का प्रभाव समाप्त होने के बाद लोग स्वतः रोग मुक्त होने लगते हैं उस समय चिकित्सावैज्ञानिकों के द्वारा निर्मित जिन जिन औषधियों वैक्सीनों आदि का ट्रायल चल रहा होता है उन्हें सफल मान लिया जाता है | क्योंकि महामारी स्वतः समाप्त तो हो ही रही होती है समय का प्रभाव न समझने के कारण ऐसा भ्रम होने लगता है कि ये महामारी हमारे द्वारा निर्मित औषधियों वैक्सीनोंआदि के प्रभाव से समाप्त हो रही है |
इस प्रकार का भ्रम सभी समय जनित रोगों या महामारियों में हमेंशा से ही होता रहा है जितने समय तक महामारियों का प्रभाव बना रहता है उतना समय दवाओं या वैक्सीनों आदि के निर्माण और ट्रायल में बीत जाता है महामारियों का प्रभाव समाप्त होते ही दवाओं या वैक्सीनों आदि के निर्माण की घोषणा कर दी जाती है |
इस प्रकार से यह महामारी तो समाप्त हो ही चुकी होती है जिसमें उन दवाओं या वैक्सीनों से कोई मदद नहीं मिल पाई होती है इसके बाद जब कोई दूसरी महामारी आती है उसके कुछ और लक्षण बदले होते हैं इसलिए उसकी दवाओं या वैक्सीनों के निर्माण का कार्य नए सिरे से प्रारंभ करना होता है | इस प्रकार से जब तक वो महामारी रहती है तब तक उससे मुक्ति दिलाने के लिए दवाओं या वैक्सीनों आदि के निर्माण और ट्रायल का काम चला करता है और जैसे ही वो महामारी समाप्त होती है तो उससे मुक्ति दिलाने वाली दवाओं या वैक्सीनों आदि के निर्माण और ट्रायल को सफल मान लिया जाता है |
कुल मिलाकर बुरे समय के प्रभाव से होने वाले रोग अच्छे समय के प्रभाव से ही समाप्त होते हैं इनकी कभी कोई दवाएँ वैक्सीनें आदि बनाना संभव ही नहीं है | यहाँ तक कि वर्षा ऋतु में समय प्रभाव से होने वाले डेंगू जैसे रोग प्रत्येक वर्ष होते हैं हर वर्ष इनसे मुक्ति दिलाने के लिए दवाओं आदि के निर्माण के लिए प्रयास किए जाते हैं किंतु उन प्रयासों के पूर्ण होने से पूर्व ही समय प्रभाव से डेंगू जैसे रोग समाप्त होने लगते हैं | रोग समाप्त होते समय जो रोगी जिस प्रकार की औषधि योग व्यायाम पूजा पाठ दानधर्म जादू टोना आदि का सहारा ले रहा होता है वो स्वयं के रोगमुक्त होने में उसे ही श्रेय देने लगता है | इस समय जो लोग चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा बनाई हुई अधिकृत औषधियाँ या वक्सीनें आदि ले रहे होते हैं वे अपने स्वस्थ होने का श्रेय उन्हें देने लगते हैं |
कोई एक ही लक्षण की महामारी बार बार हो यह आवश्यक नहीं होता है हमेंशा नए नए लक्षणों और रोगों वाली महामारियाँ होते देखी जाती रही हैं |चेचक पोलियो को ही लें तो ऐसा तो नहीं है कि सौ दो सौ वर्ष पहले अधिकाँश लोग पोलियो या चेचक ग्रस्त ही होते थे | उसके बाद दवाओं वैसीनों का निर्माण हुआ तब उन के प्रभाव से ही ऐसी महामारियों से मुक्ति मिल सकी है |
वस्तुतः समय परिवर्तन शील होता है समय के साथ संबंधित घटनाएँ भी समय प्रभाव से परिवर्तित होती रहती हैं | समय प्रभाव से होने वाले रोग और महामारियाँ भी अपना स्वरूप स्वभाव वेग बिषैलापन आदि भी बदलते रहते हैं |यही कारण है कि किसी एक कालखंड में एक प्रकार की महामारी रहती है तो दूसरे कालखंड में दूसरे प्रकार के महारोग प्रारंभ होते हैं |
इसलिए जो जो महामारियाँ समय प्रभाव से प्रारंभ होकर समय प्रभाव से ही समाप्त होती चली जाती हैं उन उन महामारियों से मुक्ति दिलाने के लिए दवाओं या वैक्सीनों आदि के निर्माण और ट्रायल में लगे चिकित्सा वैज्ञानिकों को भ्रम होने लगता है कि उनकी औषधियों वैक्सीनों आदि के प्रभाव से ही उन महामारियों का उन्मूलन हुआ है | चेचक और पोलियो जैसी महामारियाँ भी तो हमेंशा के लिए नहीं आई थीं वे भी जिस समय प्रभाव से आई थीं उस समय के बदल जाने पर उन्हें भी जाना ही था |
चेचक और पोलियो जैसी महामारियों को ही लें तो इनसे मुक्ति दिलाने के लिए बनाई गई दवाएँ वक्सीनें आदि सभी जगहों तक और सभी व्यक्तियों तक पहुँचाई जा सकी हों ऐसा तो संभव नहीं है बहुत सुदूर गावों जंगलों आदि बासियों तक ऐसी दवाएँ वक्सीनें आदि न पहुँच पाने के बाद भी तो वे अच्छे समय प्रभाव के कारण चेचक पोलियो जैसी महामारियों से मुक्त हुए हैं |
जिस प्रकार से जब तक रावण रहा तब तक उसके भय से गिरी कंदराओं में जो लोग छिपे बैठे रहते थे वही लोग समय प्रभाव से रावण के मरते ही रावण के पुतले हर वर्ष बना बनाकर रावण को मारने का आडंबर करते देखे जाते हैं | एक से एक बड़ा रावण बनाकर फूँकते हैं |
इसी प्रकार से जब तक कोरोना रहा तब तक जिन लोगों के द्वारा कोई भी दवा या वैक्सीन आदि ऐसी नहीं बनाई जा सकी जिससे कोरोना जैसी महामारी से मुक्ति दिलाने में थोड़ी सी भी मदद मिल सकी हो किंतु समय के प्रभाव से जैसे ही कोरोना समाप्त होने लगा तैसे ही अचानक कोरोना से मुक्ति दिलाने वाली औषधियों या वैक्सीनों आदि के निर्माण कर लेने के बड़े बड़े दावे किए जाने लगे | संक्रमितों की संख्या बढ़ाचढ़ा कर बताई जाने लगी जिसे बाद में दवाओं या वक्सीनों के द्वारा कंट्रोल कर लेने का दावा ठोंका जा सके |
इसीलिए तो जब तक कोरोना था तब तक कोरोना संक्रमितों को किसी दवा से कोई लाभ नहीं हो रहा था अब जब समय प्रभाव से कोरोना समाप्त होने लगा तो बुखार,सूखी खांसी,थकान,खुजली,दर्द,गले में खराश,दस्त,आँख आना,सरदर्द,स्वाद और गंध न पता चलना,त्वचा पर चकत्ते आना,हाथ या पैर की उंगलियों का रंग बदल जाना ,दाँत में दर्द होने जैसी शरीर में हो सकने वाले अधिकाँश रोगों को कोरोना के लक्षण सिद्ध किया जाने लगा | ऐसे किसी भी रोग से मरने वाले रोगी की मृत्यु को कोरोना से हुई मृत्यु बताया जाने लगा |
किसी को कोरोना है या नहीं इसकी जाँच करने वाले चिकित्सा वैज्ञानिक,कोरोना वालों की संख्या कब कितनी घट बढ़ रही है इसके बिषय में निर्णय करने वाले वही चिकित्सा वैज्ञानिक वाले
सर्दी जुकाम बुखार दस्त आदि घर में रहकर ही पहले की तरह दवाएँ लेकर लोग दो दो तीन तीन दिन में घर में रहकर ही स्वस्थ हो जा रहे हैं !
इसीलिए कोरोना के प्रति समाज का भय समाप्त होता जा रहा है बाजारों में भीड़
उमड़ रही है रास्तों में जाम लग रहा है लोग आपस में एक दूसरे से चर्चा करते
देखे जाते हैं कि आखिर कोरोना है कहाँ ?
से वाएँ नए सिरे यही कारण है कि समय का प्रभाव पता नहीं लग पाता है |
मैंने 16 जून 2020 को प्रधानमंत्री जी को एक मेल भेजा था जिसमें लिखा था कि 25 सितंबर से कोरोना समाप्त होने लगेगा और 16 नवंबर से वातावरण में विद्यमान उस कोरोना का बिषैलापन हमेंशा हमेंशा के लिए समाप्त हो जाएगा ! अब कोरोना समाप्त हो भी गया है !
मेल .....
यदि कोरोना समाप्त न हुआ होता तो धनतेरस और दिवाली की बाजारों में बिना मास्क वाली भयंकर भीड़ के उमड़ते ही कोरोना बढ़ गया होता !इसीप्रकार से बिहार चुनावों में या देश के अन्य जगहों पर आयोजित नेताओं की रैलियों में बिना मास्क वालों की उमड़ने वाली भीड़ के बाद कितना बढ़ा कोरोना ?किसान आंदोलनों में उमड़ने वाली बिना मास्क वालों की भारी भीड़ के बाद कितना बढ़ा कोरोना ?
ऐसी घटनाओं से ये अनुमान लगाया जा सकता है कि कोरोना जब बचा ही नहीं है तो बढ़ता कैसे !
रही बात कुछ स्थानों पर कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ने की तो ऋतुओं के बदलने पर हर वर्ष होने वाले सर्दी जुकाम बुखार दस्त आदि को कोरोना बता देना ठीक नहीं है !
सिद्ध किया जाएगा क्या ?किंतु ऐसा तो हर वर्ष होता है !
आखिर अब क्यों खड़ा किया जा रहा है कोरोना का हउआ ?
15 नवंबर 2020 के बाद जैसे जैसे तापमान गिरने लगा वैसे वैसे सर्दी जुकाम बुखार के केस भी बढ़ने लगे !कोरोना मशीनों से उनकी जाँच की जाने लगी वे उन्हें कोरोना संक्रमित सिद्ध करने लगीं !ये वही मशीनें हैं जिनसे एक ही समय में अलग अलग मशीनों से जाँच करवाए जाने पर एक ही रोगी एक मशीन की रिपोर्ट में तो पोजेटिव निकलता है और दूसरी मशीन की रिपोर्ट में निगेटिव निकल आता है !
महामारियों के लक्षण नहीं पता लगाए जा सकते हैं और न ही उनकी कोई दवा बनाई जा सकती है ये चिकित्सा का सिद्धांत है महामारी के लक्षणों को यदि पता लगा ही लिया जाए और उसकी औषधि खोज ही ली जाए तो वो महामारी किस बात की ?
कोरोना के फैलने का सच !
कोरोना से होने वाली मौतें
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